विशेष
इस बार सबसे अधिक 31 महिलाएं उतरी हैं लोकसभा चुनाव के मैदान में
14 में से 12 संसदीय सीटों पर वोट देने में महिलाओं ने पुरुषों को पछाड़ा

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
भारत में ‘राजनीति की प्रयोगशाला’ के रूप में चर्चित झारखंड ने 18वें आम चुनाव के दौरान एक अनोखा रिकॉर्ड कायम कर दिया है। झारखंड देश का इकलौता ऐसा राज्य बन गया है, जहां की 14 में से 12 संसदीय सीटों, यानी 85 प्रतिशत सीटों पर वोट देने के मामले में महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया। यह सियासत के मैदान में झारखंड की महिलाओं के बढ़ते दबदबे का परिचायक तो है ही, साथ ही यह संकेत राजनीतिक रूप में पिछड़ा समझे जाने वाले राज्य के लिए उत्साहवर्द्धक भी है। झारखंड में इस बार के संसदीय चुनाव में महिलाओं ने एक और रिकॉर्ड बनाया है। वह यह कि इस बार विभिन्न राजनीतिक दलों ने सबसे अधिक सात महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा, जबकि कुल 31 महिलाएं अपनी किस्मत आजमा रही हैं। यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। अब, जबकि झारखंड समेत पूरे देश में मतदान संपन्न हो चुका है और जनता का फैसला सामने आने में कुछ ही घंटे का समय बाकी है, झारखंड की महिलाओं का सियासी मैदान में इस तरह बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना साबित करता है कि महिलाओं का हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और चुनाव प्रणाली में भरोसा लगातार बढ़ रहा है। यह झारखंड के साथ पूरे देश के राजनीतिक भविष्य के लिए सकारात्मक संदेश है और इसे लगातार आगे बढ़ाने की जरूरत है। क्या हैं झारखंड की सियासत में महिलाओं के बढ़ते दबदबे के कारण और क्या हो सकता है इसका संभावित असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

देशभर में लोकसभा चुनाव का सातवां और अंतिम चरण संपन्न हो चुका है और अब लोगों को नतीजों का इंतजार है, जो कुछ घंटे बाद ही आना शुरू हो जायेगा। इस बीच झारखंड को लेकर एक खुशनुमा खबर यह आयी है कि इस बार लोकसभा चुनाव के चारों चरणों के दौरान पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया है। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के रवि कुमार ने यह जानकारी देते हुए कहा कि राज्य के 2.58 करोड़ में से 1.7 करोड़ मतदाताओं ने 244 उम्मीदवारों के चुनावी भाग्य का फैसला करने के लिए 14 लोकसभा सीटों पर वोट डाले। इन 1.7 करोड़ मतदाताओं में से 87.11 लाख महिलाएं और 83.85 लाख पुरुष थे। झारखंड में 13 मई से 1 जून तक चार चरणों के चुनाव में कुल मिला कर 66.19 प्रतिशत मतदान हुआ। इस दौरान 14 में से 12 लोकसभा सीटों पर महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत अधिक रहा। केवल रांची और जमशेदपुर लोकसभा सीटों पर मतदान केंद्रों पर आने वाले पुरुष मतदाताओं की संख्या महिलाओं से थोड़ी अधिक थी, लेकिन बाकी लोकसभा सीटों पर महिलाओं की संख्या अधिक थी। झारखंड में 14 लोकसभा सीटों के अंतर्गत 81 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। विधानसभा क्षेत्रों के आंकड़ों पर गौर करें, तो 68 विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है, जबकि सिर्फ 13 विधानसभा सीटों पर वोट डालने वाले पुरुषों की संख्या ज्यादा रही। यानी झारखंड की महिलाओं ने मतदान प्रक्रिया में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और इस लिहाज से झारखंड देश का इकलौता ऐसा राज्य बन गया है। महिलाओं के अधिक मतदान प्रतिशत का कारण घरों के पुरुष सदस्यों के पलायन को भी माना जा सकता है। महिलाओं ने किसके समर्थन में मतदान किया है, यह साफ नहीं है, लेकिन चुनाव से पहले झारखंड के विभिन्न चुनाव क्षेत्रों में यह बात सामने आयी थी कि मोदी सरकार द्वारा शुरू की गयी योजनाओं से महिलाएं सबसे अधिक संतुष्ट हैं। इतना ही नही,राम मंदिर और दूसरे मुद्दों को लेकर भी महिलाओं के बीच मोदी सरकार की लोकप्रियता बढ़ी है।

महिला उम्मीदवारों की भी संख्या बढ़ी
झारखंड के संदर्भ में एक और अच्छी बात यह है कि लोकसभा चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या इस बार बढ़ी है। इस चुनाव में कुल 244 उम्मीदवारों में 31 महिला उम्मीदवार थीं। इसके अलावा पहली बार एक ट्रांसजेंडर सुनैना किन्नर भी धनबाद से चुनाव लड़ रही हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 सीटों पर कुल 240 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे। उनमें 222 पुरुष और 18 महिलाएं थीं। वर्ष 2019 में यह संख्या 229 थी, जिनमें 204 पुरुष और 25 महिलाएं थीं। जहां तक सांसद चुनी जानेवाली महिलाओं की बात है, तो 2004 में कुल 13 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था और केवल एक जीतने में सफल रहीं। 2009 में 14 महिलाओं ने चुनाव लड़ा, लेकिन कोई जीत नहीं सकीं। 2014 में भी 18 महिलाओं में से किसी को जीत नहीं मिली, जबकि 2019 में 25 में से दो महिलाओं ने जीत हासिल की। इस बार राजनीतिक दलों ने सात महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है। इनमें भाजपा ने तीन, कांग्रेस ने दो और झामुमो और राजद ने एक-एक महिला को टिकट दिया है। इसके अलावा एक और खास बात यह है कि सिंहभूम सीट से इस बार भी कोई महिला ही सांसद चुनी जायेगी, क्योंकि वहां मुकाबला दो महिलाओं के बीच है। इसके अलावा रांची, पलामू, कोडरमा, धनबाद और दुमका में महिला उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में हैं।

झारखंड की महिला नेतृत्व का इतिहास
झारखंड के आदिवासी समुदायों में लड़कियों के जन्म को गोहार भरने के साथ जोड़ा जाता है। लड़कियां ‘सयानी बेटी’ के रूप में घर, परिवार और समाज में स्वीकार की जाती हंै। कन्या भ्रूण हत्या यहां न के बराबर है। अत: आदिवासी क्षेत्रों में लड़कियों की सघन उपस्थिति देखी जाती है। आदिवासी स्त्रियों की नेतृत्व क्षमता को सिनगीदई से लेकर दयामनी बारला तक साफ तौर पर देखा जा सकता है। विद्रोहों और आंदोलनों में महिलाएं बढ़-चढ़ कर भाग लेती थीं। तिलका मांझी की अगुवाई में चले विद्रोह में फूलमनी मझिआइन ने भी अंग्रेजी सभा का मुकाबला किया। 1831 ई. के कोल विद्रोह के समय सिंगराय बहनों ने अपनी निडरता का परिचय दिया। 30 जून 1855 को भोगनाडीह में सिदो-कान्हू, चांद-भैरव के नेतृत्व में हूल (विद्रोह) का आगाज किया गया था। संथाल हूल के समय सिदो-कान्हू, चांद-भैरव की दो बहनों फूलो और झानो ने आंदोलनकारियों और विद्रोहियों के हौसले को बनाये रखा। बिरसा मुंडा के उलगुलान में महिलाएं भी शामिल थीं। बिरसा मुंडा की दो महिला अंगरक्षक भी थीं। 1930 के नमक सत्याग्रह के समय खूंटी के टाना भगतों की सभा में आधी संख्या स्त्रियों की थी। झारखंड आंदोलन में भी महिला नेत्रियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इसके अलावा कई जनांदोलनों में भी महिलाओं ने अहम भूमिका निभायी है।

झारखंड बनने के बाद चुनाव में महिलाओं की स्थिति
झारखंड बनने के बाद 2004 में हुए पहले चुनाव में 13 महिलाएं चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन केवल एक को जीत मिल सकी। 2009 और 2014 में क्रमश: 14 और 18 महिलाएं चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिल सकी। बीते लोकसभा के चुनाव 2019 में झारखंड से सबसे अधिक महिलाओं ने लोकसभा चुनाव में दावा ठोंका था। 2019 में राज्य से 25 महिलाएं चुनावी मैदान में थीं। इसमें दो महिलाएं जीत कर दिल्ली गयी थीं। झारखंड की चार सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले अधिक है। ये सीटें हैं, सिंहभूम, लोहरदगा, राजमहल और खूंटी।
झारखंड के सियासी मैदान में महिलाओं का बढ़ता दबदबा इस प्रदेश के साथ पूरे देश के लिए सकारात्मक संदेश माना जा सकता है। महिलाएं सियासत में जितनी सफल होंगी, राजनीति का कलंकित होता मैदान उतना ही साफ होता जायेगा। इसलिए महिलाओं के आगे बढ़ने का स्वागत किया जाना चाहिए।

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