विशेष
-गिरिडीह सीट से 3.47 लाख वोट लाकर साबित किया अपना दमखम
-गोमिया और डुमरी विस क्षेत्र से लीड किया था जयराम महतो ने
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
जयराम महतो वह नाम है, जो आज झारखंड की आवाज के रूप में स्थापित हो रहा है। जब वह बोलता है, तब लोग खुद ब खुद उसे सुनने दौड़े चले आते हैं। स्कॉर्पियो पर खड़ा होकर एक लड़का जब भाषण देता है, तब हजारों की संख्या में भीड़ जमा हो जाती है। भीड़ यह देखने नहीं आती कि वह लड़का स्कॉर्पियो पर खड़ा होकर स्टाइल मार रहा है। भीड़ उसे सुनने आती है कि वह लड़का बोल क्या रहा है। जब जयराम बोलते हैं, तब वह झारखंड के मुद्दों को लेकर बोलते हैं। झारखंड किन समस्याओं से जूझ रहा है, उससे लोगों को अवगत करवाते हैं। कैसे झारखंडियों की भावनाओं के साथ सालों से खेला जा रहा है, उस बारे में वह लड़का बात करता है, झारखंडियों के हक के लिए आवाज उठाता है। जयराम महतो पीएचडी के छात्र हैं, इंग्लिश लिटरेचर से वह पीएचडी कर रहे हैं। जयराम महतो एक आंदोलनकारी के पुत्र हैं। विरासत में ही उन्हें आंदोलन का जज्बा हासिल हुआ। जयराम महतो भाषा आंदोलन के दौरान सुर्खियों में आये। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब उनका वीडियो सोशल मीडिया पर आता है, तब वह वायरल हो जाता है। यूट्यूब हो या फेसबुक या एक्स, जयराम हर जगह हिट हैं। न जाने कितने यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज उनके वीडियो से स्थापित हो गये। खैर जयराम महतो गिरिडीह लोकसभा के दौरान जो वोट लाये हैं, उससे झारखंड के राजनेताओं की नींद उड़ी हुई है। नींद तो लोकसभा चुनाव के दौरान ही उड़ गयी। गिरिडीह के प्रत्याशी हांफ रहे थे। जयराम महतो की पार्टी ने एनडीए के लिए संजीवनी का काम कर दिया, नहीं तो उनकी हवा झारखंड में और टाइट होती और सीटें कम आती। गिरिडीह तो समझिये हाथ से निकल जाता। जयराम महतो पढ़े-लिखे हैं, उन्हें राजनीति की समझ कितनी है, यह तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन वह मुद्दों को समझते हैं। जयराम महतो की पार्टी जेबीकेएसएस के मैदान में आने से कई क्षेत्रीय दलों के लिए खतरे की घंटी बज गयी है। अगर वे दल पुराने ढर्रे की राजनीति करते रहेंगे, तो उनका जयराम के सामने टिकना आसान नहीं होगा। जयराम महतो ने आजसू पार्टी के उम्मीदवार चंद्रप्रकाश चौधरी के लिए सीधी चुनौती पेश कर दी है। आज की मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कुर्मियों में एक बहुत बड़ा गैप बढ़ता जा रहा है, जिसका नतीजा यह हुआ कि आज कुर्मी भाजपा या यूं कहें एनडीए से छिटका हुआ है। कुछ सीटों को छोड़ दें, तो वह जेएमएम से भी छिटका हुआ है। कुर्मी समाज आज पूरी तरह किस दल के साथ है, इसका आकलन राजनीतिक पंडित भी नहीं कर पा रहे हैं। आनेवाले विधानसभा चुनाव में कुर्मी मतदाता कइयों की राजनीतिक जमीन खिसकाने को बेचैन हैं। जाहिर है, अगर उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, केंद्र सरकार ने उनकी मांगों पर गौर नहीं फरमाया, तो सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा और आजसू को होगा, क्योंकि अब तक कुर्मी मतदाता इन दलों के साथ ही ज्यादा थे। कौन हैं जयराम महतो और कैसे उन्होंने झारखंड की राजनीति में सनसनी फैलाई हुई है बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
जयराम कुमार महतो का जन्म 27 दिसंबर 1994 को धनबाद के तोपचांची में हुआ। जयराम के पिता कृष्ण प्रसाद महतो झारखंड अलग राज्य आंदोलन के दौरान शहीद हुए थे। जब जयराम के पिता का देहांत हुआ, तब जयराम का छोटा भाई मां के गर्भ में ही था। बहुत ही मुश्किल परिस्थिति में जयराम की माता ने बच्चों को पाला। जयराम की पढ़ाई नाना- नानी के यहां हुई। पढ़ाई के दौरान जब जयराम अपने गांव आया-जाया करते, तब वह सामाजिक लोगों के साथ उठना-बैठना करते। कम उम्र से ही उन्हें समाज के बारे में समझना बहुत आकर्षित करता था। यानि राजनीति का बीज उनके अंदर शुरू से ही था। शुरूआती दौर में जयराम राजनीति से दूर ही रहते थे। जैसा कि आज का हर युवा राजनीति से जरा दूरी बना कर ही चलता है। इंटरेस्ट तो रहता है, ओपिनियन भी रहती है, लेकिन फिर भी ज्यादातर युवा इससे दूरी ही बना कर रखते हैं। जयराम भी राजनीति से दूरी ही बना कर रहते थे। जयराम का पढ़ने-लिखने में ज्यादा मन लगता था। लेकिन जब जयराम कॉलेज में थे, तभी झारखंड राज्य में एक घटना घटी, जहां कुछ ऐसी भाषाएं थीं, जिन्हें यहां के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया, जो झारखंड राज्य की नहीं हंै। यहीं से विवाद उत्पन्न हुआ और फिर क्या था, यहीं से एक नये आंदोलन की शुरूआत हुई और जयराम महतो की एंट्री इस आंदोलन के जरिये धीरे-धीरे राजनीति में हो गयी। राजनीति का बीज वृक्ष बनने को तैयार था। जयराम गांव-गांव जाते, अपनी बातों को जनता के सामने रखते। समझाते कि भाषा आंदोलन क्या है और झारखंड का इससे कितना नुकसान हो रहा है। उनके संबोधन से लोग प्रभावित होने लगे और उनके आंदोलन से जुड़ने लगे। जब जयराम महतो का आंदोलन शुरू हुआ, तब लगा कि उन्हें बहुत लंबा सफर तय करना पड़ेगा। लेकिन देखते ही देखते एक नौजवान का स्कार्पियो पर खड़ा होकर भाषण देना और हजारों की संख्या में लोगों का हिस्सा लेने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा। यूट्यूब हो या फेसबुक या एक्स जयराम महतो का वीडियो हर तरफ छा गया। जयराम ने ढाई से तीन सालों में लगभग पांच हजार सभाएं कर डालीं। जयराम महतो का कहना है, इन सभाओं के दौरान लोगों ने अपनी मांग मेरे समक्ष रखी कि आपको राजनीति की मुख्यधारा में आना पड़ेगा। तभी आंदोलन को और धार मिलेगी। तभी झारखंड की समस्याओं का हल निकल पायेगा। जयराम महतो ने भाषा आंदोलन से शुरूआत तो की, लेकिन जैसे-जैसे उनका झारखंड भ्रमण हुआ, वैसे-वैसे जयराम झारखंड की विभिन समस्याओं से अवगत होते गये। जयराम समझ गये कि झारखंड की समस्या बहुत बड़ी है, विकराल है। झारखंड की समस्या का हल राजनीतिक मंच पर आकर फ्रंट से लड़ कर ही निकाला जा सकता है।
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद भी स्वराज का अनुभव नहीं हो रहा: जयराम
सबसे पहले अलग झारखंड राज्य की मांग 1912 में उठी। उसके बाद 1928 में लिखित तौर पर अलग झारखंड राज्य की मांग उठी। फिर आया 15 नवंबर 2000, जब झारखंड का उदय 28वें राज्य के रूप में बिहार से अलग होकर देश के नक्शे पर हुआ। जयराम महतो का मानना है कि जब बांबे का विभाजन हुआ, तो महाराष्ट्र और गुजरात बना। महाराष्टÑ मराठी भाषियों के लिए बना और गुजरात गुजराती भाषियों के लिए बना। ठीक उसी प्रकार तमिलनाडु से आंध्रप्रदेश बना। तमिलनाडु तमिल भाषियों के लिए बना और आंध्रप्रदेश तेलुगु भाषियों के लिए बना, यानी दोनों राज्यों का समझौता हुआ। अपना-अपना क्षेत्र बना, अपना-अपना अधिकार बना। लेकिन जब झारखंड बिहार राज्य से अलग हुआ, तो झारखंडियों की भी कुछ आइडेंटिटी थी,परंपराएं थीं, भाषा और संस्कृति थी। यहां की जो भौगोलिक स्थिति थी, उसी कारण यह राज्य बिहार से अलग हुआ, लेकिन उसके बाद भी आज 23 वर्ष हो गये लेकिन फिर भी हमें ऐसा लगता है कि जिनसे हम लोग अलग हुए हैं, आज भी उनका कहीं ना कहीं अधिकार हमारे राज्य में है। उसी क्रम में धनबाद और बोकारो जिला, जो पूर्णत: बंगाल की सीमा से सटा है, अगर हम लॉजिक भी देते तो हजारीबाग या चतरा कोडरमा का हिस्सा होता, जिसमें अगर बिहार राज्य की भाषाओं को शामिल किया जाता, तो शायद कुछ लोग 10 किलोमीटर, 20 किलोमीटर रेडियस में उस भाषा को बोलते। लेकिन वह चूंकि पूर्णत: हिस्सा दूसरे क्षेत्र का है और जो झारखंड के मूलवासी हैं, वे उस भाषा को बोलते ही नहीं है। भोजपुरी-मगही भाषा झारखंड क्षेत्र की नहीं थी। अगर धनबाद, गिरिडीह क्षेत्र की बात की जाये, तो यहां कुरमाली, संथाली और खोरठा बोली जाती है। जयराम महतो ने इस मुद्दे को प्रखर तरीके से उठाया। देखते ही देखते छात्रों में आक्रोश आया कि आखिर झारखंड क्यों अलग हुआ है। जयराम कहते हैं: मानते हैं बिहार राज्य हमारा बड़ा भाई है। हम बंगाल प्रेसिडेंसी का भी हिस्सा रहे हैं, उसमें ओड़िशा भी रहा है, अगर सबका बंटवारा हो चुका है, सबको अपना भूभाग मिल चुका है, सबने अपनी भाषा और स्थानीयता का आधार तय किया है, तो फिर हमारे राज्य में अलग होने के बाद भी हमें अपना स्वराज्य का अनुभव क्यों नहीं हो रहा है। जयराम कहते हैं कि लगातार चीजों को थोपा जा रहा है, कभी भाषा के नाम पर, कभी और चीजों के नाम पर। इसे लेकर छात्रों में एक असंतोष का भाव समाहित हुआ और छात्रों ने आंदोलन किया।
जयराम का राजनीति में उदय
यही वो दौर था, जब कुछ नये चेहरों का उदय हुआ। उसमे से जयराम महतो का नाम अचानक से सुर्खियों में आना शुरू हुआ। जयराम महतो की कोई वीडियो आयी नहीं कि वह वायरल हो जाती। झारखंड में चर्चा होने लगी कि एक लड़का है, जो स्कार्पियो गाड़ी पर चढ़ कर भाषण देता है और उसे सुनने के लिए युवाओं की भीड़ देखते ही बनती है। अब तो जयराम महतो से सिर्फ छात्र और युवा ही नहीं, बड़े बुजुर्ग भी जुड़ रहे हैं। जयराम में अब कुर्मी समाज के लोगों और यहां के छात्रों में उनका नेता नजर आने लगा है। जयराम को यहीं से अहसास हो गया कि उसे राजनीति में आना ही होगा, अगर बदलाव लाना है तो। फिर क्या था, जयराम महतो ने ठान लिया कि उन्हें चुनावी राजनीति में आना ही होगा। 1 मई को जयराम महतो का नॉमिनेशन था। उस दिन करीब डेढ़ लाख के करीब लोग 45 डिग्री टेंपरेचर में जयराम के लिए आये थे। खास बात यह रही कि ये सभी लोग अपना-अपना चंदा उठा कर पहुंचे थे। उस दिन नॉमिनेशन के बाद जो जयराम की सभा हुई, उस सभा में भी लोगों ने जयराम महतो को चार लाख रुपये चंदा दिया। जो लोग वहां पहुंचे थे, उनकी भावना यही थी कि जो नये चेहरे मौजूदा राजनीति में कदम रख रहे हैं, ये ओल्ड पॉलिटिक्स नहीं करेंगे। यानी परिवारवाद और संपत्ति अर्जित करने की पॉलिटिक्स नहीं करेंगे।
75 प्रतिशत सैलरी जनता को डोनेट
जयराम कहते हैं कि उन्होंने झारखंड राज्य में साफ सुथरी पॉलिटिक्स करने का संकल्प लिया है। जयराम की पार्टी ने संकल्प पत्र में घोषणा की थी कि जो प्रत्याशी जीत कर संसद जायेगा, वह अपनी खुद की 75 प्रतिशत सैलरी जनता को डोनेट कर देगा।
नॉमिनेशन के दिन जब जयराम महतो को पकड़ने पुलिस पहुंची
करीब दो साल पहले जयराम महतो पर एक केस हुआ था। यह केस नियोजन नीति और स्थानीय नीति की मांग के दौरान हुआ। यह मूवमेंट छात्रों द्वारा ही किया गया था। उस दौरान लगातार परीक्षाएं कैंसल हो रही थीं, परीक्षाएं हो नहीं रही थीं, कोई नीति नहीं थी। जयराम महतो और कई छात्रों ने विधानसभा के सामने धरना प्रदर्शन किया था। जयराम का कहना है कि दो साल पहले का केस था। ना उन्हें 41 का नोटिस दिया गया, ना किसी प्रकार से कोई सूचना दी गयी थी। जिस दिन जयराम महतो का नॉमिनेशन था यानि 1 मई 2024, उस दिन काफी संख्या में पुलिस उन्हें अरेस्ट करने पहुंची। जयराम का मानना है कि यह साजिश के तहत हुआ। जयराम का कहना था कि हमारी लड़ाई राज्य सरकार से थी, अगर राज्य सरकार यानी झारखंड की पुलिस आती तो हमें समझ में आता, वहां सीआरपीएफ की भी टीम आती है, यह कौन सा कानून का अनुपालन वे लोग कर रहे थे। उसके बाद पूरा प्रयास किया गया कि हमारे नॉमिनेशन को रद्द किया जाये। कुछ पॉलिटिकल लोग लगातार ब्यूरोक्रेट्स पर दबाव बनाते रहे, यह कौन नहीं जनता। जयराम का यह भी मानना है कि ब्यूरोक्रेट्स का धन्यवाद, जो उन्होंने निष्पक्ष होकर अपना कार्य किया और मेरे नॉमिनेशन पर आंच नहीं आयी। जयराम ने यह भी कहा कि इस घटना के समय एक कार्ड क्या खेला गया, चूंकि जयराम तो इंडिपेंडेंट कैंडिडेट थे और जयराम के नाम से और चार लड़कों ने पर्चा भरा। समझा जा सकता है कि एक नौजवान जो पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रख रहा था, जिसने एक मुखिया तक का चुनाव नहीं लड़ा और उसके खिलाफ साजिश हो रही थी। पांच लोग जिन्होंने नॉमिनेशन का फॉर्म भरा उनका 11 नंबर, 12 नंबर, 13 नंबर, 14 नंबर था। हर जगह जयराम कुमार महतो। यह सब वोटरों के बीच कन्फ्यूजन पैदा करने के लिए था।
हार कर भी हीरो बन गये जयराम
फिर क्या था। जयराम महतो ने पार्टी बनायी और नाम रखा झारखंडी भाषा खतियानी संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस)। जयराम महतो ने कुल आठ लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। जीत तो एक सीट पर भी नहीं हुई, लेकिन जो परफॉरमेंस जयराम और उनकी पार्टी का रहा, उससे झारखंड और उसके राजनेता दंग हैं। अपने पहले ही लोकसभा चुनाव में जयराम महतो कुल 347322 वोट लाये। वह गिरिडीह लोकसभा से चुनाव लड़े थे। जयराम महतो ने वहां के आजसू और एनडीए के उम्मीदवार दिग्गज नेता चंद्रप्रकाश चौधरी के पसीने छुड़ा दिये थे। चंद्रप्रकाश चौधरी को कुल 451139 मत मिले और उन्होंने गिरिडीह लोकसभा से जीत तो दर्ज की, लेकिन उन्हें अच्छी तरह समझ में आ गया होगा कि जयराम महतो क्या हैं। जयराम महतो सिर्फ लोकसभा चुनाव ही नहीं, पीछा तो विधानसभा चुनाव में भी नहीं छोड़ेंगे। जयराम महतो की लोकसभा चुनाव में दमदार उपस्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे इंडिया गठबध्ांन के प्रत्याशी मथुरा महतो से मात्र 23 हजार वोटों से ही पीछे रह गये और विजेता रहे चंद्र प्रकाश चौधरी से 103817 मत पीछे रहे।
एनडीए और इंडी के लिए बड़ी चुनौती
झारखंड की राजनीति में जयराम महतो के उदय से आजसू और झामुमो के लिए खतरे की घंटी बज गयी है। अब तक स्थानीय वोटों पर इन्हीं दो पार्टियों का कब्जा रहता था, लेकिन अब जयराम महतो के रूप में एक तीसरा मजबूत विकल्प झारखंड में सामने आ गया है। दरअसल, एनडीए गठबंधन के तहत गिरिडीह सीट आजसू पार्टी के हिस्से आयी थी। वहीं इंडी गठबंधन के तहत झामुमो को यह सीट मिली। ऐसे में जयराम को मिले बंपर वोटों से एनडीए और इंडी के लिए भी खतरे की घंटी बज गयी है।
विधानसभा चुनाव में बड़ा फैक्टर बनेंगे जयराम
जयराम महतो ने गिरिडीह, धनबाद, हजारीबाग, रांची और कोडरमा सीट पर दमदार उपस्थिति दर्ज कर यह साबित कर दिया कि झारखंड में इस साल प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में वे बड़ा फैक्टर बनने वाले हैं। खासकर कुर्मी बहुल सीटों पर जयराम फैक्टर काम करेगा। इसकी बानगी लोकसभा चुनाव में दिख गयी है। जयराम महतो के साथ युवा तो हैं ही, अब महिलाएं, बड़े बुजुर्ग भी साथ आ चुके हैं। यह लोकसभा चुनाव के दरम्यान देखा गया।
गोमिया और डुमरी विस क्षेत्र से जयराम महतो ने लीड किया
जयराम महतो की पार्टी जेबीकेएसएस पूरे झारखंड में आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। गिरिडीह, हजारीबाग, धनबाद और रांची में जयराम महतो की पार्टी ने शानदार उपस्थिति दर्ज करायी है। जयराम महतो की पार्टी जेबीकेएसएस ने कुल आठ उम्मीदवार इस लोकसभा चुनाव में उतारे थे। गिरिडीह से जयराम महतो को मिले 347322, रांची से दवेंद्रनाथ महतो को 132647, हजारीबाग से संजय मेहता को 157977, चतरा से दीपक गुप्ता को 12566, सिंहभूम से दामोदर सिंह को 44292, दुमका से बेनीलता टुडू को 19360, धनबाद से इकलाक अंसारी को 79653 और कोडरमा से मनोज यादव को 28310 मत मिले। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाली डुमरी और गोमिया विधानसभा सीट पर जयराम महतो नंबर वन पोजिशन पर रहे। एक तरफ जहां डुमरी में आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी को 55421 और मथुरा महतो को 52193 मत मिले, वहीं जयराम महतो को 90541 वोट प्राप्त हुए। इसी तरह गोमिया में सीपी चौधरी को 66488 और मथुरा महतो को 58828 मत मिले, वहीं जयराम महतो को 70828 मत मिले। एक और आंकड़ा चौंकानेवाला है। पोस्टल बैलेट में सीपी चौधरी को 3243, मथुरा को 3062 वहीं जयराम को 5081 मत प्राप्त हुए। इस चुनाव में यह भी देखा गया कि कुर्मी मतदाता झारखंड में भाजपा से नाराज चल रहे हैं। इस नाराजगी का असर खूंटी लोकसभा में भी बड़े पैमाने पर देखा गया, जहां से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा चुनाव हार गये। गिरिडीह लोकसभा सीट पर भी कुर्मियों की नाराजगी देखने को मिली।