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    Home»राज्य»सुहागिन महिलाओं का विशेष पर्व वटसावित्री छह जून को : ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा
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    सुहागिन महिलाओं का विशेष पर्व वटसावित्री छह जून को : ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा

    adminBy adminJune 2, 2024No Comments2 Mins Read
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    सहरसा। कोसी क्षेत्र के चर्चित ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा के अनुसार ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाओं की ओर से रखा जाता है। इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।

    माना जाता है कि पौराणिक समय में सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाने के लिए यह व्रत रखा था।अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला वट सावित्री व्रत 06 जून गुरुवार को है।इस दिन ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि है। इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं।वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है।

    वट सावित्री व्रत की कथा :

    वट वृक्ष का पूजन और सावित्री सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था।कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी।

    उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर वर दिया कि ”राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी”।सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे।

    उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा।सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे।क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था।उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया। सत्यवान अल्पायु थे।वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी, परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी।जिसका फल उन्हें बाद में मिला।

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