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    Home»विशेष»अमित शाह की नीति ने तोड़ दी है नक्सलवाद की कमर
    विशेष

    अमित शाह की नीति ने तोड़ दी है नक्सलवाद की कमर

    shivam kumarBy shivam kumarJune 1, 2025Updated:June 3, 2025No Comments9 Mins Read
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    विशेष
    अब पूरी तरह खत्म होने को है देश की यह बड़ी आंतरिक समस्या
    नक्सलग्रस्त इलाकों में विकास योजनाओं ने खत्म किया लाल आतंक

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म करने के एलान और सुरक्षा बलों की आक्रामक कार्रवाई से अब यह साफ हो गया है कि देश की यह बड़ी आतंरिक समस्या अब अंतिम सांस गिन रही है। वास्तव में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नीतियों ने नक्सलवाद की कमर तोड़ कर रख दी है। लाल आतंक की यह कहानी कैसे खत्म होने को है, यह जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि पिछले करीब छह दशक से देश के विभिन्न इलाकों में बिना मतलब खून-खराबा करने और ‘बंदूक की नोक पर सत्ता हासिल करने’ का दंभ भरनेवाले नक्सली अब घुटनों पर आ गये हैं। हाल के दिनों में सुरक्षा बलों की कार्रवाई और नक्सलग्रस्त इलाकों में तेजी से चलायी गयी विकास योजनाओं ने नक्सलियों की कमर तोड़ दी है। नक्सल समस्या इस देश के लिए और खास कर झारखंड-छत्तीसगढ़ के लिए बड़ी समस्या है। बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ नक्सलवाद आज देश के आधा दर्जन राज्यों में गंभीर बीमारी का रूप ले चुका है। पिछले छह दशक में नक्सलियों ने 50 हजार से अधिक लोगों की हत्या की है और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है, सो अलग। अब जब ये नक्सली खत्म होने की कगार पर हैं, तो यह जानना बेहद दिलचस्प है कि इनकी समाप्ति की पटकथा कैसे तैयार की गयी और कौन है इस पटकथा का नायक। इन सवालों के जवाब के साथ क्या है नक्सल समस्या के खात्मे की पूरी कहानी, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    कुछ दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि मार्च 2026 तक देश से नक्सलियों का सफाया कर दिया जायेगा। उनकी यह बात अब सच साबित होने लगी है। अब यह साफ हो गया है कि भारत में नक्सलवाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। नक्सलवाद को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने साल 2010 में देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया था। एक समय नक्सलियों के कारण लाल गलियारे की बातें हुआ करती थीं। नक्सलियों ने नेपाल के पशुपति से आंध्र प्रदेश के तिरुपति तक ‘रेड कॉरिडोर’ बना रखा था।
    एक समय लाल आतंक का ऐसा खौफ था कि बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के कई जिलों में शाम के बाद घर से बाहर निकलना भी मुश्किल था। बीते छह दशकों में नक्सलियों की हिंसा में हजारों निर्दोष लोगों की जाने गयीं। लेकिन अब लाल आतंक का यह गलियारा संकुचित होता जा रहा है। साल 2014 के बाद मोदी सरकार ने इस दिशा में तेजी से काम किया और इसका नतीजा यह हुआ कि 2013 में जहां देश के सवा सौ से भी ज्यादा जिले नक्सल प्रभावित थे, अब घटकर सिर्फ 18 जिले ही नक्सल प्रभावित हैं।

    पीएम मोदी ने बिहार में किया एलान
    बिहार की धरती से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नक्सलवाद के सिमटते दायरे का जिक्र करते हुए कहा कि वह दिन दूर नहीं, जब माओवादी हिंसा का पूरी तरह से खात्मा हो जायेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने की तारीख तय कर दी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक समय बिहार में नक्सल पीड़ित गांवों में ना तो अस्पताल और ना मोबाइल टावर होता था। कभी स्कूल जलाये जाते थे, तो कभी सड़क बनाने वालों को मार दिया जाता था। हालात ऐसे थे कि मुंह पर नकाब लगाये, हाथों में बंदूक थामे नक्सली कब कहां सड़कों पर निकल आयें, लोग इस दहशत में जीते थे। लेकिन साल 2014 के बाद माओवादियों को उनके किये की सजा देनी शुरू कर दी गयी है। युवाओं को विकास की मुख्यधारा में भी लाया जा रहा है। इसी वजह से अब देश में महज 18 जिले ही नक्सल प्रभावित बचे हैं। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही देश को आश्वस्त कर चुके हैं कि साल 2026 मार्च से पहले देश से नक्सलवाद का पूरी तरह से खात्मा हो जायेगा।

    नक्सलवाद पर मोदी सरकार की नीति
    मोदी सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि नक्सलियों के साथ-साथ वो उन कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, जिन्हें ‘अर्बन नक्सल’ भी कहा जाता है, उनके दबाव में भी नहीं आयेगी, जो बंदूक उठाने वाले माओवादियों का समर्थन करते हैं। इतना ही नहीं, बल्कि सरकार ने अब सफेदपोश ‘अर्बन नक्सलियों’ पर भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की एनडीए सरकार नक्सलवाद के खात्मे की तरफ तेजी से आगे बढ़ रही है। सरकार ने मार्च 2026 से पहले ही नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने की प्रतिबद्धता जतायी है। नक्सलियों के सफाये के लिए तीव्र गति से अभियान चलाया जा रहा है। सरकार ने नक्सलियों के सफाये और नक्सल प्रभावित इलाकों के विकास के लिए अनेकों महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं।

    पश्चिमी सिंहभूम सर्वाधिक प्रभावित जिलों में शामिल
    बिहार की धरती से पीएम मोदी ने नक्सलियों के सफाये का दृढ़ वचन दिया है। उसी बिहार में तीन साल पहले तक 10 जिले नक्सलियों का गढ़ हुआ करते थे। लेकिन अब बिहार में नक्सलियों का पूरी तरह से सफाया हो चुका है। नक्सलवाद से सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या भी पूरे देश में 35 से घटकर अब सिर्फ छह ही रह गयी है। इनमें छत्तीसगढ़ के चार जिले, बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा के अलावा झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला शामिल है।
    नक्सली हिंसा की घटना, जो साल 2010 में अपने उच्चतम स्तर 1936 तक पहुंच गयी थी, वह साल 2024 में घटकर सिर्फ 374 रह गयी है। इस दौरान नक्सली हिंसा में 81% की कमी आयी है। वहीं इन नक्सली घटनाओं में होने वाली मौतों में भी 86% तक की कमी हुई है। इस साल के शुरूआती चार महीने में ही लगभग दो सौ कट्टर नक्सलियों को सुरक्षा बल ढेर कर चुके हैं। वहीं मुठभेड़ों में मारे गये नक्सलियों की संख्या 63 से बढ़कर 2089 हो गयी है। साल 2014 में 76 जिलों के 330 थानों में 1080 नक्सली घटनाएं दर्ज की गयी थीं, जबकि साल 2024 में 42 जिलों के 151 थानों में 374 घटनाएं दर्ज की गयीं। 2014 में 88 सुरक्षाकर्मी नक्सली हिंसा में शहीद हुए थे, जो 2024 में घटकर सिर्फ 19 रह गये हैं। 2014 में 928 और 2025 के पहले चार महीनों में 700 से भी अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। जहां पहले नक्सल प्रभावित क्षेत्र 18,000 किमी से ज्यादा था, जो अब महज 4200 किमी ही शेष है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लगभग 77 प्रतिशत की कमी आयी है।

    सच साबित हुई अमित शाह की घोषणा
    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 21 मई को सोशल मीडिया पर ऐतिहासिक घोषणा करते हुए बताया था कि पिछले 30 वर्षों में पहली बार महासचिव स्तर के नक्सली कमांडर बासव राजू को मार गिराया गया है। इस कामयाबी को हासिल करने वाला ‘आॅपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ भी सुर्खियों में है। नक्सलियों के खिलाफ हाल के दिनों में सरकार ने कई सफल अभियान चलाये हैं। इस महीने हुए ‘आॅपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ से छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में अबूझमाड़ के जंगल में सुरक्षाबलों के साथ हुई मुठभेड़ में 27 नक्सली ढेर किये गये। इसमें डेढ़ करोड़ का इनामी बसव राजू भी शामिल था। इस आॅपरेशन में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 84 ने आत्मसमर्पण किया। यह अभियान इस बात का संकेत है कि वामपंथी उग्रवाद अब खत्म होने के कगार पर है। इससे पहले 21 अप्रैल से 11 मई तक छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर कर्रे गुट्टालू पहाड़ी पर नक्सलवाद के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा अभियान चलाया गया था। इस दौरान 21 मुठभेड़ों में 31 नक्सली मारे गये, जबकि सुरक्षा बलों का कोई भी जवान हताहत नहीं हुआ। इस अभियान में 210 से अधिक नक्सली ठिकाने और बंकरों को नष्ट कर दिया गया और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री भी बरामद की गयी। फिर 21 अप्रैल को बोकारो के ललपनिया में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में एक करोड़ का इनामी नक्सली विवेक समेत आठ नक्सली मारे गये। 17 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 22 कुख्यात नक्सलियों की गिरफ्तारी हुई। 30 मार्च को बीजापुर में ही 50 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। 20 मार्च को बीजापुर और कांकेर में दो अलग-अलग आॅपरेशन में सुरक्षाबलों ने 22 नक्सलियों को मार गिराया। नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के ताबड़तोड़ अभियान से यह उम्मीद भी जगती है कि सरकार द्वारा तय समय सीमा 31 मार्च 2026 से पहले ही भारत नक्सलियों से पूरी तरह मुक्त हो जायेगा।

    सरकार की बहुआयामी रणनीति
    दरअसल, पिछले एक दशक से सरकार ने नक्सलवाद के खिलाफ मजबूत और बहुआयामी रणनीति अपनायी है, जो काफी असरदार साबित हो रही है। गृह मंत्रालय की साल 2017 में शुरू की गयी समाधान रणनीति ने जमीन पर बड़ा फर्क डाला है। इसमें सुरक्षा को लेकर कार्य योजना के साथ-साथ विकास से जुड़ी पहल भी शामिल हैं। पिछले एक दशक में मिली सफलता का श्रेय सुरक्षा रणनीति के साथ ही विकास योजनाओं में आयी तेजी को भी जाता है। सरकार ने लक्षित विकास योजनाएं चलायीं, जिससे लोगों का भरोसा दोबारा जीता गया। सड़क और मोबाइल नेटवर्क जैसी बुनियादी सुविधाओं में काफी सुधार हुए और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के कामों ने भी स्थानीय लोगों के दिलों में जगह बनायी। रोशनी योजना ने आदिवासी युवाओं को कौशल विकास और रोजगार प्राप्त करने में भी मदद प्रदान की। इस दौरान जहां केंद्र और राज्य सरकारों ने मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखायी, वहीं केंद्रीय और राज्य बलों के बीच बेहतर समन्वय ने भी नक्सल समस्या से निपटने में बड़ी भूमिका निभायी। सरकार की विकास योजनाओं ने भी लाल आतंक को खात्मे की ओर धकेलने में काफी अहम भूमिका निभायी है। सरकार ने नक्सलियों को ठिकाने लगाने के लिए 68 नाइट लैंडिंग हेलीपैड बनाये हैं, जिससे नक्सलवाद से लड़ाई में काफी मदद मिली है। नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास पहुंचाने के लिए बजट में 300% की बढ़ोतरी की गयी है। साल 2014 से 2024 तक नक्सल प्रभावित इलाकों में 11,503 किमी हाइवे का निर्माण किया गया है। 20,000 किमी ग्रामीण सड़कें बनायी गयीं। पहले चरण में 2343 और दूसरे चरण में 2545 मोबाइल टावर लगाये गये। नक्सल प्रभावित इलाकों में गत पांच वर्षों में बैंकों की 107 शाखाएं और 937 एटीएम भी शुरू किये गये हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में गत पांच वर्षों में बैंकिंग सेवा से युक्त 5731 डाकघर (पोस्ट आॅफिस) भी खोले गये हैं। इन सबका परिणाम है कि नक्सलवाद अब धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है।

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