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हेमंत सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद नहीं सुधरा उत्कृष्ट स्कूलों का रिजल्ट
अब इन स्कूलों पर होगी कार्रवाई और खराब रिजल्ट के कारणों की होगी जांच
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में स्कूली शिक्षा के रिजल्ट का दौर लगभग खत्म हो गया है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसइ), इंडियन काउंसिल ऑफ स्कूल एजुकेशन (आइसीएसइ) और झारखंड अधिविद्य परिषद(जैक) द्वारा ली जानेवाली 10वीं और 12वीं कक्षा के रिजल्ट घोषित किये जा चुके हैं। इसके साथ ही अब बच्चों और उनके अभिभावकों का ध्यान उच्च शिक्षा की तरफ केंद्रित हो चुका है। लेकिन इस साल रिजल्ट के विश्लेषण से एक बात साफ हो गयी है कि झारखंड में स्कूली शिक्षा व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। हेमंत सोरेन सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य के स्कूलों का रिजल्ट इस साल खराब हुआ है। सबसे खास बात यह रही कि राज्य के सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस का रिजल्ट भी पिछले साल के मुकाबले इस साल खराब हुआ। ये स्कूल ऑफ एक्सीलेंस झारखंड की स्कूली शिक्षा की उत्कृष्ट छवि दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए शुरू किये गये हैं और इनमें किसी निजी स्कूल की तरह सुविधाएं मुहैया करायी गयी हैं। राज्य सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद यदि इन स्कूलों का रिजल्ट बढ़िया नहीं हुआ, तो इसका मतलब यही निकाला जा सकता है कि इन स्कूलों की व्यवस्था में ही कहीं न कहीं कोई खामी है। अब राज्य सरकार ने खराब रिजल्ट वाले स्कूलों से इसका कारण पूछा है, क्योंकि इनके प्रदर्शन ने पूरे राज्य की स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं। इन स्कूलों के रिजल्ट ने हेमंत सोरेन सरकार के प्रयासों को भी पलीता लगा दिया है। इसलिए इनके खिलाफ कार्रवाई जरूरी है। कैसा रहा झारखंड के स्कूलों का रिजल्ट और इसके खराब होने का क्या हो सकता है कारण, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
हर साल अप्रैल-मई को रिजल्ट का महीना कहा जाता है। इन दो महीनों में देश भर में स्कूली शिक्षा के विभिन्न बोर्डों के रिजल्ट घोषित होते हैं और बच्चे और उनके अभिभावक उच्च शिक्षा की तरफ ध्यान देते हैं। झारखंड में भी दो केंद्रीय बोर्डों के अलावा राज्य अधिविद्य परिषद द्वारा ली गयी 10वीं और 12वीं की परीक्षा का रिजल्ट घोषित कर दिया गया है। केवल 12वीं आर्ट्स का रिजल्ट आना बाकी है। इस साल झारखंड के स्कूलों का रिजल्ट बहुत अच्छा नहीं रहा। इसलिए राज्य की स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं।
सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की छवि को झटका
इस साल झारखंड के मुख्यमंत्री स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की छवि को बड़ा झटका लगा है। शिक्षा विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, हाल ही में घोषित सीबीएसइ 10वीं बोर्ड परीक्षा में इन स्कूलों में से कई का 10वीं परीक्षा में कुल सफलता प्रतिशत 60% से भी नीचे रहा। इससे सरकार की योजनाओं पर प्रश्नचिह्न लग गया है। झारखंड के 19 सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के सीबीएसइ 10वीं बोर्ड परीक्षा के परिणाम बेहद निराशाजनक रहे हैं। इन स्कूलों का परिणाम 19.64% से 57% के बीच रहा, जो राज्य द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानक 60% से कम है।
खराब रिजल्ट वाले स्कूलों को नोटिस
खराब प्रदर्शन करने वाले 19 सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस को राज्य सरकार ने कारण बताओ नोटिस (शोकॉज) जारी किया है। स्कूलों को एक सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा गया है, अन्यथा संबंधित प्रधानाचार्यों पर विभागीय और अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गयी है। इन स्कूलों को समय-समय पर निर्देश दिये गये थे कि मॉडल टेस्ट और रेमेडियल क्लासेस का नियमित संचालन करें, लेकिन रिजल्ट बताता है कि इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया। यह स्कूल प्रबंधन की शिथिलता और लापरवाही का नतीजा है। जिन स्कूलों से स्पष्टीकरण मांगा गया है, यदि वे संतोषजनक जवाब नहीं देते हैं, तो उनके प्रधानाचार्यों के खिलाफ सरकारी सेवक नियमावली के तहत कार्रवाई की जायेगी।
झारखंड में खोले गये हैं 80 सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस
झारखंड में 80 सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस संचालित हैं। हर जिले में कम से कम दो से तीन ऐसे स्कूल हैं। झारखंड के सरकारी स्कूलों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की गयी है। इनमें पहली से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है। 27 स्कूलों में नौवीं से 12वीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। 48 स्कूलों में कक्षा छह से 12वीं तक और चार स्कूलों में कक्षा एक से 12वीं तक की पढ़ाई होती है। एक स्कूल में कक्षा एक से 10वीं तक की पढ़ाई होती है। इन स्कूलों में 12 हजार बच्चे पढ़ते हैं। हर साल इसमें नामांकन के लिए 35 से 40 हजार बच्चों के बीच लिखित परीक्षा आयोजित की जाती है और मेरिट लिस्ट के आधार पर नामांकन होता है।
शिक्षा गुणवत्ता सुधार की थी मंशा
राज्य में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की शुरूआत की गयी थी। इन स्कूलों में डिजिटल क्लासरूम, स्मार्ट बोर्ड, आधुनिक लाइब्रेरी और विज्ञान प्रयोगशालाएं जैसी सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी थीं। सरकार की मंशा थी कि ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के विद्यार्थियों को भी उच्चस्तरीय शिक्षा मिल सके।
खराब रिजल्ट के संभावित कारण
खराब रिजल्ट के कई अलग-अलग कारण बताये जा रहे हैं। इनमें प्रमुख है शिक्षकों की कमी। कई बार शिकायतें आयी हैं कि इन स्कूलों में शिक्षकों की पर्याप्त नियुक्ति नहीं हो सकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल तकनीकी संसाधनों से शिक्षा की गुणवत्ता नहीं सुधर सकती, जब तक कि मानव संसाधन और प्रशिक्षण पर समान रूप से ध्यान न दिया जाये। सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की इस विफलता ने स्कूली शिक्षा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा किया है। सरकार की सख्ती इस बात का संकेत है कि शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर अब लापरवाही नहीं चलेगी। हालांकि दीर्घकालिक सुधार के लिए नीतिगत बदलाव और शिक्षकों की पर्याप्त नियुक्ति भी उतनी ही आवश्यक है।
जैक बोर्ड के रिजल्ट में भी पिछड़े कई जिले
इसके अलावा जैक बोर्ड के इंटरमीडिएट साइंस और कॉमर्स का रिजल्ट भी जारी हो चुका है। कई जिलों का जहां प्रदर्शन बेहतर रहा है, वहीं कई जिले निचले पायदान पर रहे। स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग अब खराब रिजल्ट वाले जिलों के साथ-साथ स्कूलों पर कार्रवाई करने की तैयारी कर रहा है। खराब रिजल्ट वाले तीन से पांच जिले और 60 फीसदी से कम रिजल्ट वाले संस्थानों से स्पष्टीकरण पूछा जायेगा। जिलों को एक सप्ताह में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया जायेगा और किन कारणों से परिणाम खराब हुआ है, यह भी देखा जायेगा। शिक्षकों और संसाधनों के बावूजद अगर छात्र-छात्रा असफल हुए होंगे, तो संबंधित स्कूलों के प्राचार्य या प्रभारी प्रधानाध्यापक पर विभागीय कार्रवाई की जायेगी।
उचित है राज्य सरकार की चिंता
तमाम संसाधन देने के बावजूद यदि स्कूलों का रिजल्ट खराब होता है, तो यह चिंता की बात है। हेमंत सोरेन सरकार ने स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए जितनी कोशिश की है, उसकी जितनी भी तारीफ की जाये, कम है। इसके बावजूद यदि रिजल्ट खराब हो रहा है, तो इसके लिए जिम्मेवारी तय करनी होगी। स्कूली शिक्षा किसी भी समाज के भविष्य की नींव होती है और इसे किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं होने दिया जा सकता है। हेमंत सरकार इसे समझती है।