“1992 के बाद वित्तीय वर्ष 2016-17 में कार्पोरेट निवेश की गति सबसे धीमी हो गई है। विश्लेषकों का कहना है कि अर्थव्यवस्था में खराब मांग और नए परियोजनाओं को ऋण देने के लिए बैंकों की अनिच्छा से यह गिरावट आई है।”

अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक 1992 के बाद वित्तीय वर्ष 2016-17 में कॉर्पोरेट क्षेत्र के नए निवेश में धीमी गति से वृद्धि दर्ज की गई है। विश्लेषकों का मानना है कि यह गिरावट अर्थव्यवस्था की खराब मांग और नए परियोजनाओं को उधार देने के लिए बैंकों की अनिच्छा के कारण हो रही है।

इक्विनोमिक्स रिसर्च एंड एडवाइजरी के संस्थापक और प्रबंध निदेशक जी चोक्कलिंगम ने इसकी वजह बताते हुए कहा, “सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने जोखिम भरे परियोजनाओं के लिए नए ऋण को रोक दिया है।”

मौजूदा वित्त वर्ष में शीर्ष 1,000 कंपनियों द्वारा 2.07 लाख करोड़ रुपये का नया निवेश आया, जोकि 2016 के 2.9 लाख करोड़ रुपये से नीचे था। वहीं वित्त वर्ष 2014 में 5.7 लाख करोड़ रुपये का निवेश आया जो कि सबसे अधिक था।

2016 में सूचीबद्ध निजी कंपनियों की वृद्धिशील पूंजीगत व्यय 2.15 लाख करोड़ रुपये थी। यह पिछले वित्तीय वर्ष में करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये था। यह राशि 2012 में दर्ज की गई उच्चतम रिकॉर्ड का एक तिहाई है और 10 वर्षों में सबसे कम है।

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