रांची: एक कलछी नीला पाउडर, दो कलछी नारंगी पाउडर, थोड़ा सा गुड़, चीनी, सोडा, साबूदाना और एक गिलास लिक्विड वैसलीन मिला कर बनाये जा सकते हैं घातक बम। इनके अनुपातों में बस थोड़ा सा फेर-बदल और कर दें तो बन जाते हैं लैंड माइंस, टिफिन बम एवं प्रेशर कूकर बम। ये विस्फोटक बड़े इलाकों को थर्रा देने की क्षमता रखते हैं। नक्सली इन दिनों इसी विधि का इस्तेमाल कर रहे हैं। विज्ञान जानने वाले भले ही इन विधियों से भ्रमित हो जायें, लेकिन नक्सली इसके जरिये गांवों के अनपढ़ एवं कम पढ़े-लिखे लोगों को घातक बम बनाना सिखाकर विस्फोट करा रहे हैं।

आइबी ने जारी किया अलर्ट
झारखंड सहित विभिन्न राज्यों में सक्रिय नक्सलियों ने वैसलीन, अलकतरा, खाद, दवा और आइसिंग शुगर जैसी सामग्री से देसी केमिकल बम बनाने की तकनीक विकसित कर ली है। वे इस बम का इस्तेमाल सुरक्षा बलों पर हमले के लिए कर सकते हैं। नया केमिकल बम बारूदी सुरंग के स्थान पर इस्तेमाल किये जा सकते हैं। यह सूचना खुफिया ब्यूरो ने उग्रवादग्रस्त राज्यों को दी है। नक्सल मामलों के सुरक्षा सलाहकार ब्रिगेडियर आरके सिंह ने उग्रवादग्रस्त राज्यों को भेजे पत्र में कहा है कि नक्सलियों ने केमिकल बम बनाने की तकनीक हासिल कर ली है और अब उनके पास देसी बम हैं।

सफल हुए नक्सली तो गांव-गांव में तैयार होंगे खतरनाक कैडर:
पुलिस इसे बड़ी गंभीरता से ले रही है, क्योंकि अगर नक्सली अपनी इस मुहिम में सफल रहे तो गांव-गांव में उनका ऐसा कैडर तैयार हो सकता है, जो कहीं भी, कभी भी विध्वंसक घटनाओं को अंजाम दे सकता है। जिस पर लगाम कसना पुलिस के लिए भी चुनौती साबित होगी। बम बनाने के इस तरीके में नक्सलियों को किसी प्रशिक्षण की जरूरत नहीं होती है।

देसी केमिकल बम के विकास के पीछे जिलेटिन के स्टॉक में आयी कमी को कारण बताया गया है। पत्र में कहा गया है कि बारूदी सुरंग के विस्फोट में नक्सली जिलेटिन का इस्तेमाल करते थे, लेकिन हाल के दिनों में पुलिस की सख्ती के कारण उनके पास जिलेटिन की कमी हो गयी है। इसके बाद नक्सलियों ने स्थानीय स्तर पर आसानी से उपलब्ध रसायनों से केमिकल बम बनाने की तकनीक विकसित की और अब इसके इस्तेमाल के लिए पूरी तरह तैयार हैं। इन रसायनों का इस्तेमाल नये विस्फोटक में अमोनियम नाइट्रेट और पोटाशियम क्लोराइड (रासायनिक उर्वरक) के अलावा मैग्निशियम पाउडर (गन पाउडर), पोटाशियम डाइक्लोरोमेट (दवा), कोलतार, डीजल, पेट्रोलियम जेल (वैसलीन), आइसिंग शुगर, मोमबत्ती बनाने वाला मोम जैसे रसायनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

पाइप में भर कर जमीन के नीचे छुपा देते हैं बम को
नक्सली रासायनिक मिश्रण से विस्फोटक तैयार करने लगे हैं। इस मिश्रण को लोहे की पाइप में भरकर उसे बम का आकार दिया जाता है। रसायन भरी पाइप को जमीन के नीचे छिपा दिया जाता है और बाद में विस्फोट कराया जाता है। विस्फोट के लिए क्लेमोर माइंस की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। पत्र के अनुसार बारूदी सुरंग के मुकाबले केमिकल बम की मारक क्षमता काफी कम है, लेकिन इसकी आसान उपलब्धता इसे अधिक खतरनाक बना सकती है। चूंकि ये सामग्री स्थानीय स्तर पर आसानी से उपलब्ध हैं, इसलिए इनका कारोबार करने वालों पर नजर रखने की सलाह दी गयी है।

बड़े कैडर सीडी दिखा कर सिखा रहे बम बनाना
विस्फोटक बनाने में काम आने वाले केमिकल, रासायनिक गुणों के आधार पर अलग-अलग रंगों के होते हैं, लेकिन बम बनाने में इनके अनुपात का खासा महत्व होता है। अगर रसायनों की पहचान नहीं है, तो आम आदमी को रंगों से उसकी विशिष्टता समझायी जा सकती है। नक्सली इसी आधार पर काम कर रहे हैं। विस्फोटकों के साथ ऐसे आसान फार्मूले मिले हैं, जिसमें केमिकल के अलावा आवश्यक उपकरणों में घरेलू बर्तनों जैसे कलछी, गिलास आदि से ही काम चल जाता है। जो थोड़े पढ़े-लिखे हैं उनके लिए बम बनाने की आसान विधि वाली किताबें और अनपढ़ों के लिए वीडियो सीडी, जिसे देखकर वे आसानी से विस्फोटक बना सकते हैं।

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