किगाली। दो बड़े एशियाई देश जब अपनी रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के तहत किसी दूसरे देश पहुंचे तो क्या करना चाहिए? निश्चित तौर पर दोनों ही देशों को गले लगाने का विकल्प सबसे बेहतर साबित होगा और अफ्रीकी देश रवांडा ऐसा करने में कामयाब भी रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को रवांडा की दो दिवसीय यात्रा पर गए थे और जब वह पहुंचे, उससे कुछ ही देर पहले चीन के राष्ट्रपति रवांडा का दौरा कर रवाना हुए थे। भारत-चीन दोनों ही रवांडा में रुचि ले रहे हैं और खास बात यह है कि रवांडा भी इन दोनों देशों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाते हुए अपने लिए फायदेमंद समझौते करने में कामयाब रहा।
अफ्रीका में कुछ तो खास है ऐसे ही चीन और भारत का इतना महत्व देना ये आम बात नहीं है। और रही बात चीन की उसकी साफ नीति है वो किसी भी कीमत पर भारत को स्वयं से आगे नहीं देखना चाहता।
रवांडा में दो दिन तक रहे पीएम मोदी ने इस देश को 20 करोड़ डॉलर का कर्ज देने का वादा किया है। इसमें से आधे धन का इस्तेमाल रवांडा सिंचाई व्यवस्था विकसित करने और बाकी आधे का स्पेशल इकनॉमिक जोन (SEZ) बनाने में करेगा। भारत ने पिछले साल भी रवांडा को 12 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया था। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि नया कर्ज इससे अलग है या इसी का हिस्सा।
रवांडा में क्या है खास?
दरअसल, रवांडा अफ्रीका की तीसरी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और अर्थव्यवस्था के विकास ने सामाजिक और राजनीतिक मानकों में भी सुधार किया है। ज्यादा प्राकृतिक संसाधन न होने के बावजूद, इस देश की भौगोलिक स्थिति इसे बाकी अफ्रीका में व्यापार बढ़ाने के लिए खास बनाती है। 55 अफ्रीकी देशों वाले अफ्रीकन यूनियन का अध्यक्ष इस बार पॉल कगामे को चुना गया है, जो रवांडा के राष्ट्रपति हैं। इसलिए रवांडा को बाकी अफ्रीकी देशों में व्यापार के दरवाजे खोलने वाले चाबी माना जा रहा है।