रांची. देश के 2021 के राष्ट्रीय जनगणना फाॅर्म में देश में निवास करने वाले 12 करोड़ से अधिक प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग को लेकर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन रांची रविवार को किया। इस सेमिनार में नाम को लेकर चले रहे विवाद को सुलझाते हुए आदिवासी धर्म (संक्षिप्त में आदि धर्म) दर्ज कराने की सहमति बनी। अब इस मुद्दे लेकर विभिन्न राज्यों में सेमिनार आयोजित होने के बाद दिल्ली कूच करने की तैयारी का आह्वान किया गया। दिल्ली में रैली, सेमिनार तथा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री एवं रजिस्ट्रार जनरल से मिलने की बातें कही गई। इस सेमिनार में झारखंड, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान आदि राज्यों से जनजातीय प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता झारखंड सरना महासभा के मुख्य संयोजक पूर्व मंत्री देव कुमार धान ने किया।
नाम का विवाद नहीं होता तो 2008 में ही मिल जाता धर्म कोड : डाॅ. रामेश्वर उरांव
सेमिनार में बोलते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डाॅ. रामेश्वर उरांव ने कहा कि नाम पर अगर विवाद नहीं होता तो 2008 में ही धर्म कोड मिल जाता। रजिस्ट्रार जनरल भारत सरकार से जब उनके नेतृत्व में शिष्टमंडल मिला तो जवाब मिला कि कोड देने में कोई दिक्कतें नहीं है। मगर 600 से अधिक नाम के लिए आवेदन आता है। इसलिए सर्वसम्मति से एक नाम पर विचार करें।
आदिवासियों को बंदर-भालू कहने वाले लोग हिंदू-सनातन का अंग कैसे बताने लगे : चांपिया
बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष देवेंद्र नाथ चांपिया ने कहा कि एक साजिश के तहत संविधान में आदिवासी शब्द के बदले जनजातीय शब्द का इस्तेमाल किया गया। क्योंकि सबको पता था कि आदिवासी ही भारत का मूल निवासी है। जो लोग आदिवासी को बंदर-भालू, राक्षस और जंगली कहते थे, वैसे लोग आज इन्हें हिंदू एवं सनातन का हिस्सा बताने लगे हैं।
44 लाख जैन का अलग कोड तो 12 करोड़ आदिवासियों को क्यों नहीं : धान
सरना महासभा के मुख्य संयोजक देवकुमार धान ने कहा कि जब देश में निवास करने वाले 44 लाख जैन धर्म अनुयायियों को अलग धर्म कोड हो सकता है तो फिर पूरे देश में निवास करने वाले 12 करोड़ से अधिक प्रकृति पूजक आदिवासियों का अलग धर्म कोड क्यों नहीं हो सकता है। बस जरूरत है एकजुट होकर मांग करने को।
इन राज्यों के लोगों ने भी किया संबोधित
झारखंड से देवकुमार धान, डाॅ. करमा उरांव, छत्रपति शाही मुंडा, चित्रसेन सिंकू, प्रो प्रवीण उरांव, जयपाल उरांव, वीरेंद्र भगत, बिहार से सत्यनारायण सिंह ओयमा, शिवम कुमार शाह, गुजरात से लालू भाई वासवा, महाराष्ट्र के पी के टी गावित, उड़ीसा से घनश्याम मडावी, छत्तीसगढ़ के अरविंद सिट्टा, उत्तर प्रदेश के अरविंद शाह भरावी, पश्चिम बंगाल के काली शाह मडावी, राजस्थान के हरि सिंह मीणा सहित अभयभुट कुंवर, शिवसिंह खेरवार, वचन सिंह चैरो, बिरसा उरांव, पुना उरांव, अमित उरांव, जुगल किशोर पिंगुआ आदि ने अपने-अपने विचार रखे।