नई दिल्ली। डिजिटल इकॉनमी की ग्रोथ पर बनी सरकारी समिति का कहना है कि जाति-धर्म, पासवर्ड, सेक्शुअल प्रेफरेंस, आधार और टैक्स डीटेल, ये सब ‘संवेदनशील पर्सनल डेटा’ हैं और बिना स्पष्ट सहमति के इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में बनी कमिटी ने डेटा प्रोटेक्शन लॉ का उल्लंघन करनेवाली कंपनियों पर 15 करोड़ रुपये से लेकर उनके दुनियाभर के कारोबार के कुल टर्नओवर का 4% तक का जुर्माना लगाने का सुझाव दिया है।

कमिटी ने डेटा प्रोटेक्शन लॉ को लेकर कहा, ‘(यूजर को उसकी) सहमति की जानकारी होनी चाहिए, सहमति स्पष्ट होनी चाहिए और सहमति को वापस लेने का भी लोगों के पास अधिकार होना चाहिए।’ यह रिपोर्ट शुक्रवार को आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद को सौंप दी गई। कमिटी का कहना है कि इंटरनेट के ग्राहकों को अपने डेटा तक पहुंचने का अधिकार होना चाहिए। कमिटी ने बिना जानकारी के डेटा में बदलाव किए जाने को लेकर भी चिंता जताई और ऐसा रोकने के लिए सुझाव दिए।

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