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    Home»Top Story»राजनीति के मैदान में नौकरशाहों की इंट्री
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    राजनीति के मैदान में नौकरशाहों की इंट्री

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJuly 26, 2019No Comments4 Mins Read
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    दर्जनभर आइपीएस अधिकारी चुनाव लड़ने की तैयारी में

    राजनीति के दंगल में दिख रही दावेदार अधिकारियों की लंबी कतार
    ताजा खबर है कि राज्य के एडीजीपी वायरलेस रेजी डुंगडुंग का वीआरएस स्वीकृत हो गया है और अब वह राजनीति के अखाड़े में उतरेंगे। रेजी डुंगडुंग राज्य के चर्चित अधिकारी रहे हैं। दबंग पुलिसवाले के रूप में उनकी पहचान रही है। पर इस चुनाव में वह अकेले एसे अधिकारी नहीं होंगे। झारखंड विधानसभा चुनाव में इस बार कई आइपीएस अधिकारी भी दांव आजमाते दिखेंगे। कई नौकराशाह पहले से ही राजनीति के इस दंगल में उतर चुके हैं, तो कई ने अपना दांव आजमाने की तैयारी शुरू कर दी है। राज्य के पूर्व डीजीपी बीडी राम तो पहले से ही इस मैदान में हैं और अपनी दूसरी संसदीय पारी खेल रहे हैं। वहीं, राज्य के पूर्व गृह सचिव जेबी तुबिद भी लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। पहले प्रयास में तो वह जनता की कसौटियों पर उतरने में असफल रहे थे। पार्टी में प्रवक्ता का पद संभाल रहे तुबिद इस बार भी चाईबासा से भाजपा के उम्मीदवार हो सकते हैं। वहीं, पूर्व डीआइजी लक्ष्मण प्रसाद सिंह राजधनवार से भाजपा के प्रबल दावेदार बताये जा रहे हैं। पूर्व डीजी राजीव कुमार पहले ही वीआरएस लेकर पलामू में इंट्री कर चुके हैं। कांग्रेस के टिकट के लिए लोकसभा चुनाव में उन्होंने मशक्कत भी थी। इसी तरह दमदार पुलिस अधिकारी के रूप में छवि बनानेवाले डॉ अरूण उरांव तो अपनी योग्यता छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में साबित भी कर चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में लोहरदगा से कांग्रेस के टिकट को लेकर उनका नाम भी आगे आया था, परंतु अंतिम दौर में टिकट उनके हाथ से फिसल गया। चर्चा है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उन्हें अपने प्रत्याशी के रूप में उतार सकती है। कांग्रेस में रिटायर पुलिस अधिकारियों की कतार भी कम लंबी नहीं है। राजीव कुमार और डॉ अरुण उरांव को छोड़ दें, तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार पूर्व आइपीएस रहे हैं। वह सांसद भी रह चुके हैं और अब उनकी गिनती माहिर राजनीतिज्ञों में होती है। संभावना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वह भी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में दिखें। इसके अलावा शीतल उरांव, हेमंत टोप्पो, मुटुकधारी महतो जैसे अधिकारी भी आज राजनीति में सक्रिय हैं। उधर, प्रशासनिक सेवा छोड़कर आये लंबोदर महतो आजसू के गिने-चुने चर्चित नेताओं में हैं और गोमिया विधानसभा के उप चुनाव में पार्टी के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। आगामी चुनाव में उनकी उम्मीदवारी भी तय मानी जा रही है।
    कई अधिकारियों को मिली नाकामी
    ऐसा नहीं है कि जो भी अधिकारी आया, वह राजनीति में सितारा ही बना। कई अधिकारियों के लिए राजनीति टेढ़ी खीर साबित हुई है। बीसीसीआइ के कार्यकारी सचिव अमिताभ चौधरी भी पूर्व आइपीएस हैं और इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी किसी से छुपी नहीं है। 2014 के लोकसभा चुनाव में इन्होंने झाविमो के टिकट पर अपना भाग्य आजमाया पर विफल रहे। इतनी हीं नहीं, अपनी जीत के लिए ये इतना आतुर थे कि हो हंगामें में शामिल रहने की वजह से आज कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं। गुमला से कांग्रेस की टिकट पर पूर्व एडीजीपी रामेश्वर उरांव केंद्रीय राज्यमंत्री के पद तक पहुंचे, पर आज वे कहीं नहीं दिखते। उन्होंने 2014 में लोहरदगा से कांग्रेस के टिकट पर अपनी किस्मत आजमायी, पर नाकाम रहे। पूर्व डीआइजी सुबोध कुमार आजसू की टिकट पर गोड्डा से चुनाव लड़े, पर हारने के बाद राजनीतिक पटल से ही गायब हो गये। एजाज बोदरा झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर सिसई विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे थे। वह इस्तीफा देकर सियासी पारी खेलने उतरे और उन्हें बीजेपी के दिनेश उरांव से हार का सामना करना पड़ा।
    निष्कर्ष
    पुलिस या किसी और अधिकारी का राजनीति में आना गलत नहीं है, पर रिटायर होने के बाद या वीआरएस लेकर राजनीतिक पारी शुरू करनेवाले अधिकारी पुराने तथा समर्पित कार्यकर्ताओं के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। बात किसी एक दल की नहीं है। सभी राजनीतिक दलों में ऐसे राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखनेवाले अधिकारियों की इंट्री हो रही है। अपना पूरा जीवन राजनीतिज्ञों के इर्द-गिर्द गुजारनेवाले ये नौकरशाह जनता, राज्य और देश का कितना भला करेंगे, यह कहना तो मुश्किल है। सारी जिदंगी नौकरशाही करनेवाले इन अधिकारियों को आते ही टिकट देना, उम्मीदवार बना देना कार्यकर्ताओं को नहीं पचता। क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी हकमारी हो रही है। वहीं संख्या बल के आगे राजनीतिक दल भी नतमस्तक हैं। उन्हें हर हाल में कुर्सी चाहिए और कुर्सी के लिए चेहरा। चेहरा चाहे किसी का हो, अगर जीतवाला है, तो उसका स्वागत है। समर्पित कार्यकर्ताओं की बात तो अब उदाहरण मात्र के लिए रह गयी है।

    Entry of bureaucrats in the field of politics
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