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    Home»Top Story»सिरफुटव्वल के दलदल में फंसी झारखंड कांग्रेस
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    सिरफुटव्वल के दलदल में फंसी झारखंड कांग्रेस

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJuly 20, 2019No Comments6 Mins Read
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    नेताओं के नहीं मिल रहे दिल, सब कुछ ठीक-ठाक नहीं

    झारखंड में कांग्रेस के विधायकों की संख्या आठ है। साथ ही झारखंड कांग्रेस में बड़े नाम और प्रभाव वाले नेताओं की कमी नहीं है, लेकिन इन नेताओं के दिल कभी मिले नहीं। और दल के लिए जी जान से जुटे नहीं। हालांकि राहुल गांधी के इस्तीफे को लेकर संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस का यह हाल कमोबेश दूसरे राज्यों में भी है, लेकिन झारखंड में पार्टी की मुश्किलें कहीं ज्यादा नजर आती हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान लामबंदी की जो कोशिशें की गयी थीं, वे भी बिखरती नजर आ रही हैं। कांग्रेस के सामने यह हाल उस दौर में है जब बीजेपी-आजसू ने लोकसभा चुनाव में राज्य की 14 में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की है और 63 विधानसभा क्षेत्रों में विपक्षी दलों से बढ़त ली है। अलबत्ता बीजेपी को मिले वोट ने कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों को सकते में डाल रखा है।
    हालांकि लोकसभा चुनाव में मिली हार की जिम्मेदारी लेते हुए अजय कुमार ने कांग्रेस आलाकमान को पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया हैं, लेकिन अभी तक उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ है। ऐसे में कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने अजय कुमार के खिलाफ अभियान तेज कर दिया है।
    कलह पर तफ्सील से चर्चा से पहले थोड़ा पीछे लौटते हैं
    पिछले साल के अंत में तीन हिंदी पट्टी राज्यों, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के बाद कांग्रेस उत्साह से लबरेज थी और इन कोशिशों में जुटी कि झारखंड में भी पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी। इसी सिलसिले में लोकसभा चुनाव से पहले दो मार्च को राहुल गांधी की रांची में कांग्रेस की रैली हुई थी। रैली असरदार भी रही। विपक्ष के नेताओं ने भी राहुल के साथ मंच साझा किया। बेशक राहुल गांधी की रैली ने झारखंड कांग्रेस में उत्साह भरा और विपक्ष को भी लामबंद किया, लेकिन लोकसभा चुनाव की तिथि नजदीक आने के साथ ही कांग्रेस की रणनीतिक कमजोरियां झलकने लगीं और फिर नतीजे आये तो सारे मंसूबों के बुलबुले मानो धड़ाधड़ फूटते चले गये। परिणाम आने के बाद सबसे पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार निशाने पर आये और इसके बाद प्रदेश के बड़े नेताओं के बीच दूरियां बढ़ती चली गयीं। लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन के बीच कांग्रेस के हिस्से सबसे अधिक सात सीटें आयी थीं, लेकिन उसे सिर्फ एक सीट चाईबासा में जीत मिली। हालांकि माना जाता है कि कांग्रेस की इस जीत की वजह गीता कोड़ा और मधु कोड़ा की दमदारी थी।
    कांग्रेस का हाल बिन पतवार की नाव जैसी
    लोकसभा नतीजे के बाद झारखंड में कांग्रेस का हाल बिन पतवार की नाव जैसी हो गयी है। उधर लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद पहली बार आठ जून को झारखंड पहुंचे कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह को रांची में कार्यकर्ताओं के उबाल का सामना करना पड़ा। कांग्रेस भवन में प्रभारी के पहुंचने के साथ ही कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी की और डॉ अजय कुमार गो बैक के नारे लगाये। हालांकि प्रभारी ने सबकी बातें सुनीं और जिलाध्यक्षों के साथ बैठक की। जिलाध्यक्षों से उन्होंने विधानसभा चुनाव के बाबत 30 जून तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा। लेकिन इतना भर से विधानसभा चुनाव की मोर्चाबंदी की गुंजाइश नहीं दिखती। लेकिन बड़े नेताओं के बीच संवाद और समन्वय किसी छोर पर दिखाई नहीं पड़ता है।
    जाहिर है इसे झंझावात से गुजरना कहा जा सकता है। जबकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिले 83 लाख वोटों के रिकॉर्ड के बीच मौजूदा राज्य में सत्तारूढ़ रघुवर दास की सरकार के खिलाफ कोई ज्यादा जनभावना नजर नहीं आ रही और जो आ रही है उसे भुनाने की क्षमता कांग्रेस या विपक्ष में फिलहाल नहीं दिख रही है।
    शुरू से निशाने पर रहे हैं डॉ अजय
    दिल्ली दरबार में सीधे इंट्री के कारण डॉ अजय कुमार को झारखंड की कमान तो दे दी गयी, लेकिन कभी भी वह सेफ नहीं रहे। झारखंड के दिग्गज नेता उन्हें कभी पचा नहीं पाये। डॉ अजय भी अपनापन का भाव नहीं दिखा पाये। इसी का नतीजा रहा कि शुरू से ही डॉ अजय झारखंडी नेताओं के निशाने पर रहे। इसी बीच लोकसभा चुनाव का परिणाम बड़ा हथियार दे दिया। हालांकि यह भी सच है कि प्रदेश प्रभारी डॉ आरपीएन सिंह अपने लोकसभा चुनाव में व्यस्त रहे। उन्होंने झारखंड मे अपने प्रत्याशियों की सुध नहीं ली। प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी की टीम एक साथ काम करती हुई धरातल पर नजर नहीं आयी। एक साथ काम करना तो दूर संगठन के प्रति उनकी दिलचस्पी कुछ खास नजर नहीं आयी है। नतीजतन दोनों नेताओं पर पार्टी को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया।
    कलह की वजह से भंवर में फंसी कांग्रेस की गाड़ी
    अब सवाल है कि झंझावातों को झेल रही कांग्रेस आखिर कैसे अगले चार महीने में होनेवाले चुनाव में खुद को पूरी तरह तैयार कर पायेगी। आलम यह है कि चुनाव तो दूर अभी आपसी कलह के कारण ही कांग्रेस की गाड़ी भंवरजाल में फंस गयी है। या यूं कहा जाये कि दलदल में फंसी कांग्रेस के नेताओं का दिल नहीं मिल रहा है, तो गलत नहीं होगा। इसके बावजूद कांग्रेस समेत विपक्षी दल इस मुगालते में हैं कि विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव की तसवीर नहीं दिखेगी। यही मुगालता लोकसभा चुनाव के पहले भी कांग्रेस समेत विपक्ष ने पाल लिया था। नतीजा सबके सामने है।
    अब जबकि विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने पूरी शक्ति झोंक दी है। मोदी की प्रचंड लहर पर सवार भाजपा को यह गुमान है कि विधानसभा चुनाव में इससे भी ज्यादा विपक्ष की दुर्गति होगी। इसके लिए बीजेपी तरकश का कोई तीर खाली नहीं छोड़ना चाहती है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इन परिस्थितियों में कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष की डगर लोकसभा से ज्यादा कठिन होनेवाला है।
    यह इसलिए कि जहां एक ओर भाजपा के पदाधिकारी संगठन को और धारदार बनाने के लिए मैराथन कार्यक्रम कर रहे हैं, हर सप्ताह आलाकमान के दूत झारखंड पहुंच रहे हैं, वहीं कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता रांची से दिल्ली कूच कर गये हैं। कोई चेहरा बदलवाना चाहता है, तो कोई अपनी गोटी फिट करना चाहता है।
    सुबोधकांत सहाय, प्रदीप बलमुचू, आलमगीर आलम सहित कई दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। कोई डॉ अजय के पक्ष में, तो कोई विरोध में। इसके बीच एक बड़ा तबका कांग्रेस के इतर दूसरे दलों में अपनी जगह तलाश रहा है। अभी यह सार्वजनिक नहीं हुआ है, लेकिन जानकारों का मानना है कि एक दिन झारखंड में कांग्रेस के अंदर ऐसी भगदड़ होगी कि गर्दा उड़ जायेगा।

    Jharkhand Congress stranded in the swamp of headfight
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