अजय शर्मा
रांची। पुलिस पोषित प्रतिबंधित संगठन तृतीय प्रस्तुति कमेटी (टीपीसी) पूरे झारखंड से तीन साल के अंदर 10.97 अरब रुपये की वसूली कर चुका है। टीपीसी के उग्रवादी टंडवा के आम्रपाली इलाके में कोयला परिवहन में शामिल व्यवसायियों से प्रतिटन 254 रुपये की वसूली करते हैं। हर दिन 40 हजार टन कोयले का उठाव आम्रपाली परियोजना से होता है। इस हिसाब से तीन साल में 43.20 लाख टन का उठाव हुआ है। इससे 10 अरब 97 करोड़ 28 लाख रुपये की वसूली की गयी है। इसकी जानकारी पुलिस के आला अधिकारियों को भी है। कई बैठकों में इस पर रोक लगाने के आदेश जारी किये गये। टंडवा इलाके में इसे दबंग कमेटी का नाम दिया गया है, जो अवैध वसूली करती है। कुछ दिन पहले इस कमेटी को कागज पर भंग तो कर दिया गया, लेकिन वसूली अब भी जारी है। वर्ष 2016, 17 और 18 में इस रकम की वसूली की गयी है। इस रकम को सीसीएल, टीपीसी, पुलिस, मीडिया, सुरक्षाकर्मी, प्रदूषण विभाग, लोडर और कमेटी सदस्यों के बीच बांटा जाता है। राज्य की एक सुरक्षा एजेंसी ने इस बाबत एक रिपोर्ट तैयार की है। उसे सरकार को नहीं भेजा गया। पुलिस अधिकारियों ने उस रिपोर्ट दाखिल-दफ्तर कर दिया। आजाद सिपाही के पास यह पूरी रिपोर्ट है, जिसमें लेन-देन का पूरा हिसाब किताब है।
किसको कितना मिलता है हिस्सा
जांच रिपोर्ट में अवैध वसूली का जो हिसाब दिया गया है, उसके अनुसार तीन साल में कुल 10 अरब 97 करोड़ 28 लाख रुपये की वसूली की गयी है। इस रकम के बंटवारे का हिसाब बेहद दिलचस्प है।
पूरी वसूली : 254 रुपये प्रति टन
सीसीएल अधिकारी : आम्रपाली और मगध परियोजना प्रबंधन के अधिकारियों को 39 रुपये प्रतिटन के हिसाब से हिस्सा मिलता है। इस तरह तीन साल के दौरान उन्हें एक अरब 64 करोड़ 80 लाख रुपये मिले।
टीपीसी : सीसीएल में टीपीसी संगठन द्वारा कोयला परिवहन करनेवाले उद्योगपतियों से प्रतिटन 102 रुपये की वसूली की जाती है। तीन साल में इस संगठन को चार अरब 40 करोड़ 64 लाख रुपये मिले।
वसूली करनेवाली कमेटी : अवैध वसूली करनेवाली कमेटी को 32 रुपये प्रति टन के हिसाब से हिस्सा दिया जाता है। तीन साल में उसे एक अरब 38 करोड़ 24 लाख रुपये मिले।
रैयत : हिस्सा प्रभावित रैयतों में भी बांटा जाता है। उन्हें 25 रुपये प्रति टन का हिस्सा मिलता है। इस हिसाब से तीन साल में प्रभावितों के बीच एक अरब 80 लाख रुपये बांटे गये।
झारखंड पुलिस: अवैध वसूली में 15 रुपये प्रति टन का हिस्सा पुलिस को भी मिलता है। इस हिसाब से कुल 64 करोड़ 80 लाख रुपये पुलिसवालों को दिये गये।
लोडर: कोयला लोड करनेवाले लोडर को 30 रुपये प्रति टन दिये जाते हैं। इस हिसाब से लोडरों को तीन साल में एक अरब 29 करोड़ 60 लाख रुपये दिये गये।
मीडिया: इलाके के मीडियाकर्मियों को प्रति टन पांच रुपये बतौर हिस्सा मिलता है। इस हिसाब से तीन साल में उन्हें 21 करोड़ 60 लाख रुपये दिये गये।
पुलिस का सहयोगी विभाग: अवैध वसूली में पुलिस के एक सहयोगी विभाग को दो रुपये प्रति टन का हिस्सा मिलता है। तीन साल में इस विभाग को आठ करोड़ 64 लाख रुपये दिये गये।
सुरक्षा गार्ड : कोयला ट्रांसपोर्टिंग से होनेवाली अवैध वसूली में सीसीएल के सुरक्षा गार्डों को दो रुपये प्रति टन के हिसाब से हिस्सा मिलता है। इस हिसाब से तीन साल में उन्हें भी आठ करोड़ 64 लाख रुपये दिये गये।
प्रदूषण विभाग: इस अवैध वसूली में प्रदूषण विभाग को भी दो रुपये प्रति टन की दर से हिस्सा मिलता है। तीन साल में उसे भी आठ करोड़ 64 लाख रुपये मिले।