वैश्विक महामारी कोरोना की मार से दुनिया भर में तबाही मची है। यह रोजगार छिन जाने का खतरा, आर्थिक संकट, विकास रूक जाने जैसी समस्याओं को भी जन्म दे दिया है। चार महीने से बेरोजगार बैठे लोगों की मानसिक पीड़ा का अनुभव भी भयावह है। गरीब और आर्थिक तंगी वाले, पढ़ाई से वंचित छात्र, परदेश से कमाई छोड़ कर आए लोगों की पीड़ा बयां करने लायक नहीं है। कोरोना संकट की चौतरफा मार झेल रहे मानव को इससे उबारने के लिए दुनिया भर में प्रयास जारी है।
मानव शास्त्री, वैज्ञानिक, डॉक्टर एवं सरकार इससे उबरने और बाद की उपजी परिस्थितियों के अध्ययन में लगे हुए हैं। काम धंधा बंद होने के बाद आर्थिक परेशानी झेल रहे श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने भी विभिन्न तरह की योजना शुरू किया है। उद्योग-धंधा के मालिक अपने श्रम शक्ति का साथ छूटने पर उसे बहला-फुसलाकर पुनः काम शुरू करवाने में लगे हुए हैं। लेकिन इन सारी कवायद के बाद भी परदेसी प्रवासियों के घर आने और काम नहीं मिलने पर फिर प्रदेश लौटने का सिलसिला लगातार जारी है। लेकिन घर लौट रहे प्रवासियों के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया आत्मनिर्भर भारत योजना और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान ने देश के विभिन्न शहरों में रह रहे बिहारी श्रमिकों को एक नई आशा का संचार किया है। इस दोनों योजना के संबंध में विभिन्न स्रोतों से जानकारी मिलने के बाद अब बड़ी संख्या में श्रमिक और कामगार अपना काम धंधा छोड़कर, दुकान बंद कर बेच कर गांव की ओर रुख कर चुके हैं।
दिल्ली, मुंबई और असम से बेगूसराय आ रही ट्रेन से बड़ी संख्या में प्रवासी घर वापस लौट रहे हैं। बेगूसराय के अलावे कई अन्य जिलों समस्तीपुर, दरभंगा, मुजफ्फरपुर के प्रवासी बेगूसराय तथा बरौनी स्टेशन पर उतर कर अपने अपने घरों की ओर जा रहे हैं। स्टेशन के बाहर आते ही इनके मन में एक नई आशा और उम्मीद का संचार होने लगता है, खुशी जताते हैं कि अब हम गांव आ गए हैं। रोसड़ा निवासी वीरेन्द्र सहनी, उपेन्द्र सहनी, रविन्द्र सहनी, लूखो सहनी एवं देव सहनी समेत 14 लोगों की टीम गुवाहाटी में कई साल से रहकर, मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे थे। कुछ लोग पाइलिंग के काम में लगे हुए थे तो कोई टाइल्स मिस्त्री और सीमेंट ईंट बनाते थे। लूखो सहनी ने वहां किराना की दुकान खोल रखी थी, सब मिलजुल कर एक जगह ही रहते थे। लॉकडाउन हो गया तो काम धंधा के साथ-साथ दुकान भी बंद हो गया। असम सरकार द्वारा किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलने के बावजूद यह लोग वहीं रह रहे थे। अनलॉक शुरू हुआ तो दुकान भी खुला और काम भी शुरू हो गया। लेकिन इसी बीच प्रधानमंत्री के गरीब कल्याण अभियान की जानकारी मिली तो गांव चले आए। लूखो सहनी ने बताया कि गांव से हम लोगों को लिए शुरू किए गए इस बड़े अभियान की जानकारी मिली, मोबाइल पर भी बहुत चीजें देखी, जिसके बाद दुकान बेच दिया। अब यहीं हम लोग सीमेंट का ईंट बनाने के लिए खुद का स्वरोजगार शुरू करेंगे। हम 14 लोगों की टीम है, सब लोग मिलजुल कर बनाएंगे-बेचेंगे और घर पर ही रह कर प्रधानमंत्री के सपनों को साकार करते हुए आत्मनिर्भर बनेंगे। अब किसी भी हालत में परदेस नहीं जाना है। अपने गांव में रहेंगे, घर के लोगों के साथ रहेंगे। वहां असम में एक तो कोरोना तेजी से बढ़ रही थी, ऊपर से कोई देखने वाला भी नहीं था