आजाद सिपाही संवाददाता
नयी दिल्ली/रांची। केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में बुधवार को नयी शिक्षा नीति पर मुहर लग गयी। नयी शिक्षा नीति में जनजाति शिक्षा में भी कई बदलाव किये गये हैं। जनजातीय मामलों और आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आश्रम शालाओं में और चरणबद्ध तरीके से वैकल्पिक स्कूली शिक्षा के सभी प्रारूपों में बच्चों की प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।
छात्रों की भाषा मजबूत करने के लिए रोचक गतिविधियों का आयोजन किया जायेगा। इसके तहत हर छात्र भारत की भाषाओं पर एक मजेदार परियोजना/गतिविधि में भाग लेगा। इस परियोजना/गतिविधि में, छात्र अपने आम फोनेटिक और वैज्ञानिक रूप से व्यवस्थित वर्णमाला और लिपियों, उनके आम व्याकरण संरचनाओं, उनके मूल और संस्कृत और अन्य शास्त्रीय भाषाओं से शब्दावली के स्रोतों के साथ शुरू, साथ ही उनके समृद्ध अंतर-प्रभाव और मतभेदों के साथ शुरू होने वाली अधिकांश प्रमुख भारतीय भाषाओं की उल्लेखनीय एकता के बारे में जानेंगे। वे यह भी सीखेंगे कि कौन से भौगोलिक क्षेत्र में कौन सी भाषाएं बोलते हैं। जनजातीय भाषाओं की प्रकृति और संरचना की भावना प्राप्त करते हैं।

स्वदेशी और पारंपरिक तरीकों से सीखेंगे आदिवासी ज्ञान
विशेष रूप से, आदिवासी ज्ञान और सीखने के स्वदेशी और पारंपरिक तरीकों सहित भारतीय ज्ञान प्रणालियों को शामिल किया जायेगा। गणित, खगोल विज्ञान, दर्शन, योग, वास्तुकला, चिकित्सा, कृषि, इंजीनियरिंग, भाषा विज्ञान, साहित्य, खेल, संरक्षण में शामिल किया जायेगा । जनजातीय नृवंश-औषधीय पद्धतियों, वन प्रबंधन, पारंपरिक (जैविक) फसल की खेती, प्राकृतिक खेती आदि में विशिष्ट पाठ्यक्रम उपलब्ध कराये जायेंगे।

रक्षा क्षेत्र में बढ़ावा मिलेगा
जनजातीय समुदायों के बच्चों के उत्थान के लिए कई प्रोग्रामेटिक हस्तक्षेप वर्तमान में मौजूद हैं। उन्हें और आगे बढ़ाया जायेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जनजातीय समुदायों से संबंधित बच्चों को इन हस्तक्षेपों का लाभ प्राप्त हो। रक्षा मंत्रालय के तत्वावधान में, राज्य सरकारें आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्थित लोगों सहित उनके माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में एनसीसी को प्रोत्साहित कर सकती हैं। इससे छात्रों की प्राकृतिक प्रतिभा और अनूठी क्षमता का दोहन हो सकेगा, जिससे उन्हें रक्षा बलों में सफल करियर बनाने में सफलता मिलेगी।

जनजातीय स्कूलों के शिक्षकों की योग्यता का भी रखा जायेगा ख्याल
जनजातीय स्कूलों के शिक्षकों की योग्यता भारतीय मूल्यों, भाषाओं, ज्ञान, लोकाचार और जनजातीय परंपराओं सहित परंपराओं में आधारित होना चाहिए, जबकि शिक्षा और शिक्षाशास्त्र में नवीनतम प्रगति में भी अच्छी तरह से वाकिफ होना चाहिए। स्कूली बच्चों में भाषाओं, कलाओं और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई पहलों पर चर्चा की गयी है। इसमें स्कूल के सभी स्तरों में संगीत, कला और शिल्प पर अधिक जोर दिया गया है। बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए तीन भाषा के फार्मूले का शीघ्र कार्यान्वयन, जहां भी संभव हो स्थानीय भाषा में अध्यापन, अधिक अनुभवात्मक भाषा सीखने की व्यवस्था, स्थानीय विशेषज्ञता के विभिन्न विषयों में मास्टर प्रशिक्षकों के रूप में उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों, लेखकों, शिल्पकारों और अन्य विशेषज्ञों की भर्ती, जनजातीय और अन्य स्थानीय ज्ञान सहित पारंपरिक भारतीय ज्ञान को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। जनजातीय और लुप्तप्राय भाषाओं सहित सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के प्रयासों को नये उत्साह के साथ लिया जायेगा।

अमित खरे का नयी शिक्षा नीति 2020 को अमली जामा पहनाने में महत्वपूर्ण योगदान
केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को नयी शिक्षा नीति 2020 पर मुहर लगा दी। इस नीति को अमलीजामा पहनाने में उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे का महत्वपूर्ण योगदान है। श्री खरे भारतीय प्रशासनिक सेवा के झारखंड कैडर के अधिकारी हैं। केंद्र सरकार ने उन्हें पिछले साल अक्टूबर में स्कूली शिक्षा विभाग और दिसंबर में उच्च शिक्षा विभाग का जिम्मा दिया था। उन्होंने मानव संसाधन मंत्रालय में तैनाती के साथ ही नयी शिक्षा नीति को लागू करने की दिशा में तेजी से काम किया । विशेषज्ञों, राज्य सरकारों, पंचायत प्रतिनिधियों और आम लोगों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर एक ऐसी शिक्षा नीति को मूर्त रुप दिया है, जिसमें भारतीय परंपराओं, संस्कृति और भाषा का ध्यान रखते हुए बदलते समाज की जरूरतों के हिसाब से बनाया गया है। नयी शिक्षा नीति में बच्चों में जीवन जीने के जरूरी कौशल और जरूरी क्षमताओं को विकसित करने पर खास फोकस किया गया है। अमित खरे के लिए 34 साल बाद लागू हो रही इस नीति को अंतिम रूप देना आसान नहीं था। उनके सामने एक मुकम्मल नीति तैयार करने की जिम्मेवारी थी, जो सभी के लिए उपयोगी हो सके।
श्री खरे ने शिक्षा के क्षेत्र में अपने अनुभवों के आधार पर नीति को ज्यादा से ज्यादा उपयोगी बनाया है। वे झारखंड के शिक्षा सचिव, रांची विश्वविद्यालय के कुलपति सहित केंद्र सरकार में मानव संसाधन मंत्रालय में संयुक्त सचिव और अतिरिक्त सचिव की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। इसकी वजह से देश की पुरानी शिक्षा नीति से भली भांति परिचित हैं। उनका यह अनुभव इस नीति को बनाने में काम आया।
अमित खरे ने बताया कि नयी शिक्षा नीति में उच्च शैक्षणिक संस्थानों में विश्वस्तरीय अनुसंधान और उच्च गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई पर जोर दिया गया है। वर्ल्ड क्लास रिसर्च पर फोकस किया जायेगा। वहीं स्नातक प्रोग्राम के ढांचा में बदलाव किया जाएगा। अब कोर्स के दौरान कक्षा से निकलने या प्रवेश करने के कई विकल्प दिये जायेंगे, जिसका फायदा विद्यार्थियों को होगा।

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