रांची। राज्य सरकार ने बहुचर्चित कंबल घोटाले में बड़ी कार्रवाई की है। सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को पीइ दर्ज करने का आदेश दिया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंगलवार को इसकी मंजूरी दे दी। कंबल खरीदने में हुई अनियमितता के मामले में झारक्राफ्ट की मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी रेणु गोपीनाथ पणिकर, उप महाप्रबंधक मोहम्मद नसीम अख्तर और मुख्य वित्त पदाधिकारी अशोक ठाकुर को आरोपी बनाया गया है। झारक्राफ्ट द्वारा कंबल खरीद में हुई अनियमितता की विस्तृत जांच और आरोपियों के खिलाफ अपेक्षित कार्रवाई की अनुशंसा उद्योग विभाग ने की थी। इसके आलोक में मुख्यमंत्री ने यह निर्देश दिया है। इसके तहत सरकार द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को प्रारंभिक जांच हेतु ऐसे मामले सौंपे जायेंगे। इनमें लोक सेवकों के विरुद्ध पद के आपराधिक दुरुपयोग और भ्रटाचार के आरोप समाहित होंगे।

कैसे हुआ घोटाला
झारखंड सरकार ने साल 2017-18 के दौरान गरीबों के बीच बांटने के लिए करीब 10 लाख कंबल बनाने का जिम्मा झारक्राफ्ट को सौंपा था। तब कहा गया था कि हर साल यह काम टेंडर कर निजी कंपनियों को दिया जाता था, लेकिन इस बार कंबल बुनाई का काम राज्य की सखी मंडलों और बुनकर समितियों को दिया गया है, ताकि वे आर्थिक तौर पर मजबूत हो सकें। सरकार इन कंबलों को खरीदेगी और इन्हें गरीबों में बांटा जायेगा। लिहाजा इसके लिए टेंडर की जरूरत नहीं। इसके बाद झारक्राफ्ट ने कंबल बुनाई के लिए पानीपत से 18.81 लाख किलो ऊनी धागा ट्रकों से मंगाने और उसकी बुनाई के बाद फिनिशिंग टच के लिए कंबलों को पानीपत भेजने के लिए कुछ कंपनियों से करार किया। एजी की जांच में पता चला कि झारक्राफ्ट ने जिन ट्रकों से धागा मंगवाने और फिर उन्हें फिनिशिंग के लिए पानीपत भेजने का दावा किया है, वे फर्जी थे। एजी ने इन ट्रकों के पानीपत से झारखंड आने के दौरान विभिन्न टोल प्लाजा से उनके गुजरने के दावे का जब एनएचएआइ के दस्तावेजों से मिलान किया, तो वे दावे फर्जी पाये गये। दरअसल उन तारीखों पर वे ट्रक इन टोल प्लाजा से गुजरे ही नहीं। झारक्राफ्ट ने 144 ट्रकों के 320 फेरे लगाने का तारीखवार दस्तावेज सौंपा था। इनमें से 318 ट्रिप फर्जी पाये गये। पानीपत से 19.93 लाख किलो ऊनी धागा मंगवाने के दावे की जांच के क्रम में एजी ने पाया कि इनमें से 18.81 लाख किलो धागा मंगाया ही नहीं गया और इसके एवज में करीब 14 करोड़ का भुगतान कर दिया गया। ऐसे कुछ और भुगतान भी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर किये गये। एक-एक सखी मंडल से एक दिन में तीन-तीन लाख पीस कंबलों की बुनाई के दावे किये गये, जो संभव ही नहीं थे।

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