बेगूसराय। लॉकडाउन के दौरान काम-धंधा बंद होने से परेशान प्रवासी कामगारों के आने-जाने का सिलसिला लगातार जारी है। देश के तमाम विकसित समझे जाने वाले राज्यों से भूखे रहकर, जलालत झेलकर बिहार के तमाम जिलों के साथ बेगूसराय के भी 50 हजार से अधिक लोग वापस आ चुके हैं। इन्हें गांव में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकारी स्तर पर मनरेगा, जल जीवन हरियाली समेत कई अभियान चल रहे हैं। जिसमें कुछ श्रमिकों को काम भी मिला है लेकिन मात्र इतने को काम मिलने से कुछ नहीं होना है। सभी श्रमिकों को काम दिलाने के लिए सरकार एक्शन मोड में है, जिला प्रशासन ने भी तमाम विभागों को तथा कार्यकारी एजेंसियों को स्थानीय प्रवासी श्रमिकों को काम देने का निर्देश दिया है।
अब प्रत्येक सोमवार को डीआरसीसी में रोजगार कैंप भी लगाए जाएंगे, कृषि विभाग समेत अन्य कई विभाग लोगों को स्वरोजगार के लिए भी प्रशिक्षित करने का अभियान शुरू कर चुके हैं। लेकिन इन सारी कवायदों के बावजूद जलालत झेलनी के बाद भी यह बिहार में रुकेंगे, यह कहना मुश्किल है। लौटने वाले प्रवासियों को शासन-प्रशासन से काफी उम्मीद है, यह लोग खुश हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हम श्रमिकों के समस्या को देखते हुए, आर्थिक हालत को देखते हुए गरीब कल्याण योजना शुरू किया है। जिससे कम से कम से कम 125 दिन काम करने से दौरान यह लोग आत्मनिर्भर बनने के लिए अन्य उपाय ढूंढ लेंगे। गांव में रहकर आत्मनिर्भर बनने के लिए ढ़ेर सारे लोगों ने परदेस में अपना जमा जमाया सब कुछ छोड़ दिया है।
असम से लौटे अवधेश सहनी, लालू सहनी, बमबम सहनी आदि ने शनिवार को बताया कि हम लोग बिहार में काम की कमी रहने के कारण परदेस गए थे। वहां काम धंधा चल रहा था, किसी तरह कमाकर जी रहे थे, परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। लेकिन लॉकडाउन ने तबाह कर दिया, काम धंधा बंद हो गया तो जीने लायक खाना मिलना भी मुश्किल हो गया, काफी जलालत झेलनी पड़ी। तीन महीने में सबकुछ तबाह हो गया, कई रातें खाली पेट गुजारी, उसके बाद केंद्र सरकार के कृपा से गांव आए हैं। अभी सदर अस्पताल में कोरोना की जांच कराने के बाद 10-20 दिन घर पर रहकर दर्द को भूलने का प्रयास करेंगे। परदेस में हुआ दुख गांव आकर कम हुआ, दिल को सुकून मिला है लेकिन शांति तब मिलेगी जब गांव में रोजगार या स्वरोजगार मिल जाएगा।