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    Home»Jharkhand Top News»झारखंड के छोटे स्कूलों ने दिखाया दम, बड़े हुए बेदम
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    झारखंड के छोटे स्कूलों ने दिखाया दम, बड़े हुए बेदम

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJuly 11, 2020No Comments6 Mins Read
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    झारखंड एकेडेमिक काउंसिल ने 10वीं, जिसे आम बोलचाल में मैट्रिक कहा जाता है, का परिणाम जारी कर दिया है और साथ ही इस परीक्षा के टॉपरों की सूची भी जारी कर दी है। इस परिणाम से एक बात साफ तौर पर नजर आती है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। प्रतिभा को चमकने के लिए न तो बड़े स्कूलों की जरूरत है और न ही अच्छी लाइब्रेरी की। उसे बस केवल अवसर चाहिए और उस अवसर को पहचान कर प्रतिभा को तराशनेवाला। इस बार की टॉपर सूची में कुल 34 विद्यार्थियों ने जगह बनायी है, जिनमें विश्व प्रसिद्ध नेतरहाट स्कूल के दर्जन भर बच्चे शामिल हैं। इस सूची में कम से कम डेढ़ दर्जन ऐसे बच्चों ने जगह हासिल की है, जो छोटी-छोटी जगहों से आते हैं और उनके स्कूलों की गिनती महज संख्या के लिए होती थी। चिलदाग, पालाजोरी, तारानरी और राजगंज जैसी जगहों के सरकारी स्कूलों के बच्चे भी कभी टॉपर बन सकेंगे, यह कभी किसी ने सोचा भी नहीं था। लेकिन इन स्कूलों के शिक्षकों ने बच्चों में छिपी प्रतिभाओं को पहचाना और उन्हें तराशने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया। बच्चों ने भी अपने गुरुओं को निराश नहीं किया। इसके साथ ही इन छोटे स्कूलों ने साबित कर दिया कि यदि समान सुविधाएं और संसाधन मिलें, तो उन स्कूलों में भी नेतरहाट जैसा प्रदर्शन करने की क्षमता है। जैक की इस साल की टॉपर सूची में छोटे स्कूलों को जगह मिलने से पैदा हुई नयी उम्मीदों पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    बहुत पुरानी कहावत है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। किसी बीज को चाहे चट्टान के बीच दबा कर रखा जाये, वह अंकुरित जरूर होता है। जैक द्वारा घोषित मैट्रिक का परिणाम भी इस साल यही साबित करता है। इस साल राज्य के तीन लाख 85 हजार विद्यार्थी इस परीक्षा में शामिल हुए थे। इसमें से तीन चौथाई, यानी करीब दो लाख 89 हजार सफल रहे। इस बार के परिणाम का सबसे चौंकानेवाला पक्ष इसके टॉपरों की सूची है। जैक द्वारा जारी टॉप 10 की सूची में कुल 34 विद्यार्थियों ने स्थान हासिल किया है। अब तक की परिपाटी के अनुसार नेतरहाट और हजारीबाग स्थित इंदिरा गांधी आवासीय विद्यालय के अलावा बड़े शहरों के नामी स्कूल ही इस सूची में जगह पाते थे, लेकिन इस बार छोटी जगहों और गांवों के छोटे स्कूलों ने कमाल कर दिया है। इन छोटे स्कूलों के बच्चों ने 34 में से 15 स्थानों पर कब्जा जमाया है। यह एक ऐसी उपलब्धि है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
    इन छोटे स्कूलों के बच्चों ने साबित किया है कि उनमें भी नेतरहाट और इंदिरा गांधी में पढ़नेवालों जितना ही दम है। इतना ही नहीं, जिला मुख्यालयों के स्कूलों के मुकाबले में छोटी जगहों के स्कूलों में अधिक संभावनाएं हैं। इस बार टॉपर सूची में चिलदाग, सरैयाहाट, मुरी, सिमरा, गेतलसूद, पालाजोरी, कांके, राजगंज और तारानरी जैसी जगहों पर अवस्थित स्कूलों के बच्चों ने जगह बनायी है। इन छोटी जगहों के स्कूलों में न ढंग की सुविधाएं हैं और न ढंग का माहौल। इसके बावजूद यदि इन स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चे टॉपरों में जगह हासिल करते हैं, तो इसका मतलब साफ है कि यदि इन पर ध्यान दिया जाये, तो ये किसी भी मुकाबले में उतर सकते हैं और सफल हो सकते हैं।
    शहरों में अवस्थित स्कूलों पर तो सरकार और प्रशासन का ध्यान हमेशा होता है, लेकिन छोटी जगहों के स्कूल बड़ी मुश्किल से ध्यान खींचते हैं। नेतरहाट और इंदिरा गांधी को छोड़ कर अब तक राज्य में कुछ गिने-चुने स्कूलों को ही जैक बोर्ड के टॉप स्कूलों में गिना जाता था, लेकिन इस बार के रिजल्ट ने यह धारणा तोड़ दी है। इन स्कूलों ने बता दिया है कि दम उनमें भी है और जरूरत केवल प्रोत्साहन की है। इसलिए अब सरकार को छोटे-छोटे स्कूलों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
    इस साल की टॉपर सूची ने एक और बात रेखांकित की है। वह यह है कि नेतरहाट और इंदिरा गांधी जैसे स्वनामधन्य स्कूलों में शिक्षा का स्तर घट रहा है। बड़े स्कूलों को यह संदेश भी मिला है कि झारखंड के दूसरे स्कूल उनका मुकाबला कर सकते हैं। इसलिए इस पर भी ध्यान दिये जाने की जरूरत है। इन बड़े स्कूलों को अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप मेहनत करनी होगी और यदि वे समय रहते नहीं चेते, तो वह समय अधिक दूर नहीं, जब टॉपरों की सूची से उनका नाम बाहर हो जायेगा।
    कुल मिला कर झारखंड में मैट्रिक के रिजल्ट ने इस बार उम्मीद की एक सुनहरी किरण दिखायी है। किसान, दिहाड़ी मजदूर, सफाईकर्मी और दूसरे काम करनेवालों के बच्चे भी मौका मिलने पर बहुत आगे जा सकते हैं, यह बात एक बार फिर साबित हुई है। इसलिए अब सरकार और व्यवस्था को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
    यहां सोमालिया के एक प्रांत बाकूल में अपनायी गयी शिक्षा व्यवस्था का उल्लेख जरूरी है। वहां की सरकार ने तय किया कि राज्य के टॉपर बच्चों के लिए एक अलग स्कूल खोला जायेगा। इस प्रांत में हाइ स्कूल की परीक्षा के सभी टॉपर बच्चों को इस स्कूल में दाखिला मिलता है और उनकी प्रतिभा को तराशा जाता है। आगे चल कर यही बच्चे दुनिया भर में अपना नाम रोशन करते हैं। दुनिया की कई प्रमुख संस्थाओं में इनकी तूती बोलती है। इतना ही नहीं, अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों की सरकारों में भी बाकूली सलाहकार बनते हैं। लगभग यही मॉडल दुनिया भर में चर्चित सुपर 30 ने भी अपनाया है, जहां आनंद उन प्रतिभाओं को तराशते हैं, जो गरीब और पिछड़े हैं। बाद में यही बच्चे आइआइटी में दाखिला पाते हैं। झारखंड में भी यह मॉडल बखूबी अपनाया जा सकता है। सभी टॉपरों के लिए एक अलग स्कूल बना दिया जाये, जहां उन्हें अच्छे शिक्षक मिल सकें और अच्छी सुविधाएं मिलें, ताकि वे आगे चल कर अपना और राज्य का नाम रोशन कर सकें। यदि झारखंड में भी यह व्यवस्था लागू हो जाये, तो देश भर में एक मिसाल कायम की जा सकती है। इससे यहां की प्रतिभाएं बाहरी दुनिया की भीड़ में जाकर अपना वजूद नहीं खो देंगी और दूसरी तरफ इन बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित हो सकेगा। इसका सकारात्मक संदेश दूसरे बच्चों में भी जायेगा, जो आगे चल कर इस स्कूल में पढ़ना चाहेगा।

    grew breathless Small schools in Jharkhand showed strength
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