संदर्भ: कांग्रेस विधायक दल नेता आलमगीर आलम और प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने विधायकों को दी क्लीन चिट, उठ रहे सवाल
झारखंड की राजनीति पिछले एक सप्ताह से गरमाई हुई है। वजह है सरकार गिराने की साजिश। कांग्रेस विधायकों की खरीद-फरोख्त। कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व और विधायकों का हर दिन नया बयान आ रहा है। कांग्रेस के दोनों विधायक इरफान अंसारी और उमाशंकर अकेला को लेकर अब तक जो भी तथ्य सामने आये उनपर प्रदेश कांग्रेस ने उनको क्लीन चिट दे दी है। नेतृत्व को भी रिपोर्ट भेजने की बात आ रही। जनता के सामने तरह-तरह का बयान दे कर बहलाने की कोशिश हो रही है। पुलिस की जांच चल रही है। पुलिस जनता के पैसे से रांची से दिल्ली-मुंबई तक की खाक छान रही है। न ही बिकने वाले का पता है। न ही खरीदने वाले मुखिया का पता है। बेचारे तीन गरीबों के लिए केवल यह कांड जी का जंजाल बन गया है। दरअसल प्रदेश में कांग्रेस पिछले छह महीने से अपनी परेशानी का राग अलापते हुए उलझी हुई है। इस चक्कर में पार्टी विधायक जनता का काम नहीं कर पा रहे हैं। विधायक अपनी समस्या का रोना रोते रहते हैं। अधिकारी उनकी सुनते नहीं। विकास का काम नहीं करवा पा रहे हैं। यानी कांग्रेस खुद ही कबूल कर रही जन हित में कदम उठाने में परेशानी हो रही है। इसका मतलब तो यही है कि कांग्रेस अपनी ‘महामारी’ से निपटते-निपटते ‘जनसेवा’ से भटक गयी है। इन सब के बीच निर्दलीय विधायक सरयू राय का ट्विट भी कई बातों को इंगित कर रहा। उनके ट्विट का एक शब्द ‘असली मामला’ कई सवालों को खड़ा कर रहा। सरकार गिराने की साजिश, विधायकों की खरीद-फरोख्त और कांग्रेस नेताओं की स्थिति पर आजाद सिपाही के राजनीतिक ब्यूरो की रिपोर्ट।
सरकार के स्पेशल ब्रांच को मिली सूचना के आधार पर 23 जुलाई को रांची पुलिस ने होटल में छापामारी के दौरान तीन लोगों को गिरफ्तार किया। इस गिरफ्तारी से झारखंड सरकार गिराने की साजिश की बात सामने आयी। सत्ता-पक्ष और विपक्ष का आरोप प्रत्यारोप शुरू हुआ। महाराष्ट्र के दो विधायकों और राज्य से तीन विधायकों के संलिप्तता की बात सामने आयी। तहकीकात बढ़ी तो झारखंड से कांग्रेस के इरफान अंसारी, उमाशंकर अकेला और निर्दलीय अमित कुमार यादव का नाम निकल कर सामने आया। इन नामों का खुलासा हुए एक सप्ताह का समय बीत गया। अभी तक केवल बयानबाजी ही चल रही। इस मु्द्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप हुआ।
इरफान, अकेला और अमित के लगातार बयान आये। प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव और विधायक दल नेता आलमगीर आलम ने भी बयान दिये। विधायकों के साथ एक बैठक हुई। जिसमें आधा दर्जन विधायक शामिल हुए। इसके बाद प्रदेश के दोनों नेताओं ने इरफान और अकेला को क्लीन चिट दे दिया। दोनों नेताओं ने तो यहां तक कह दिया कि किसी के टिकट पर किसी के साथ यात्रा करना तथा होटल में ठहरना सरकार गिराने की साजिश का प्रमाण नहीं है। यह महज संयोग है, कोई प्रयोग नहीं है। अगर ऐसा है तो प्रदेश नेतृत्व या विधायक खुल कर ये क्यों नहीं कह रहे कि बेचारे पकड़े गये तीनों लोगों का कोई दोष नहीं? उन्हें छोड़ देना चाहिए। वह तो बेचारी गरीब जनता है।
कन्नी काट रहे कांग्रेसी विधायक
विधायक दल के नेता आलमगीर आलम के यहां विधायकों की बैठक में क्या हुआ, उस पर आधिकारिक बयान में तो कांग्रेस को एकजुट, विधायकों को क्लीन चिट सब बता दिया गया। इरफान ने इस क्लिन चिट का प्रचार-प्रसार किया और जश्न भी मना लिया। बयान भी दे दिया कि मैं बाइ बर्थ कांग्रेसी हूं। मरते दम तक कांग्रेस नहीं छोड़ सकता। अकेला भी कांग्रेस के प्रति वफादारी का ही जुमला दोहराया। अन्य विधायक मामले से कन्नी काट रहे। किसी को धनबाद में पार्टी कार्यालय की चिंता सता रही है, तो किसी को पुल नहीं बनने का दर्द। कोई खुद को कांग्रेस का सच्चा सिपाही बताने में जुटा है। कांग्रेस के विधायक पिछले छह महीने से अधिकारियों द्वारा बात नहीं सुनना, काम नहीं होना, सरकार में महत्व नहीं मिलने की बात ही करते आ रहे। इसके लिए कोई रांची में बैठक कर रहा, तो कोई दिल्ली भाग रहा। यहां तक कि विधानसभा सदन में भी इन बातों को रखा। इन सभी बातों के बीच जनता कब और कहां गुम हो गयी, यह पता ही नहीं चला। अब ये नया सरकार गिराने की साजिश का मामला उभर कर सामने आ गया। जिसका ठीकरा कांग्रेस पर ही फूट रहा।
सेवा का नहीं, कुर्सी का महत्व
पहले कहा जाता था कि राजनीति सेवा का माध्यम है। अब सेवा भावना की बात कहना बेइमनी है। यह कांग्रेसी विधायकों को देख कर लगता है। जिस तरह से निगम, बोर्ड, 20 सूत्री आदि को लेकर खींचतान चल रही है, लगता है कि बिना कुर्सी के जनता की सेवा ही संभव नहीं है। अगर कुर्सी नहीं मिलेगी, तो जनसेवा ही नहीं कर पायेंगे। किसी तरीके से कुर्सी पाना सबसे बड़ा मुद्दा है। इसका परिणाम है कि जनता के मुद्दे खो रहे हैं। तामाम बोतों को देख कर एक बात स्पष्ट है कि इसी कुर्सी की लोलुपता और सुख-सुविधा व महत्वाकंक्षा के कारण सारी खींचतान है। जिसमें जनमुद्दा गौण है। यानी उनके लिये सेवा नहीं, कुर्सी का महत्व है। अगर जनता की फिक्र है तो विधायकों को क्लीन चिट देने वाले नेता, खुद को बेकसूर बताने वाले विधायक एक बार कम से कम खुल कर ये तो कहें कि सरकार गिराने की साजिश या विधायक खरीद-फरोख्त में फंसे तीनों लोग बेकसूर हैं। आखिर वो तो जन साधारण हैं। उन्हें तो सत्ता या कुर्सी मिलना नहीं है। फिर बेचारे जेल में क्यों सड़ रहे? जब कांग्रेस के विधायक टूट ही नहीं रहे थे, वह पार्टी के सच्चे सिपाही हैं, तो आखिर पकड़े तीनों आरोपी खरीद किसे रहे थे? क्या महज दो लाख रुपये में विधायकों की खरीद हो रही थी? कहा जा रहा है कि खरीद में उन्हें 50-50 लाख रुपये मिलते, आखिर ये दे कौन रहा था? सरकार गिराना और सरकार बनाना दो अलग-अलग बातें हैं। भाजपा अगर सरकार गिरा रही थी, तो क्या उसके लिए सरकार बनाने की स्थिति भी बन रही थी? क्योंकि विधानसभा के अंकगणित में भाजपा तो काफी पीछे है।
क्या राजनीतिक नादानी ही साबित होगी
सरकार गिराने की साजिश और विधायक खरीद-फरोख्त मामले में अभी तक जो हुआ है, उसमें निर्दलीय विधायक सरयू राय का ट्विट सटीक लग रहा है। सरयू राय ने 28 जुलाई को ही इस प्रकरण को लेकर एक ट्विट किया था। उन्होंने लिखा ‘विधायकों की खरीद फरोख्त से झारखंड में सरकार गिराने का बहुप्रचारित मामला अंतत: ‘राजनीतिक नादानी’ का नायाब उदाहरण साबित होगा। जांच अधिकारी अपना काम पूरा कर लेंगे। संभव है कि निश्चित निष्कर्ष पर भी पहुंच जायेंगे। मगर इसके पीछे की असली बात सामने लाने में रुचि न सरकार को होगी, न प्रतिपक्ष को।’ सरयू राय की यह बात धीरे-धीरे सही भी लगने लगी है। विपक्ष भी इस मुद्दे को लेकर शांत हो गया है। सत्ता पक्ष पहले ही शांत है। मीडिया में बातें तैर रही हैं। वह भी कुछ दिन में शांत बैठ जायेगी। क्योंकि सबसे बड़ा अहम सवाल यह उठता है कि कांग्रेस के दोनों विधायक निर्दोष हैं तो फिर दोष किसका है? इन विधायकों को आरोपी बनाये बगैर कैसे इस साजिश की कहानी आगे बढ़ेगी? सरयू राय के ट्विट की एक शब्द ‘असली मामला’ बहुत अहम लग रहा। ये अपने आप में ही बहुत बातों की ओर इंगित कर रहा है। क्या सही में मामला कुछ और है और कहानी कुछ और बतायी जा रही है?