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इस बार ‘राष्ट्रवाद’ और ‘विकास’ की पटरी पर दौड़ेगी चुनावी गाड़ी
एनडीए ने स्थानीय मुद्दों को लगाया किनारे, तो बौखलाया महागठबंधन
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अब माहौल पूरी तरह गर्म हो चुका है। बिहार की सत्ता के दावेदारों के बीच इस बात पर मंथन चल ही रहा है कि किन मुद्दों को लेकर जनता के पास जायें, लेकिन इसी बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की यात्रा में चुनावी मुद्दों को सेट कर दिया। अमित शाह की बिहार यात्रा के बाद एक बात स्पष्ट हो गयी है कि इस बार बिहार में चुनावी मुद्दा स्थानीय नहीं रहेंगे। नीतीश कुमार ने हाल में कई लोक कल्याणकारी घोषणा करके विपक्ष से स्थानीय मुद्दा छीन लिया है। इसके अलावा अमित शाह ने यह भी साफ कर दिया कि बिहार में इस बार ‘विकास’ और ‘राष्ट्रवाद’ का मुद्दा ही चुनावी मैदान के केंद्र में रहेगा। पहलगाम हमला और उसके बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के साथ मालेगांव मामले पर फैसला भी इसमें शामिल होगा। जानकारों का मानना है कि पहलगाम कांड और उसकी प्रतिक्रिया में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से राष्ट्रवाद और देशभक्ति की जो भावना पैदा हुई है, वह लोगों के मतदान व्यवहार को प्रभावित कर सकती है। हो सकता है कि पुलवामा के बाद हुए लोकसभा चुनाव जैसी सुनामी नहीं आये, फिर भी राष्ट्रवाद की धारणा चुनाव को प्रभावित करेगी। असल में बिहार में विधानसभा चुनाव के दौरान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एजेंडा वैसे काम नहीं करता है, जैसे लोकसभा चुनाव में करता है। इसलिए इस बार एनडीए ने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया है। स्थानीय मुद्दों को किनारे लगाने की यह रणनीति कारगर साबित होती दिख रही है, जो विपक्षी महागठबंधन की बौखलाहट से साफ नजर आती है। बिहार के चुनावी माहौल में आये इस बदलाव का क्या है कारण और क्या होगा असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर एक तरफ विकास की पटरी पर एनडीए की गाड़ी भले दौड़ायी जा रही हो, लेकिन इस दौड़ में बीजेपी पाकिस्तान और आतंकवाद के मुद्दे पर भरोसा कुछ ज्यादा ही करने लगी है। पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बाद अब बीजेपी के राष्ट्रीय मंत्री ऋतुराज सिन्हा ने भी सीमांचल को लेकर बड़ा बयान देकर खलबली मचा दी है। इस बयान के बाद ये साफ हो गया कि पाकिस्तान और आतंकवाद के मुद्दे पर बीजेपी ने बिहार फतह की तैयारी पूरी तरह कर ली है।

जो भारत में जन्मा, वही वोट देगा
पुनौरा धाम की सभा को संबोधित करते गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कहा भारत में जन्मा नहीं है, उसको भारत में वोट देने का अधिकार हमारा संविधान नहीं देता है। इसलिए मतदाता सूची से घुसपैठियों को निकाला जा रहा है। लेकिन ये घुसपैठिये ही विपक्ष में वोट बैंक हैं। गृह मंत्री ने आतंकवाद का मुद्दा उठाते कहा कि कांग्रेस के समय देश भर में बम धमाके होते थे और आतंकी पाकिस्तान भाग जाते थे, कोई पूछने वाला नहीं था। उरी में हमला हुआ तो हमने सर्जिकल स्ट्राइक किया, पुलवामा में हुआ तो हमने एयर स्ट्राइक किया, पहलगाम में हुआ तो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाकर पाकिस्तान के घर में घुसकर आतंकियों का सफाया किया।

लालू एंड कंपनी पर वार
अमित शाह ने आगे कहा कि लेकिन लालू एंड कंपनी और कांग्रेस के लोग संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का विरोध कर रहे थे। मैं मिथिलांचल के लोगों से पूछना चाहता हूं, मोदी जी को आतंकवादियों को जवाब देना चाहिए या नहीं? उधर मुजफ्फरपुर में बीजेपी के राष्ट्रीय मंत्री ऋतुराज सिन्हा ने संवाददाताओं को संबोधित करते कहा कि निर्वाचन आयोग का विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम स्वागत योग्य है। सीमांचल में जिस तरह से घुसपैठिये मतदाता सूची में शामिल हो गये हैं, उसे सही करना जरूरी है। बिहार को बंगाल नहीं बनने देंगे। बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठिये और रोहिंग्या के कारण स्थिति गंभीर है। सीमांचल में भी यही कोशिश की जा रही है। पर भाजपा बिहार के पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और कटिहार को पाकिस्तान नहीं बनने देगी।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ भी मुद्दा
इसके पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को बिहार की कई जनसभाओं में मुद्दा बना कई बिहार की जनमानस को जगाने की कोशिश की। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को ‘100% सफल’ सैन्य कार्रवाई के रूप में प्रचारित किया। इसके साथ ही 30 मई, 2025 को बिक्रमगंज की रैली में मोदी ने कहा कि पाकिस्तान ने भारत की बेटियों के सिंदूर की ताकत देखी। उन्होंने बिहार की महिला मतदाताओं को भी राष्ट्रवाद नीति के साथ जोड़ा। यहां तक कि संसद में पीएम मोदी इसे ‘राम की नीति’ से जोड़कर मतदाताओं के बड़े वर्ग सवर्ण, ओबीसी और ग्रामीण मतदाताओं को भी जोड़ गये।

मालेगांव का फैसला
मालेगांव बम विस्फोट के मामले में आया फैसला भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बरक्स खड़ा हो कर एक सहायक मुद्दा बन जायेगा। यह मुद्दा विपक्ष पर इसलिए भारी पड़ने वाला है क्योंकि मालेगांव बम विस्फोट को विपक्ष ने हिंदू आतंकवाद से जोड़ कर बीजेपी की काफी आलोचना की थी। कहा जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है। सत्ता की लड़ाई में बीजेपी अब बिहार में खुल कर ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द गढ़ने वालों के विरुद्ध शंखनाद कर हिंदू आबादी को अपनी पकड़ में लेने की कोशिश करेगी। जनता के सामने तमाम विपक्ष से ‘हिंदू आतंकवाद’ का परिभाषा पूछेगी।

कारगर होंगे ये मुद्दे
जानकारों का मानना है कि बिहार में धर्म या सांप्रदायिकता का एजेंडा विफल ही साबित होता रहा है। बीजेपी 2015 में इसे आजमा चुकी है। यहां विधानसभा चुनाव में जाति का समीकरण ज्यादा कारगर होता है। ऐसे में सवाल है कि धर्म या सांप्रदायिकता की तरह क्या राष्ट्रवाद का मुद्दा भी काम नहीं करेगा? क्या देशभक्ति का मुद्दा भी लोगों को एनडीए के पक्ष में एकजुट होने के लिए मजबूर नहीं करेगा? यह बड़ा सवाल है। इस पर बिहार चुनाव का बहुत कुछ निर्भर करेगा। लेकिन इतना तय है कि अब आने वाले दिनों में आतंकवादियों के खिलाफ और पाकिस्तान के खिलाफ की गयी कार्रवाई का जिक्र बिहार के संदर्भ के बगैर नहीं होगा। यह कहा जायेगा और खासतौर से बिहार के लोगों को याद दिलाया जायेगा कि प्रधानमंत्री ने बिहार की धरती पर ही संकल्प किया था कि आतंकवाद को मिटा देंगे। यह अपने आप बिहार के लोगों में गर्व की भावना भरने वाली बात होगी। उनकी नसों में राष्ट्रवाद का उफान भरने वाली होगी। इसके साथ धर्म का मामला स्वाभाविक रूप से जुड़ेगा। वह एक अंतर्धारा की तरह होगा। जितना प्रत्यक्ष अभी है, उतना नहीं होगा। अभी खुल कर यह बात कही जा रही है कि आतंकवादियों ने धर्म पूछ कर लोगों की हत्या की। इस आधार पर कहा जा रहा है कि अब यह धारणा टूट गयी कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता है। आतंकवाद का धर्म होता है और वह हिंदू विरोधी है। मालेगांव का फैसला भी इससे संदर्भित होगा।

जातीय समीकरण होगा बेअसर
उधर बिहार में सभी पार्टियां अपना-अपना जातिगत समीकरण बैठाने में लगी हैं। ऐसे में अचानक यह नैरेटिव बने कि जाति नहीं, धर्म महत्वपूर्ण है और धर्म सिर्फ पहचान के लिए नहीं, बल्कि जीवन के लिए सबसे अहम तत्व है, तो क्या होगा? जाति तोड़ने के लिए धर्म की इस अंतर्धारा के ऊपर राष्ट्रवाद का मुलम्मा चढ़ा होगा, जो चुनाव को प्रभावित करेगा। यह भी खास है कि बिहार में महिलाएं नीतीश कुमार का समर्थन करती रही हैं। अगर वे बदलना चाह रही होंगी, तब भी पहलगाम में नवविवाहित महिलाओं के सामने उनके पतियों को गोली मारने की घटना उनके ऊपर असर डाल सकती है।

ऐसे में अगर बिहार और बिहारियों के जीवन से जुड़े मुद्दे राष्ट्रवाद, देशभक्ति और धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंडे से ढक जाते हैं, तो महागठबंधन के साथ प्रशांत किशोर के लिए ज्यादा मुश्किल होगी, क्योंकि उनके पास कोई ऐसा कोई मुद्दा नहीं है। वे बदलाव की आकांक्षा रखने वाले वर्ग के सहारे राजनीतिक सफलता की उम्मीद कर रहे हैं। इसके अलावा उनकी उम्मीद एनडीए खास कर जेडीयू के वोट से भी जुड़ी हैं, जिनके बारे में माना जा रहा है कि नीतीश की सेहत बिगड़ने और उनके हाशिये में जाने से उस वोट का एक बड़ा हिस्सा प्रशांत किशोर की ओर जा सकता है। जहां तक राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन की बात है, तो ध्रुवीकरण चाहे राष्ट्रवाद के नाम पर हो या सांप्रदायिकता के आधार पर हो, सबसे बड़ा नुकसान उसी को होना है। हालांकि नुकसान कम करने के लिए राजद, कांग्रेस और महागठबंधन की दूसरी पार्टियां भी पहलगाम हमले के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं। आतंकवादियों और पाकिस्तान को निशाना बना रही हैं। पीड़ितों से सहानुभूति दिखा रही हैं, लेकिन यह वोट दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं होगी। महागठबंधन को अपनी रणनीति बदलनी होगी। दुर्भाग्य से यह बदली हुई रणनीति मुस्लिम प्रतिनिधित्व और कम कर सकती है। बहरहाल विपक्ष के सामने यह चुनौती है कि माहौल अभी ठंडा नहीं होना है। उसके मुकाबले विपक्ष को भ्रष्टाचार, गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, पलायन आदि मुद्दों पर लोगों को जोड़े रखने की कोशिश करनी होगी।

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