प्रशांत झा
गरीबी मिटाने के लिए काम करने वाले संगठन ‘आॅक्सफैम’ की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। संगठन ने ‘दि हंगर वायरस मल्टीप्लाइज’ नामक रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया है कि कोरोना संक्रमण ने भुखमरी से मौत में इजाफा कर दिया है। पिछले एक वर्ष में पूरी दुनिया में महामारी के कारण भूख से मौत की संख्या छह गुना बढ़ गई है। दुनियाभर में भुखमरी के कारण हर एक मिनट में 11 लोगों की मौत होती है। 21वीं सदी में भूख से मौत अपने-आप में सवालिया निशान खड़ा करती है। इस पर पूरे विश्व को सोचने की जरूरत है।
भुखमरी से मौत केवल एक आंकड़ा नहीं है। जो इससे स्थिति से गुजरते हैं, उनसे पूछें। यह अकल्पनीय पीड़ा को दर्शाता है। रिपोर्ट में भुखमरी से सर्वाधिक प्रभावितों की सूची में अफगानिस्तान, इथियोपिया, दक्षिण सूडान, सीरिया और यमन को रखा गया है। यह सही है कि भारत में वैसी स्थिति नहीं है। सरकार ने यहां खाद्य सुरक्षा कानून के तहत बहुत हद तक भुखमरी की स्थिति पर काबू कर रखा है। पर कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन ने देश की जो आर्थिक बुनियाद हिलायी है, वह किसी से छुपी नहीं है। देश के कई हिस्सों से भुखमरी से मौत की सूचना आती है। खासकर झारखंड, उड़ीसा, बिहार जैसे गरीब राज्यों में यह मामला हर कुछ दिनों पर सामने आते रहता है। हालांकि भूख से मौत का मामला साबित करना कठिन रहता है, लेकिन इस मुद्दे पर सरकार और एनजीओ हमेशा आमने-सामने रहते हैं।सवाल यह नहीं है कि भूखमरी से मौत साबित हो पाती है या नहीं, पर गरीबी के कारण मौत एक सच्चाई है। इसे नकारा नहीं जा सकता है।
यह भी सच है कि कई लोग ऐसे हैं जिन्हें एक वक्त का खाना सही तरीके से नसीब नहीं होता है। कई-कई दिन तक फांकाकशी रहती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आधी से ज्यादा दुनिया गरीबी और भुखमरी की समस्या से जूझ रही है। पूरे विश्व समेत भारत की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। बेरोजगारी और महंगाई साथ साथ कदमताल कर रहे हैं। उसमें गरीबों के सामने तो विकट स्थिति बन ही गयी है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने साल भर पहले अंदेशा जताया था कि महामारी की मार से गरीबी बढ़ेगी। उनका यह अंदेशा आज हकीकत के रूप में सामने है। इस गरीबी और भुखमरी से निपटने में कौन मदद करेगा? कैसे स्थिति को नियंत्रण में लाया जायेगा? कैसे सही मायने में जरूरतमंद तक सहायता पहुंचेगी? इन तमाम सवालों के जवाब तलाशा जाना बेहद जरूरी है।