प्रशांत झा
उत्तरप्रदेश में ब्लॉक प्रमुख चुनाव का परिणाम सामने आ चुका है। भाजपा ने 825 में से 648 सीटों पर जीत दर्ज की है। भाजपा के सामने सपा का गढ़ दरक गया। मुलायम सिंह के गढ़ मैनपुरी में भी साइकिल नहीं ‘दौड़ी’। यहां भी भगवा रंग चोखा हो गया। यहां के नौ ब्लॉकों में से छह में भाजपा, एक में सपा और दो में निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। पांच साल पहले हुए चुनाव में इस जिले में साइकिल ने खूब रफ्तार पकड़ी थी। ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में नौ ब्लॉकों में से सात ब्लॉकों में सपा का ही कब्जा था। इस बार हालत यह है कि 14 जिलों में सपा का खाता भी नहीं खुला। ब्लॉक प्रमुख के परिणाम भविष्य के लिए बहुत कुछ इशारा कर रहे हैं।
उत्तरप्रदेश में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होना है। सभी राजनीतिक दल इसकी तैयारी में जुट गये हैं। हाल में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव आगामी विधानसभा चुनाव का सेमिफाइनल कहा जा रहा है। यह एक तरह से विधानसभा चुनाव की तैयारी भी है। जिला परिषद् अध्यक्ष की सीटों पर कब्जा जमाने के बाद भाजपा ने ब्लॉक प्रमुखों पर भी कब्जा जमा लिया है। यह दिखाता है कि भाजपा की रणनीति सही दिशा में आगे बढ़ रही है। चर्चा है कि भाजपा ने पार्टी स्तर पर रणनीति बदल ली, तो सरकार स्तर पर भी काम किया जा रहा है।
उत्तरप्रदेश सरकार ने बाहुबलियों पर अंकुश लगाया। इससे आम लोगों को राहत मिली, तो पार्टी को भी लाभ हुआ। जिला और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में एक नयी बात देखने को मिली। यहां मुख्तार अंसारी सरीखे बाहुबलियों के पिछलग्गुओं ने बचने के लिए अपनी रणनीति बदल ली है। छोटे-छोटे स्तर पर नेताओं ने अचानक अपनी निष्ठा बदल ली औरी सपा से छिटक कर उन्होंने भाजपा का साथ दे दिया। जिस वजह से भाजपा की जिला परिषद् और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में भारी जीत हुई है। इसे आप इस तरह से समझें कि मुख्तार अंसारी के गढ़ में सात में से छह वोट भाजपा के खाते में चले गये। इसे फाटक का प्रभाववाला वोट कहा जा रहा है। इसे लेकर भाजपा कार्यकार्ताओं में उत्साह है। इससे एक बात और साबित हो रही है कि भाजपा की पकड़ जमीनी स्तर पर बन रही है। बहुत हद तक अब डैमेज कंट्रोल हो रहा है।
जाहिर है, जब भाजपा कार्यकर्ताओं की सक्रियता बढ़ेगी, तो निश्चय ही आम लोगों की जुबान पर पार्टी का नाम अधिक चढ़ेगा। इसका लाभ आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिल सकता है। उधर, सपा को एक बार फिर अपनी रणनीति पर विचार करने की जरूरत है। लगातार दो ‘सेमिफाइनल’ (जिला परिषद् अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख) हारने से कार्यकर्ताओं का उत्साह कम हुआ है। उन्हें उत्साहित करने की जरूरत है। पिछली गलतियों का आकलन कर उन्हें सुधारने की जरूरत है। तभी अगले वर्ष होने वाले ‘फाइनल मैच’ (विधानसभा चुनाव) में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है।