प्रशांत झा
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। तरह-तरह की चर्चाओं को भी जन्म दे गया है यह इस्तीफा। हालांकि रावत ने कहा कि संवैधानिक संकट के चलते उनको इस्तीफा देना पड़ा। कोविड के कारण उपचुनाव नहीं हो सकेगा। उनकी सरकार को जो समय मिला, उसमें अधिक से अधिक आमजन का विकास किया गया। इतने समय के लिए मुख्यमंत्री बनाये जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया। यह पक्ष सार्वजनिक है। दूसरा पक्ष सार्वजनिक नहीं, लेकिन चर्चा में जरूर है। कहा जा रहा है, भाजपा नेतृत्व ने एक तीर से दो शिकार का प्रयास किया है। पहला भाजपा को लग गया कि अगले वर्ष होनेवाले विधानसभा चुनाव में तीरथ का चेहरा सटीक नहीं बैठ रहा, इसलिए हटाया। दूसरा तीरथ के बहाने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधा गया है।

राजनीतिक गलियारे की चर्चा है कि भाजपा नेतृत्व यह जान चुका था कि तीरथ सिंह रावत में दम नहीं है। वह अपनी सरकार की वापसी या भाजपा की जीत सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं। आखिरकार कुंभ का ठीकरा भी उन पर ही फोड़ दिया गया।

तीरथ ने अपनी मर्जी से इस्तीफा दिया या भाजपा आलाकमान की मर्जी उनकी मर्जी बन गयी, इस सवाल का जवाब तो वही दे सकते हैं। लेकिन सच यही है कि तीरथ जिस संवैधानिक संकट का हवाला दे रहे हैं, वह अभी आया नहीं है।

चुनाव आयोग ने अभी तक उपचुनाव नहीं कराने की घोषणा नहीं की है। पिछले एक हफ्ते से मीडिया में उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में उपचुनाव कराये जाने की ही चर्चा है। जिसकी घोषणा जुलाई अंत या अगस्त पहले सप्ताह में होने की संभावना जतायी जा रही है। दो दिन पहले तक तीरथ उपचुनाव लड़ने का दावा कर रहे थे। वह 10 सिंतबर तक मुख्यमंत्री पद पर रह सकते थे। ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग की घोषणा से पहले दो जुलाई को अचानक इस्तीफा देना सामान्य परिस्थिति तो नहीं ही कही जा सकती है। यही कारण है कि राजनीतिक सर्किल में तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के कारणों को पश्चिम बंगाल के संदर्भ में भी देखा जा रहा है।

संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के प्रावधानों का लाभ उठाते हुए ममता बनर्जी गत 5 मई को बिना चुनाव जीते ही मुख्यमंत्री बन गयी हैं। ममता के पास 5 नवंबर तक का समय है। इससे पहले उन्हें चुनाव जीतना होगा। चुनाव आयोग क्या वहां भी चुनाव नहीं कराने की सोच रहा है। हालांकि ममता बनर्जी तीरथ सिंह नहीं हैं। अगर चुनाव आयोग ने वहां चुनाव नहीं कराया, तो ममता कई तरह के कदम उठा सकती हैं। उसमें एक कदम अदालत का रुख करना भी हो सकता है। दूसरा यह कि वह 5 नवंबर से एक-दो दिन पहले इस्तीफा दे दें। और फिर विधायक दल का नेता बन कर राज्यपाल के समक्ष सरकार बनाने का दावा कर दें।

ऐसा कर वह फिर से छह महीने के लिए मुंख्यमंत्री पद की शपथ ले सकती हैं। मगर संवैधानिक संकट को रोक पाने में वह सफल हो जायेंगी, इसकी गारंटी नहीं है। भाजपा विरोधियों के बीच चर्चा है कि भाजपा किसी ऐसी ही परिस्थिति का ताना-बाना बुनने का प्रयास कर रही है। भाजपा को कितनी सफलता मिलेगी, यह तो वक्त बतायेगा, फिलहाल तीरथ सिंह रावत के बलिदान के बहाने पश्चिम बंगाल पर जो तीर छोड़ा गया है, उसकी सनसनाहट ममता बनर्जी तक तो पहुंच ही रही है।

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