मुख्यमंत्री ने किया 73वें वन महोत्सव का उद्घाटन

आजाद सिपाही संवाददाता
रांची। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि शहरी इलाके में आवासीय परिसर में एक पेड़ लगाने पर पांच यूनिट बिजली मुफ्त दी जायेगी। शुक्रवार को यहां 68वें वन महोत्सव का उद्घाटन करने के बाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि झारखंड के शहरी क्षेत्र में रहनेवाले वैसे परिवार, जो अपने घर के परिसर में पेड़ लगायेंगे, उन्हें राज्य सरकार प्रति पेड़ पांच यूनिट बिजली फ्री देगी। जब तक कैंपस अथवा घरों के परिसर में पेड़ रहेंगे, उन्हें यह लाभ मिलता रहेगा, परंतु ध्यान रहे कि यह पेड़ कोई गेंदा या गुलाब का पौधा नहीं, बल्कि कोई फलदार या अन्य वृक्ष होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कि प्राकृतिक आपदाओं को प्राकृतिक संतुलन बनाकर ही रोका जा सकता है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करते हुए जिस प्रकार हम विकास की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, उससे विनाश को भी आमंत्रण दे रहे हैं। अगर सामंजस्य नहीं बैठाया, तो मनुष्य जीवन को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जीवन जीने के लिए पेड़ का होना जरूरी है। किसी भी वजह से पेड़ कटता है, तो उसकी भरपाई पेड़ लगाकर होनी चाहिए, यह हम सभी को मिल-जुलकर सुनिश्चित करना है। आइआइएम परिसर, पुंदाग में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि धरती में झारखंड प्रदेश अलग और अद्भुत स्थान रखता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड के जंगलों में पेड़ों को कटने से बचाने के लिए हमारी सरकार प्रतिबद्ध है। राज्य सरकार ने निर्देश दिया है कि वन आधारित क्षेत्रों में अब आरा मशीन प्लांट नहीं लगेगा। जो भी आरा मशीनें पहले से स्थापित हैं, उन्हें भी हटाने का निर्देश दिया गया है। वन आधारित क्षेत्र के पांच किलोमीटर इलाके में आरा मशीन प्लांट किसी भी कीमत पर नहीं लगेगा।

शहरीकरण से पर्यावरण को अधिक नुकसान
मुख्यमंत्री ने कहा कि शहरीकरण पर्यावरण संतुलन को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रहा है। शहरीकरण के विकास के लिए प्राकृतिक मापदंडों के साथ छेड़छाड़ अथवा खिलवाड़ घातक साबित हो रहा है। शहरी क्षेत्रों में अब कंक्रीट का जंगल दिखाई पड़ रहा है। विकास की ऊंचाइयों को छूते-छूते विनाश की ओर हमारे कदम बढ़ रहे हैं। विशेषकर शहरों में पर्यावरण की स्थिति खराब हुई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अब देखने को यह मिल रहा है कि शहरी क्षेत्रों से सटे हुए जलाशयों में पानी दूषित हो रहा है। शहरों में बसने वाले संभ्रांत लोग शुद्ध पेयजल की व्यवस्था तो कर लेते हैं, लेकिन गरीब जरूरतमंदों को दूषित पानी का ही सेवन करना पड़ रहा है। हमें इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए विकास कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत है, ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे।

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