• राजनीति-सेना-के-कामकाज-पर

देश में अग्निपथ योजना को लेकर विवाद भले ही शांत पड़ चुका हो, लेकिन इस पर राजनीति अभी भी जारी है। उपद्रवियों द्वारा देश की अरबों की संपत्ति को फूंक दिया गया, लेकिन विपक्ष के कलेजे में अभी भी ठंडक नहीं पड़ी है। अग्निपथ योजना को लेकर फिर से अफवाहों का बाजार गर्म किया जा रहा है। राजनीतिक रोटी सेंकी जा रही है। पहले तो अग्निवीरों के भविष्य को लेकर विवाद शुरू किया गया। यहां तक कहा गया कि अग्निवीर समाज के लिए खतरा होंगे और आतंकवादियों के साथ मिल जायेंगे। उम्र सीमा और रिटायरमेंट को लेकर भी सवाल खड़ा किया गया। लेकिन अब अग्निपथ के पथ में विपक्ष द्वारा एक और मामले को हवा दिया जा रहा है। यह मामला है, सेना भर्ती में जाति प्रमाण पत्र का। दरअसल, विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है कि भारत के इतिहास में पहली बार सेना भर्ती में जाति पूछी जा रही है। विपक्ष के कई नेता अग्निपथ योजना के फॉर्म में कास्ट और रिलिजन वाले हिस्से का स्क्रीन शॉट शेयर कर सवाल खड़े कर रहे हैं। लेकिन इस मामले में विपक्ष को जवाब देने खुद भारतीय सेना सामने आ गयी है। भारतीय सेना ने कहा है कि पहले भी सेना की भर्तियों में जाति प्रमाण पत्र मांगा जाता था। वहीं देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष के सवालों को महज अफवाह बताया है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया आजादी के पहले से चली आ रही है। समझा जा सकता है, ये वही विपक्ष है, जो जवानों से उसके शौर्य का सबूत मांगते फिरता है। ये वही विपक्ष है, जिसे पाकिस्तान पर हुए सर्जिकल स्ट्राइक का देश के जवानों से प्रमाण चाहिए था। आजकल विपक्ष की राजनीति मोदी के नाम से शुरू और उसी पर खत्म होती है। उन्हें मोदी के सिवा और कुछ सूझता ही नहीं। उनकी नजर मोदी के मुंह की तरफ ही होती है। जैसे ही मोदी अपनी जुबान खोलें, उधर विपक्ष लोकतंत्र की हत्या का नारा बुलंद करने लगे। आज वह व्यक्ति, जो दो मिनट तक भाषण भी ठीक से नहीं पढ़ पाता है, वह भी देश के प्रधानमंत्री पर कटाक्ष करने से पीछे नहीं है। क्या है सेना में जाति प्रमाण पत्र का सच बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

सर्जिकल स्ट्राइक का प्रमाण मांगनेवाले भी उठा रहे सवाल
मोदी सरकार द्वारा शुरू की गयी अग्निपथ योजना पर विपक्ष लगातार हमला कर रहा है। दरअसल, विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है कि भारत के इतिहास में पहली बार सेना भर्ती में जाति पूछी जा रही है। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने ट्विटर पर एक स्क्रीनशॉट शेयर किया है। उसमें उन्होंने कास्ट और रिलिजन वाले कॉलम को लाल घेरा लगा कर ट्वीट किया है। लिखा है कि केंद्र सरकार का घटिया चेहरा देश के सामने आ चुका है। क्या मोदी जी दलितों/पिछड़ों/आदिवासियों को सेना में भर्ती के काबिल नहीं मानते? भारत के इतिहास में पहली बार सेना भर्ती में जाति पूछी जा रही है। मोदी जी आपको अग्निवीर बनाना है या जातिवीर। आपको बता दें कि ये व्यक्ति उसी पार्टी से आते हैं, जो भारतीय सेना से उसके शौर्य का प्रमाण मांगने से भी नहीं हिचकती।

जातिगत जनगणना वाले भी उठा रहे सवाल
तेजस्वी यादव ने भी ट्वीट कर सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट कर तंज कसा कि जात न पूछो साधु की, लेकिन जात पूछो फौजी की। तेजस्वी आगे लिखते हैं, आजादी के बाद 75 वर्षों तक सेना में ठेके पर अग्निपथ व्यवस्था लागू नहीं थी। सेना में भर्ती होने के बाद 75 फीसदी सैनिकों की छंटनी नहीं होती थी, लेकिन संघ की कट्टर जातिवादी सरकार अब जाति/धर्म देखकर 75 फीसदी सैनिकों की छंटनी करेगी। सेना में जब आरक्षण है ही नहीं, तो जाति प्रमाण पत्र की क्या जरूरत?’ उन्होंने आगे कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार जातिगत जनगणना से दूर भागती है, लेकिन देश सेवा के लिए जान देने वाले अग्निवीर भाइयों से जाति पूछती है। ये जाति इसलिए पूछ रहे हैं, क्योंकि देश का सबसे बड़ा जातिवादी संगठन आरएसएस बाद में जाति के आधार पर अग्निवीरों की छंटनी करेगा। एक तरफ तेजस्वी यादव सेना में जाति प्रमाण पत्र का विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यही तेजस्वी यादव बिहार में जातिगत जनगणना करवाने को उतावले भी हैं। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार गये थे। बिहार विधान सभा के शताब्दी समापन समारोह के दौरान पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव मंच पर एक साथ दिखे। भाषण देने का दौर चल रहा था। तेजस्वी यादव की भी बारी आयी। लेकिन तेजस्वी यादव लिखे हुए भाषण को भी सही ढंग से पढ़ नहीं पाये। अपनी मांग को भी अटकते हुए उन्होंने पीएम के सामने रखा।

जदयू नेता ने भी उठाया सवाल
बिहार जदयू नेता और संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी जाति प्रमाण पत्र मांगे जाने पर सवाल खड़े किये थे। उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से इस पर स्पष्टीकरण मांगा। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, सेना की बहाली में जाति प्रमाण पत्र की क्या जरूरत है, जब इसमें आरक्षण का कोई प्रावधान ही नहीं है। संबंधित विभाग के अधिकारियों को स्पष्टीकरण देना चाहिए।

विपक्ष को मिला वरुण गांधी का साथ
भाजपा के ही सांसद वरुण गांधी ने कास्ट और रिलिजन सर्टिफिकेट मांगे जाने का एक स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए कहा कि सेना में किसी भी तरह का कोई आरक्षण नहीं है, पर अग्निपथ की भर्तियों में जाति प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है। क्या अब हम जाति देख कर किसी की राष्ट्रभक्ति तय करेंगे? सेना की स्थापित परंपराओं को बदलने से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर जो प्रभाव पड़ेगा, उसके बारे में सरकार को सोचना चाहिए।

भारतीय सेना का जवाब
अग्निपथ योजना में जाति एंगल पर भड़के विवाद के बीच सेना का बयान भी आ गया है। भारतीय सेना की ओर से जानकारी दी गयी है कि पहले भी सेना की भर्तियों में जाति प्रमाण पत्र मांगा जाता था। ऐसे में अग्निवीर योजना के लिए अगर जाति प्रमाण पत्र मांगे जा रहे हैं, तो इसमें कुछ भी नया नहीं है। सेना ने बताया है कि हमारे जवान सर्वोच्च बलिदान के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। ऐसे में शहीदों के अंतिम संस्कार के लिए धर्म जानना जरूरी होता है। इसलिए जाति प्रमाण पत्र की आवश्यकता पड़ती है। जाति और धर्म प्रमाण पत्र पहले भी मांगा जाता रहा है। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है। जैसे ही सेना में भर्ती होती है, धर्म और जाति पूछी जाती है। सेना के पास सैनिक की पूरी जानकारी होनी चाहिए। सेना हर तरह से सैनिक की परंपरा का ख्याल रखती है।

रक्षा मंत्री का जवाब
अग्निपथ योजना के तहत जाति प्रमाण पत्र मांगने को लेकर उठे सवालों पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह खुद सामने आये। उन्होंने इन सवालों को महज अफवाह बताया है। राजनाथ सिंह ने कहा, सैन्य भर्ती की प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया है। पुरानी प्रक्रिया को ही जारी रखा गया है। उन्होंने कहा, यह प्रक्रिया आजादी के पहले से चली आ रही है।

भाजपा का जवाब
सत्तारूढ़ भाजपा ने आरोप लगाया कि आलोचक सेना का अनादर और अपमान कर रहे हैं। वे युवाओं को सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि हकीकत यह है कि भारतीय सेना किसी भी कीमत पर धर्म या जाति के आधार पर भर्ती नहीं करती है। जाति और धर्म से कहीं ऊपर भारत की सेना है। फिर भी ये कॉलम क्यों हैं? इसका उत्तर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के पटल पर मिला। एक व्यक्ति ने पीआइएल दाखिल किया था कि जाति और धर्म के कॉलम सेना की भर्ती में क्यों होते हैं। उसी साल एफिडेविट पेश कर भारतीय सेना ने हलफनामे में स्पष्ट किया था कि वह जाति, क्षेत्र और धर्म के आधार पर भर्ती नहीं करती है। प्रशासनिक सुविधा और परिचालन आवश्यकताओं के लिए एक क्षेत्र से आने वाले लोगों के समूह को एक रेजिमेंट में रखने को उचित ठहराती है। संबित ने कहा कि 2013 में मोदी सरकार नहीं थी, तब कांग्रेस के समय सेना की ओर से साफ किया जा चुका है। उन्होंने कहा, क्या माननीय सांसद, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस नहीं जानती? फिर भी सेना को अखाड़े में लाना उचित नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह राजनीति सेना को बदनाम करने के लिए है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि सेना ने कहा है कि अगर युद्ध के समय कोई जवान शहीद होता है, तो उसकी अंत्येष्टि की जायेगी। वह कैसे की जायेगी, यह निर्धारण भी पूरी संवेदनशीलता के साथ किया जाता है। इसलिए धर्म का कॉलम भर्ती प्रक्रिया में रखा जाता है। वहीं भाजपा नेता अमित मालवीय ने कहा, दरअसल, हर चीज के लिए पीएम मोदी को दोष देने की सनक का ही नतीजा है, जिसकी वजह से संजय सिंह जैसे लोग हर दिन ऐसी बेवकूफाना हरकतें और आधारहीन बातें करते रहते हैं। सेना की रेजीमेंट प्रणाली अंग्रेजों के जमाने से ही अस्तित्व में है। स्वतंत्रता के बाद इसे 1949 में एक विशेष सेना आदेश के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया था। मोदी सरकार ने कुछ नहीं बदला।

जाहिर है कि सेना की भर्ती प्रक्रिया में नया कुछ भी नहीं जोड़ा गया है। सेना के कामकाज को राजनीति की निगाहों से देखना देशहित में नहीं है। अग्निपथ योजना के बारे में उठा ताजा विवाद भी विपक्ष द्वारा हर मुद्दे को विवादित बनाने की कोशिश के तहत की माना जाना चाहिए।

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