पटना। पटना के बाद सोमवार को बेंगलुरू में विपक्ष की बैठक शुरू हो चुकी है। इसको लेकर पक्ष और विपक्षी नेताओं की बयानबाजी भी खूब हो रही है। इसपर जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने बड़ा बयान दिया। प्रशांत किशोर ने कहा कि विपक्षी एकता सिर्फ दलों के नेताओं के एकसाथ बैठ जाने से उसका बहुत बड़ा प्रभाव जन मानस पर नहीं पड़ेगा। प्रभाव तब पड़ेगा, जब विपक्षी नेताओं और दलों के साथ मन का भी मेल हो।

प्रशांत किशोर ने समस्तीपुर जिले के दलसिंहसराय में सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि 2019 में भी सारे दल एक साथ हुए थे। बावजूद इसके उसका कोई असर नहीं दिखा था। जिस भूमिका में आज नीतीश कुमार दिखने का प्रयास कर रहे हैं, करीब-करीब इसी भूमिका में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू थे। देश की बात तो छोड़ दीजिए अपने आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू बुरी तरह हार गए थे। तो नीतीश कुमार हो या कोई भी जो विपक्ष को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा है जबतक जनता के मुद्दों पर सहमति नहीं होगी, तबतक मुझे नहीं लगता कि इन प्रयासों का कोई असर होगा। हां, ये जरूर है कि इतने सारे दल एक साथ आएंगे, तो मीडिया के लिए चर्चा का विषय होगा, समाज का एक वर्ग जो सामाजिक-राजनीतिक तौर पर जागरूक है उनके लिए उत्सुकता का विषय हो सकता है।

प्रशांत किशोर ने कहा कि मान लीजिए, नीतीश कुमार कोलकाता में बैठ जाएं, तो उससे वहां रहने वाले लोगों और उनकी जनभावना पर भला क्या असर पड़ेगा। अगर, ममता बनर्जी आज समस्तीपुर में आ जाएं, तो समस्तीपुर की जनता को उससे क्या मतलब है कि ममता बनर्जी आकर बोले या स्टालिन। विपक्षी एकता लोकतंत्र की एक प्रक्रिया है, लोकतंत्र मजबूत होना चाहिए लेकिन, मेरी समझ से इसमें चुनावी सफलता तभी मिलेगी जब इन दलों के पास प्रोग्राम होगा, जिसको लेकर वो जनता के बीच जा सकते हैं, जनता का समर्थन मिले, तभी उसका परिणाम चुनावी नतीजों में दिखेगा।

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