विशेष
मांडर विधानसभा क्षेत्र में शुरू हो गयी चुनावी कसरत
-सीधा मुकाबला हुआ, तो खतरे में पड़ सकती है कांग्रेस की सीट
-शिल्पी नेहा तिर्की के सामने बड़ी चुनौती बन सकते हैं सन्नी टोप्पो
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड विधानसभा की 81 सीटों के लिए चुनाव की घोषणा अभी नहीं हुई है, लेकिन यहां चुनावी कसरत शुरू हो गयी है। टिकट की दावेदारी से लेकर राजनीतिक-सामाजिक समीकरण साधने और मतदाताओं के बीच पैठ बनाने के लिए तमाम कोशिशें शुरू हो गयी हैं। झारखंड विधानसभा की कुछ ‘हॉट सीटों’ में से एक मांडर विधानसभा सीट है, जो प्रशासनिक रूप से रांची जिले में है, लेकिन चुनावी नक्शे पर लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में है। आदिवासियों के लिए आरक्षित यह सीट इसलिए पूरे राज्य में चर्चित है, क्योंकि यहां से 2019 में झाविमो के टिकट पर विधायक चुने गये बंधु तिर्की बाद में कांग्रेस में शामिल हो गये, लेकिन अदालत द्वारा एक मामले में सजा सुनाये जाने के बाद उनकी सदस्यता चली गयी। फिर यहां 2022 में उप चुनाव हुआ और उसमें बंधु तिर्की की पुत्री शिल्पी नेहा तिर्की जीत गयीं और सबसे युवा विधायक बन गयीं। मांडर विधानसभा सीट इसलिए भी चर्चा में है, क्योंकि यहां पार्टी को कम, प्रत्याशी को अधिक महत्व मिलता है। झारखंड बनने के बाद से यह सीट हमेशा से चर्चित रही है। इस बार मांडर का चुनावी परिदृश्य बता रहा है कि यहां का चुनावी मुकाबला बहुत रोमांचक होगा। इसे देखते हुए शिल्पी नेहा तिर्की खेतों में उतर कर धान रोपने लगी हैं, तो उनका रास्ता रोकने के लिए भाजपा ने ठोस रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। भाजपा की तरफ से टिकट के दावेदारों में पहला नाम सन्नी टोप्पो का है, जिनकी इलाके में अलग पहचान है। पिछले साल जनवरी में वह भाजपा में शामिल हुए थे और तब से उन्होंने लगातार मांडर में भाजपा को मजबूती दी है। उनके अलावा कई और दावेदार भी हैं, लेकिन सन्नी टोप्पो का नाम आज पूरे मांडर में चर्चा में है। क्या है मांडर विधानसभा क्षेत्र का चुनावी माहौल और क्या हैं संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड विधानसभा की 81 सीटों में जिनकी गिनती ‘हॉट सीट’ में होती है, उनमें से एक मांडर भी है। आदिवासियों के लिए आरक्षित इस सीट पर हमेशा से रोमांचक मुकाबला होता आया है और इस बार भी मामला बेहद नजदीकी हो सकता है। राजनीतिक कारणों से अनायास ही कांग्रेस की झोली में आ चुकी मांडर विधानसभा सीट से कांग्रेस ने कभी जीत हासिल नहीं की, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद झाविमो के टिकट पर चुने गये बंधु तिर्की के कांग्रेस में शामिल होने के बाद यह सीट कांग्रेस के पास चली गयी। बाद में बंधु तिर्की की विधायकी रद्द होने के बाद कांग्रेस ने उनकी बेटी शिल्पी नेहा तिर्की को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत हासिल की।
क्या था 2019 के विधानसभा चुनाव का परिणाम
मांडर विधानसभा क्षेत्र में 2019 के विधानसभा चुनाव में झाविमो के बंधु तिर्की ने भाजपा के देव कुमार धान को 22 हजार 857 वोटों से हराया था। उस चुनाव में कांग्रेस को महज आठ हजार से कुछ अधिक वोट मिले थे और उसके प्रत्याशी पांचवें नंबर पर रहे थे। बंधु तिर्की को कुल 92 हजार 491 और देव कुमार धान को 69 हजार 634 वोट मिले थे। चुनाव के बाद झाविमो का भाजपा में विलय हो गया, लेकिन बंधु तिर्की कांग्रेस में शामिल हो गये।
क्या हुआ था 2022 के उप चुनाव में
अदालत द्वारा सजा सुनाये जाने के कारण बंधु तिर्की की विधायकी रद्द हो गयी, तो कांग्रेस ने उनकी बेटी शिल्पी नेहा तिर्की को मांडर से मैदान में उतारा। उनके मुकाबले भाजपा ने गंगोत्री कुजूर को उतारा, जो 2014 में यहां की विधायक रह चुकी थीं। उस चुनाव में देव कुमार धान ने भाजपा से बगावत कर एआइएमआइएम के टिकट पर मैदान में आकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की। जब परिणाम घोषित हुआ, तो कांग्रेस प्रत्याशी शिल्पी नेहा तिर्की को 95 हजार 62 मत मिले, जबकि भाजपा प्रत्याशी गंगोत्री कुजूर को 71 हजार 585 वोट मिले थे। वहीं देवकुमार धान ने 22 हजार 395 मत प्राप्त किया था।
लोकसभा चुनाव में क्या हुआ
हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में लोहरदगा सीट से कांग्रेस की जीत हुई। मांडर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को 1.31 लाख से अधिक, जबकि भाजपा को 82 हजार 466 वोट मिले थे। यह आंकड़ा बताता है कि मांडर में भाजपा का जनाधार बहुत बढ़ गया है और 2019 और 2022 के मुकाबले उसके वोट में बढ़ोत्तरी हुई है।
मांडर विधानसभा क्षेत्र का सियासी इतिहास
मांडर विधानसभा क्षेत्र का रोचक इतिहास रहा है। वर्ष 2000 में अलग झारखंड बनने से ठीक पहले संयुक्त बिहार के समय देव कुमार धान ने यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। उसके बाद मांडर में कोई भी विधानसभा चुनाव कांग्रेस नहीं जीत पायी। मांडर का पिछले 20 वर्षों का चुनावी इतिहास इस ओर इशारा करता है कि यहां के मतदाता किसी दल विशेष या बड़े दल की जगह नेता के व्यक्तिगत बात-व्यवहार और काम से जुड़ाव रखते हैं। यही वजह है कि झारखंड बनने के बाद मांडर विधानसभा के लिए जितने भी चुनाव हुए, सभी के केंद्र में बंधु तिर्की और देव कुमार धान रहे। वर्ष 2014 विधानसभा चुनाव की बात छोड़ दें, तो बंधु तिर्की ने वर्ष 2005, 2009 और 2019 में अलग-अलग दलों से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वर्ष 2005 में हुए चुनाव में बंधु तिर्की ने यूजीडीपी (यूनाइटेड गोवन डेमोक्रेटिक पार्टी) से चुनाव लड़ा और जीता। 2009 में बंधु तिर्की ने झारखंड जन अधिकार मंच से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वहीं 2014 में भाजपा की गंगोत्री कुजूर ने उन्हें शिकस्त दी थी। 2019 का विधानसभा चुनाव फिर बंधु तिर्की ने झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर लड़ा और विधायक बने।
भाजपा का जनाधार बढ़ा है
झारखंड बनने के बाद से अब तक के चुनावी नतीजे यह बताते हैं कि यहां पर मुख्य रूप से व्यक्ति आधारित राजनीति हावी रही है, लेकिन इस बीच भारतीय जनता पार्टी ने अपने वोट बैंक बढ़ाया है और 2014 के विधानसभा चुनाव में जीत भी हासिल की है।
मांडर का सामाजिक समीकरण
मांडर विधानसभा क्षेत्र में करीब 3.54 लाख मतदाता हैं। इनमें करीब 1.75 लाख सरना (आदिवासी) मतदाता, 74 हजार हिंदू, 70 हजार मुसलमान और 30 हजार इसाई मतदाता हैं।
किनके बीच मुकाबले के आसार
मांडर विधानसभा सीट पर इस बार होनेवाला चुनाव बेहद रोमांचक होगा। कांग्रेस की तरफ से एक बार फिर शिल्पी नेहा तिर्की को ही उतारे जाने की संभावना है, जबकि भाजपा में सन्नी टोप्पो टिकट की रेस में सबसे आगे चल रहे हैं। मांडर में भाजपा का जनाधार बढ़ने का कारण सन्नी टोप्पो ही हैं। 2023 के जनवरी महीने में भाजपा में शामिल हुए सन्नी टोप्पो की पहचान एक जुझारू और जमीन से जुड़े नेता के रूप में है। बीते लोकसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी के लिए जो काम किया, उससे प्रदेश नेतृत्व ही नहीं, आलाकमान भी बेहद प्रभावित है। भाजपा में वैसे तो कई और दावेदार हैं, लेकिन मांडर के लोग कहते हैं कि शिल्पी नेहा तिर्की का रास्ता केवल सन्नी टोप्पो ही रोक सकते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि सन्नी टोप्पो का प्रभाव हर जाति और वर्ग में समान रूप से है। इलाके में वह पार्टी का प्रमुख आदिवासी चेहरा भी हैं। चर्चा तो यहां तक है कि यदि मांडर में इस बार सीधा मुकाबला हुआ, तो कांग्रेस के लिए सीट बचाना भी कठिन होगा।
फिलहाल मांडर की हवा में चुनावी सुगंध फैलने लगी है और चौक-चौराहों पर चर्चाएं चल रही हैं। अंतिम परिणाम के लिए तो अभी इंतजार करना ही होगा।