विशेष
-हेमंत-हेमंत रटते-रटते असली मुद्दों से भटक गयी है भाजपा
-सिर्फ आरोप लगाने और समस्याएं गिनाने से नहीं होगा बेड़ा पार
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि जब तक राजनीति में विकल्प नहीं होगा, कोई भी दल या विचारधारा सफल नहीं हो सकती है। डॉ लोहिया की यह बात आज भारतीय राजनीति में, खासकर झारखंड में कुछ-कुछ हद तक सच साबित होती हुई दिख रही है। भारत की राजनीति में अब विकल्पों की बात कोई नहीं करता, यानी राजनीति का केंद्र केवल सत्ता बन गया है और यही हाल झारखंड में भी है। दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा के लिए झारखंड की सत्ता दोबारा हासिल करना एक बड़ा चैलेंज है, लेकिन उसके नेता यह नहीं समझ रहे हैं कि सत्ता का यह रास्ता सिर्फ आरोप लगाने या मुद्दा गिनाने से नहीं, उसका समाधान निकालने से निकलेगा। झारखंड में भाजपा की हालत यह है कि विपक्ष में होने के बावजूद वह किसी मुद्दे पर सड़क पर उतर कर आंदोलन करने से हिचकने लगती है, उनका आंदोलन सोशल मीडिया या सिर्फ बयानों तक सिमट जाते हैं। इसका परिणाम हाल में संपन्न लोकसभा चुनावों में मिल चुका है, जब भाजपा के दिग्गजों अर्जुन मुंडा और समीर उरांव को झारखंड में हार का सामना करना पड़ा। मुद्दों को उठाने की बजाय यदि मुद्दों के समाधान की तरफ भाजपा ध्यान देगी, तो जनता के बीच उसका आधार बढ़ सकता है, लेकिन भाजपा का कोई नेता इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है।
जिस तरह लोकसभा चुनाव से पहले इंडी गठबंधन के लिए मुद्दा ‘केवल मोदी’ थे, वैसे ही झारखंड में भाजपा की पूरी ऊर्जा ‘केवल हेमंत’ पर ही खर्च हो रही है। लोकसभा चुनाव में जैसे ही इंडी गठबंधन ने विकल्पों को सामने रखना शुरू किया, उसे सफलता मिल गयी। मसलन चुनाव में इंडी गठबंधन ने अपना प्लान साफ-साफ जनता से साझा किया। उसने बताया कि केंद्र में उनकी सरकार आने पर वह गरीब महिलाओं के खाते में हर महीने आठ हजार रुपये बारह महीने तक खटाखट डालेंगे। झारखंड में उठी सरना धर्मकोड की मांग को वह पूरा करेंगे। जल-जंगल जमीन पर हक देंगे। झारखंड में जाति आधारित गणना करायेंगे। आदिवासी और ओबीसी आरक्षण की सीमा को वह बढ़ायेंगे। उसका असर यह दिखा कि झारखंड में इंडी गठबंधन की सीट दो से बढ़ कर पांच पर पहुंच गयी। एनडीए बारह सीटों से सिमट कर नौ पर आ गया। झारखंड में अगले कुछ दिनों में विधानसभा का चुनाव होना है और यदि भाजपा ने अपना तरीका नहीं बदला, तो उसके सपनों को पंख लगना मुश्किल है। क्या है झारखंड भाजपा की कमजोरी और इसका क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में देखा जाये तो मुद्दों की कोई कमी नहीं है। अगर आप घर से बाहर पहला कदम ही रखेंगे, तो मुद्दा पर ही रखेंगे। चारों तरफ आपको मुद्दा ही मुद्दा दिखेगा। ज्यादातर चिर-परिचित मुद्दे आपको घेरे रहेंगे। मुद्दा इसलिए दिखेगा, क्योंकि आप उन समस्याओं के बीच रहते हैं। उन समस्याओं की जननी से आप अच्छी तरह से परिचित होते हैं। उसके बाद आप उन समस्याओं के निष्पादन का रास्ता ढूंढ़ते हैं, न कि उन समस्याओं की जननी को आप दिन भर कोसते रहते हैं। जो सिर्फ कोसते हैं, वे उन समस्याओं से घिरे रहते हैं, लेकिन जो निदान की दिशा में पहल करते हैं, वे उन समस्याओं का निष्पादन कर लेते हैं।
ठीक यही हाल झारखंड के राजनीतिक दलों का है। हर दल सिर्फ एक-दूसरे को कोसते रहते हैं। मुद्दों की जननी को तो कोसते हैं, लेकिन मुद्दों के समाधान के बारे में कोई कार्य योजना तय नहीं करते। फिलहाल इन राजनीतिक दलों में भाजपा अभी अव्वल चल रही है। भाजपा मुद्दा तो उठाती है, लेकिन उस मुद्दे का हल नहीं बताती। भाजपा समस्या तो गिनवाती है, लेकिन समस्या का हल क्या हो सकता है, उसके बारे में उसकी कोई रणनीति नहीं दिखाई पड़ती। भाजपा भ्रष्टाचार का आरोप तो लगाती है, लेकिन उसका साक्ष्य नहीं दे पाती। जिन विभागों में भ्रष्टाचार की बात वह करती है, उसकी जड़ में वह जाना नहीं चाहती। कई ऐसे आरोप उसने लगाये, जिनका बीजारोपण दस या पंद्रह साल पहले ही हो चुका था, लेकिन वह सिर्फ पूंछ पकड़ कर यानी महागठबंधन सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल पर आकर अटक जाती है। बात झारखंड की। उदाहरण के तौर पर, जैसे केंद्र में इंडी गठबंधन के पास मुद्दा क्या था, सिर्फ मोदी। उसके पास अपना कोई विजन नहीं था। लेकिन जैसे ही इंडी गठबंधन ने जनता के सामने मोदी के अलावा अन्य मुद्दों को स्थान दिया, वे क्लिक कर गये। चाहे हर महीने टकाटक पैसे वाला फार्मूला हो या संविधान कीलाल किताब पकड़ कर अपना एजेंडा फैलाना। इंडी गठबंधन इसमें सफल हो गयी।
झारखंड में भाजपा का भी हाल इंडी गठबंधन वाला ही है। उसके पास हेमंत सोरेन के अलावा कोई मुद्दा ही नहीं है। जो मुद्दा भी वह उठाती है, उस मुद्दे को हवा देने के लिए कोई रणनीति पर कार्य नहीं होता। कोई आंदोलन नहीं होता। गलती से अगर इक्का-दुका कभी आंदोलन हुआ हो, और गलती से किसी नेता को एक-दो लाठी पड़ गयी हो, तो वह अपने जख्म को कैसे जूम कर के दिखा पाये, कैसे प्रचारित कर पाये, उसमें ही अपना तंत्र इस्तेमाल करता रहता है।
आंदोलन का असर क्या हुआ, क्या उस आंदोलन से उस मुद्दे का कोई हल निकल पाया, या वह मुद्दा जनता के बीच कोई जगह बना पाया, यह जानने का कोई जतन नहीं करता। बस मैंने कंधे पर लाठी खायी, हाय रे मेरा माथा फट गया रे, पीठ लाल हो गयी रे, टैग करो जल्दी-जल्दी, मोदी जी को टैग करो, अमित शाह को टैग करो, जेपी नड्डा को टैग करो, ट्विटर और फेसबुक पर फोटो डालो, बताओ मोदी जी, अमित शाह जी को कि देखिये मैंने पार्टी के लिए कितने डंडे खाये। इसके पीछे मंशा तो यही रहती होगी कि इस बार तो टिकट मुझे ही मिलना चाहिए। लेकिन क्या लाठी खाने के बाद आप जनता के बीच गये, जनता को बताया कि देखिये आपके मुद्दे हम जोर-शोर से उठा रहे हैं, आपकी समस्या के लिए हम प्रयास कर रहे हैं, चाहे शरीर का पुर्जा-पुर्जा ही क्यों न टूट जाये, हमारा कदम अब पीछे नहीं हटेगा। दूसरी तरफ कल्पना सोरेन या जेएमएम के नेताओं ने क्या किया। उनके पास एक मुद्दा था। हेमंत सोरेन को गलत तरीके से जेल में डाला गया। उनके साथ अन्याय हुआ है। मुद्दा यह नहीं था कि विकास करेंगे। मुद्दा यही था कि हेमंत सोरेन के साथ अन्याय हुआ है। इसे लेकर वह जनता के बीच गये। जनता ने उनकी बातों को समझा और ऐसा समर्थन दिया कि आज हेमंत सोरेन जेल से बाहर हैं। मुद्दा जेएमएम का था, न कि जनता का, लेकिन जेएमएम अपने लोगों के पास गया, कल्पना सोरेन अपने लोगों, अपने वोटरों के पास गयीं, उनके दरवाजे गयीं, हाथ जोड़ा, आंसू बहाया, अपनी पीड़ा को अपने वोटरों के साथ बांटा। जनता को भी लगा कि कल्पना सोरेन हमारे दरवाजे आयी हैं। वह हमें कितना मानती हैं। वह हमें अपना मानती हैं, तभी तो वह अपना दर्द हमसे साझा कर रही हैं। तो लोगों ने भी कल्पना को अपनी बेटी माना, बहन माना, बहू माना और खुल कर आशीर्वाद दिया। यहां हेमंत सोरेन के साथ अन्याय मुद्दा था। उसे जेएमएम ने जनता के बीच में ठीक तरीके से पिच किया। यानी मुद्दों का प्रेजेंटेशन बहुत मायने रखता है।
यहीं भाजपा पिछड़ रही है। भाजपा के नेता बस माला पहनने में व्यस्त रहते हैं, लेकिन वही माला वे अगर अपने वोटरों को पहना दें, सम्मान बढ़ा दें, फिर देखिये उसका पूरा समर्पण स्पष्ट दिखाई पड़ेगा। अभी हाल में भाजपा की तरफ से विधानसभा के लिए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रभारी बनाया गया और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को सह प्रभारी। लेकिन जब ये भी झारखंड का दौरा कर रहे हैं, तो इनके केंद्र में सिर्फ हेमंत ही हैं। उन पर ही हमला बोल रहे हैं। अरे, अब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ चुके हैं। आपके पास झारखंड के विकास के लिए क्या-क्या योजनाएं हैं, यह क्यों नहीं जनता को बता रहे हैं। झारखंड सरकार द्वारा कई जनहित योजनाओं की शुरूआत हुई है, क्यों नहीं उससे आप कंपीट कर रहे हैं। क्यों नहीं घोषणा पत्र जारी कर रहे हैं और बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को टारगेट दे रहे हैं कि आप जनता के बीच जाइये और जनता की समस्याओं को सुनिए और उसका हल कैसे निकले, उस पर काम कीजिये। आप खुद जनता के पैरोकार क्यों नहीं बन जाते। साथ जाइये, उसकी समस्याओं को सुलझाइये, उसके सुख-दु:ख का साथी बनिए, सिर्फ उनके घरों में जाकर खाना-खाने से नहीं होगा। पूछिए कि राशन मिल रहा है कि नहीं। नहीं मिल रहा है, तो उसकी समस्या का हल निकालिये। पता कीजिये, क्यों नहीं मिल रहा है। जनता से सिर्फ वोट मांगने से नहीं होगा। उसकी जिंदगी में झांकिये, सुख-दुख का साथी बनिये, तभी कुछ होगा। नहीं तो जोड़-तोड़ की राजनीति में बस पार्टी लगी रहेगी। उस फलाना पार्टी के नेता को तोड़ लेते हैं। कौन नेता वोट काटेगा, उसकी सूची बनाते हैं, लेकिन आपका नेता क्या करेगा, उस पर कोई विचार नहीं। झारखंड में भाजपा के नेताओं ने यह आरोप तो लगाया कि उसके हजारों हजार वोटरों के नाम मतदाता सूची से गायब हो गये हैं और वे वोट देने से वंचित रह गये हैं, लेकिन वे उसकी तह में नहीं गये। जब वोटर लिस्ट सामने आयी, तो आपने उसकी स्क्रूटनी क्यों नहीं करायी। आपके बूथ बहादुर और पन्ना प्रमुख बहादुर क्या कर रहे थे। आखिर उन्हें इसीलिए तो रखा गया है कि मतदाता के पास वे जायेंगे। जब उन्हें पता ही नहीं है कि किस मतदाता का लिस्ट में नाम नहीं है, किसका है, तो वे किसे लेकर बूथ तक आयेंगे। किसे घर-घर जाकर समझायेंगे।
भाजपा ने पिछले 10 वर्षों में झारखंड में कौन सा फायर ब्रांड नेता तैयार किया है, जो प्रभावशाली हो, कोई बता सकता है। मुझे लगता है एक भी नहीं। अगर आंदोलन ही नहीं होगा, तो नेता तैयार होगा कैसे। आंदोलन का मतलब सिर्फ सड़क पर उतरना नहीं होता। आंदोलन का मतलब एक ऐसी शुरूआत, जो झारखंड की समस्याओं को सुलझाये। क्यों नहीं आदिवासियों के लिए भाजपा एक मंच बनाती है, जिससे आदिवासियों की जो भी समस्याएं हंै, उसका हल निकल पाये। कोई कानूनी मामला हो, तो वकील दे दे। कोई सरकारी योजना का मामला हो, तो कार्यकर्ता उसे योजना का लाभ दिलवाने में सहयोग करें। अगर कोई बीडीओ-सीओ गलत कर रहा है, तो क्यों भाजपा कार्यकर्ता ब्लॉक में जाकर उस बात को नहीं उठाते। लेकिन यह सब तो होगा नहीं। सिर्फ हेमंत सोरेन ने ये गलती की, हेमंत सोरेन ने वह गलती की। अब जवाब दीजिये कि हेमंत सोरेन ने क्या किया। कोर्ट ने तो उन्हें साफ साफ यह कहते हुए जमानत दे दी कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। बोल भी दिया कि जिस मामले में वह जेल गये थे, उससे उनका कोई भी सीधा संबंध नहीं है। भाजपा यह भी आरोप लगाती है कि प्रेम प्रकाश ने यह किया, पंकज मिश्रा ने वह किया, आखिर भाजपा यह क्यों नहीं बताती कि प्रेम प्रकाश को लेकर झारखंड आया कौन था। क्या पंकज मिश्र का कारोबार सिर्फ पांच साल में फैला है। क्या मनरेगा घोटाला पांच साल के दरम्यान हुआ। क्या वीरेंद्र राम ने पांच साल में करोड़ों की कमाई की।
भाजपा की दुर्गति झारखंड में इसलिए हो रही है, क्योंकि वह जनता से कट रही है। अर्जुन मुंडा भी जनता से कट गये थे, तो जनता ने भी उन्हें रास्ता दिखा दिया। इससे बड़ा सबक भाजपा के लिए और क्या हो सकता है। सार यही है कि जब तक भाजपा जनता के बीच नहीं जायेगी, जनता के मुद्दों को नहीं समझेगी और मुद्दों की जड़ तक जाकर समस्याओं को नहीं सुलझायेगी, उससे रिश्ता नहीं डेवलप करेगी, उसके सुख-दु:ख की साथी नहीं बनेगी, तब तक भाजपा के लिए सत्ता की डगर मुश्किल है। भाजपा के पास क्या नहीं है। संसाधनों की कोई कमी नहीं है। संगठन है, नेता हैं, चेहरा हैं। बस मोदी जी, अमित जी से बाहर निकलिये और खुद क्या करेंगे, वह बताइये, तभी सफलता की रोशनी दिखाई पड़ेगी। तभी भाजपा हेमंत 3.0 का मुकाबला कर पायेगी, नहीं तो और कोई चारा नहीं है।