रांची। कैंसर ने सिर्फ बीमार नहीं किया, कुछ अनमोल रिश्ते भी दिये। मेरी बीमारी का अपडेट यह है कि यह अब दिमाग में भी आ गयी। इसके लिए रेडिएशन लेना पड़ा। लंग वाला कैंसर पहले नॉन स्मॉल था, जो अब स्मॉल सेल में बदल गया। इस बदलाव ने इलाज के विकल्प सीमित कर दिये। स्थिति यह हो गयी कि अब मौत का इंतजार कीजिए। कोई तय प्रोटोकॉल है ही नहीं इस स्थिति में इलाज का। ऐसे में एक चमत्कार हुआ है। आपसे साझा कर रहा हूं, ताकि सनद रहे।
जब इलाज के विकल्प खत्म हुए तो मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में मेडिकल आंकोलॉजी के प्रोफेसर और एचओडी डॉ कुमार प्रभाष और उनके साथी बहुत ही प्रतिष्ठित प्रोफेसर डॉ विजय पाटिल सामने आये और एक ऐसी थेरेपी का विकल्प सामने रखा, जिसका ग्लोबल खर्च साढ़े 4 लाख अमेरिकी डॉलर अर्थात करीब पौने चार करोड़ भारतीय मुद्रा है। मेरे लिए यह रकम इतनी बड़ी है कि शायद मैं मौत को चुनता, इस थेरेपी को नहीं।
लेकिन, आपको यह जान कर खुशी होगी, आश्चर्य भी कि डॉ विजय पाटिल ने मेरी यह थेरेपी मुफ्त में करने की पहल की है। यह एक तरह का ट्रांसप्लांट है, जो ठाणे (मुंबई) के टाइटन मेडिसिटी सुपर स्पेशलटी हॉस्पिटल में होगा। मैं इसके लिए 22 जुलाई को मुंबई जा रहा हूं। इस थेरेपी से भारत में पहला ट्रांसप्लांट डॉ विजय पाटिल ने ही किया था। मैं देश का शायद दूसरा मरीज बनूं, जिसका इलाज इस थेरेपी से होगा। कहते हैं न कि न जाने किस रूप में तुमको नारायण मिल जायेंगे। मुझे डॉ विजय पाटिल और डॉ कुमार प्रभाष के रूप में नारायण मिल चुके हैं।
ईश्वर उन्हें हमेशा स्वस्थ रखें और उनको शानदार सफलता दें। उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करें। मुझ पर जो अहसान वे लाद रहे हैं, मेरा परिवार सर्वदा उनका आभारी रहेगा।