विशेष
भाजपा-आजसू के बीच भी फंसेगा सीट बंटवारे का पेंच
-विधानसभा चुनाव में जदयू के दावे ने बढ़ा दी है एनडीए की टेंशन
-2019 में चार सीटों पर आजसू ने प्राप्त किये थे भाजपा से अधिक वोट
-विवाद बढ़ा, तो इस बार भी भाजपा को ही उठाना होगा बड़ा नुकसान
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड विधानसभा का चुनाव इसी साल अक्टूबर-नवंबर में होना है। भाजपा ने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है। चुनाव प्रभारी के रूप में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा के दौरे लगातार हो रहे हैं। भाजपा के साथ एनडीए में अभी सिर्फ आजसू पार्टी है, लेकिन अब जदयू के एलान के बाद झारखंड में सीट शेयरिंग एक बड़ा मुद्दा बन गया है। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने झारखंड में अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसने आजसू के साथ अपनी 20 साल पुरानी दोस्ती खत्म कर दी थी, जिसका खामियाजा उसे उठाना पड़ा था। भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी थी। लेकिन उसके बाद भाजपा ने आजसू को फिर से अपने साथ जोड़ा और लोकसभा चुनाव में फिर गिरिडीह सीट उसे देकर उसने गठबंधन को बरकरार रखा। लेकिन पहले गांडेय में हुए उपचुनाव में भाजपा की एकतरफा घोषणा और फिर मोदी 3.0 सरकार में आजसू को जगह नहीं मिलने से आजसू के भीतर थोड़ी असहज स्थिति है। इसके बाद अब विधानसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग के मुद्दे पर पेंच फंसने लगा है।
इस मुद्दे को लेकर तनातनी की स्थिति बनती दिख है। ऐसी कई सीटें हैं, जहां दोनों दल दावेदारी कर रहे हैं। 2019 में चार ऐसी विधानसभा सीटें थीं, जहां भाजपा के मुकाबले आजसू को अधिक वोट मिले थे और इस बार उन सीटों पर आजसू अपना दावा नहीं छोड़ेगी। इसके अलावा भी कई ऐसी सीटें हैं, जहां आजसू की स्थिति मजबूत है और यदि भाजपा ने इस पर ध्यान नहीं दिया, तो उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। क्या है एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग का पेंच और क्या हो सकता है इसका परिणाम, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड विधानसभा चुनाव की तैयारियों में देश के दो बड़े गठबंधन, एनडीए और इंडिया के नेता जुट गये हैं। सीएम के चेहरे से लेकर सीटों के बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन की हड़बड़ी एनडीए में अधिक दिख रही है। एनडीए के भीतर अन्य मुद्दों के अलावा सबसे बड़ा पेंच सीट शेयरिंग में फंस गया है। झारखंड में एनडीए में शामिल दलों में भाजपा के साथ केवल आजसू पार्टी ही है, लेकिन अब जदयू ने भी झारखंड में विधानसभा चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर ली है। वैसे अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जदयू एनडीए में रह कर झारखंड विधानसभा का चुनाव लड़ेगा या अलग होकर। इसके बाद से एनडीए की टेंशन बढ़ गयी है।
इन सीटों पर है भाजपा और आजसू के बीच विवाद
फिलहाल जो स्थिति है, उसमें यह साफ दिख रहा है कि भाजपा और आजसू के बीच कम से कम आधा दर्जन सीटों को लेकर विवाद पैदा होगा। इनमें पहली सीट है इचागढ़, जहां आजसू पार्टी मजबूत स्थिति में है। 2019 के चुनाव में यहां भाजपा और आजसू अलग-अलग लड़े थे। यहां से झामुमो की सविता महतो जीती थीं। उस चुनाव में भाजपा को 38 हजार 475 वोट मिले थे, जबकि आजसू को 38 हजार 831 वोट मिले थे। आजसू ने इस बार यहां से हरेलाल महतो को उम्मीदवार घोषित कर दिया है, तो भाजपा ने इस पर आपत्ति की है। भाजपा का कहना है कि अभी सीट शेयरिंग को अंतिम रूप नहीं दिया गया है, तो फिर प्रत्याशी की एकतरफा घोषणा करना उचित नहीं है। इस सूची में दूसरा नाम है डुमरी का, जहां से पिछली बार दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था और झामुमो के जगरनाथ महतो ने जीत हासिल कर ली थी। उस चुनाव में भाजपा को 36 हजार 13 और आजसू को 36 हजार 840 वोट मिले थे। इस सीट पर भी इस बार आजसू अपना दावा करना चाहेगी। तीसरी सीट है बड़कागांव की, जहां से कांग्रेस की अंबा प्रसाद ने जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा और आजसू ने अलग-अलग प्रत्याशी उतारे थे। उस चुनाव में भाजपा को 31 हजार 761 और आजसू को 67 हजार 348 वोट मिले थे। इन तीन सीटों के अलावा लोहरदगा, टुंडी और चंदनक्यारी ऐसी सीटें हैं, जहां आजसू ने दावेदारी करने का मन बनाया है। 2019 में लोहरदगा से कांग्रेस के डॉ रामेश्वर उरांव और टुंडी से झामुमो के मथुरा महतो जीते थे, क्योंकि भाजपा और आजसू ने अलग-अलग प्रत्याशी उतारे थे। इसके बाद तमाड़, चंदनक्यारी और गांडेय ऐसी सीटें हैं, जहां से आजसू अपना दावा शायद ही छोड़े। आजसू पार्टी लोहरदगा और चंदनक्यारी को अपना पारंपरिक गढ़ मानती है। भाजपा इसे लेकर असमंजस में है, क्योंकि चंदनक्यारी का प्रतिनिधित्व वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी कर रहे हैं और लोहरदगा में पूर्व सांसद सुदर्शन भगत को चुनाव लड़ाने की बात चल रही है।
जदयू की इंट्री ने बढ़ायी टेंशन
भाजपा को पहले आजसू के साथ सीटों का पेंच सुलझाना है, लेकिन इसी बीच जदयू ने एलान कर दिया है कि वह झारखंड विधानसभा का चुनाव एनडीए फोल्डर में ही रह कर लड़ेगा। इससे भाजपा की टेंशन बढ़ गयी है। यदि जदयू को सीटें देनी पड़ीं, तो किसके हिस्से की सीटें दी जायेंगी, इस पर मंथन चल रहा है। इससे एक बात के आसार बढ़ गये हैं कि अपने सहयोगी दलों को संतुष्ट करना भाजपा के लिए चुनौती होगी।
भाजपा के दो दिग्गज सुलझायेंगे पेंच
भाजपा ने झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए दो प्रभारियों की नियुक्ति की है। इनमें शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा शामिल हैं। इन दोनों को सत्ता और संगठन की बारीकियां बखूबी आती हैं। इनके अलावा यूपी के दिग्गज नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी पहले से ही झारखंड के प्रभारी हैं। भाजपा के पास समझदारों की फौज तो है, लेकिन झारखंड में उनकी उस तरह की कोई पहचान नहीं है। ये तीनों नेता सीट शेयरिंग का पेंच सुलझाने के लिए सक्रिय तो हैं, लेकिन उन्हें कितनी सफलता मिलती है, यह देखनेवाली बात होगी।
क्या हुआ था 2019 में
2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-आजसू का गठबंधन टूट गया था। ऐसी 13 सीटें थीं, जहां एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होने के कारण इन दोनों पार्टियों को हार झेलनी पड़ी। ऐसी सीटों में डुमरी, जुगसलाई, ईचागढ़, लोहरदगा, नाला, जामा, रामगढ़, बड़कागांव, खिजरी, चक्रधरपुर, गांडेय, मधुपुर, घाटशिला, सरायकेला, मांडर, तमाड़, जरमुंडी, मनोहरपुर और सिमडेगा शामिल हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन में आजसू को आठ सीटें मिली थीं और 2019 में भाजपा उसे 10 सीटें देने पर राजी थी, पर आजसू ने 19 सीटों की सूची भाजपा को सौंपी थी। बाद में भाजपा ने 10 सीटों के अलावा तीन पर दोस्ताना मुकाबले का प्रस्ताव दिया, पर आजसू 17 सीटें लेने पर अडिग थी। इसी तनातनी के बीच आजसू और भाजपा दोनों ने लोहरदगा, चक्रधरपुर और चंदनक्यारी सीट से अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर दिये। इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी उतार दिये। इसका खामियाजा दोनों को ही भुगतना पड़ा। भाजपा को जहां केवल 25 सीटें मिलीं, वहीं आजसू को महज दो सीटों से संतोष करना पड़ा।
भाजपा को होगा नुकसान
जानकारों की मानें, तो इस बार यदि भाजपा ने आजसू के साथ तालमेल को खतरे में डाला, तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। आजसू ने जिस ग्रासरूट स्तर पर इलाकों में काम किया है और अपना जनाधार बढ़ाया है, उसके मुकाबले भाजपा वहां कमजोर है। ऐसे में केवल प्रत्याशी उतारने से ही काम नहीं चल सकता है, यह भाजपा हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में समझ चुकी है। ऐसे में यदि आजसू के साथ सीट शेयरिंग का मसला जल्दी नहीं सुलझा, तो इसका नुकसान भाजपा को ही उठाना पड़ सकता है।