विशेष
संथाल परगना की राजनीतिक फिजां में अटकलों की बयार
सीता सोरेन के जामताड़ा से चुनाव लड़ने और लुइस मरांडी के पाला बदलने की अटकलें
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
आजाद सिपाही का ‘चुनावी रथ’ संथाल परगना में पड़ाव डाले हुए है। इस रथ में सवार टीम के सदस्य संथाल परगना की अलग-अलग विधानसभा सीटों का हालचाल जान रहे हैं। इन सीटों पर विभिन्न राजनीतिक दलों की गतिविधियां, दावेदारों की संख्या और मतदाताओं के मूड को जानने की कोशिश के दौरान एक बात साफ तौर पर नजर आ रही है कि इस बार संथाल परगना में भाजपा के लिए बड़ा संकट खड़ा होनेवाला है। प्रत्याशी चयन से लेकर अपने वोटरों को मतदान केंद्र तक ले जाने की कसरत में पार्टी को कड़ी अग्नि परीक्षा के दौर से गुजरना होगा। आज हम दुमका और जामा में टिकट के दावेदारों की चर्चा करेंगे। भाजपा के लिए इन दोनों सीटों पर प्रत्याशी का चयन बड़ा सिरदर्द साबित होनेवाला है, क्योंकि यहां से तीन बड़े चेहरे अभी से दावेदार हैं। इनमें दुमका के पूर्व सांसद सुनील सोरेन, पूर्व विधायक प्रो लुइस मरांडी और लोकसभा चुनाव में दुमका से पार्टी की प्रत्याशी रहीं सीता सोरेन शामिल हैं, जो जामा से विधायक भी थीं। इन दोनों सीटों पर भाजपा के लिए प्रत्याशी चुनना बड़ा चैलेंज इसलिए है, क्योंकि पार्टी इन तीनों में से किसी एक को भी नाराज करने की स्थिति में नहीं है। यदि इनमें से एक भी नाराज हुआ, तो इससे पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है। हालांकि संथाल परगना की राजनीतिक फिजां में अटकलों की बयार बह रही है। यहां भाजपा की सीता सोरेन और लुइस मरांडी को लेकर तरह-तरह की अटकलें हैं। राजनीतिक प्रेक्षक यह दावा कर रहे हैं कि इस बार विधानसभा चुनाव में बहुत कुछ उलटफेर देखने को मिलेगा। उनका दावा है कि सीता सोरेन किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़ना चाहती हैं और ऐसे में वह जामताड़ा से भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ जायें, तो आश्चर्य नहीं होगा। इसका कारण यह है कि सीता सोरेन का जन्म ओड़िशा में हुआ है। हाइकोर्ट के आदेश के बाद इस बात की प्रबल संभावना जतायी जा रही है कि शिबू सोरेन की छोटी बहू कल्पना सोरेन की तरह वह भी किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़ें और ऐसे में जामताड़ा सीट ही उनके लिए सुविधाजनक मानी जा रही है, क्योंकि यहां सामान्य मतदाताओं के साथ-साथ लगभग साठ हजार आदिवासी वोटर हैं।
चूंकि कांग्रेस के इरफान अंसारी यहां से प्रत्याशी होंगे, ऐसे में भाजपा सीता सोरेन को मैदान में उतार कर यहां के आदिवासी मतदाताओं को अपने पाले में करने की कोशिश कर सकती है। वहीं दुमका में लुइस मरांडी के पाला बदलने की चर्चा बहुत जोरों पर है। लुइस मरांडी यह जान चुकी हैं कि सीता सोरेन के भाजपा में रहते पार्टी उन्हें कभी लोकसभा का प्रत्याशी नहीं बनायेगी और दुमका में पूर्व सांसद सुनील सोरेन को पार्टी विधानसभा चुनाव में दुमका से उतारना चाहेगी, क्योंकि लोकसभा चुनाव में टिकट देकर पार्टी ने सुनील सोरेन से हाथ खींच लिया था और विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रत्याशी बना कर डैमेज कंट्रोल करना चाहेगी। ऐसे में लुइस मरांडी का भाजपा में राजनीतिक भविष्य फिलहाल अंधकारमय ही दिखता है, ऐसे में अटकल लगायी जा रही है कि लुइस मरांडी पाला बदल कर झामुमो में जा सकती हैं और झामुमो उन्हें जामा से चुनाव लड़ा सकता है। दुमका और जामा में बहुत दूरी भी नहीं है। वहीं एक अटकल यह भी लगायी जा रही है कि सीता सोरेन जामा से अपनी बड़ी बेटी जयश्री को विधानसभा चुनाव लड़ाना चाहती हैं। लेकिन यहां हम स्पष्ट कर दें कि अभी तक पार्टी की तरफ से इस तरह का कोई संकेत नहीं मिला है, अभी तक सिर्फ अटकलें ही हैं। हां इतना जरूर है कि भाजपा और झामुमो के नेता अभी से उम्मीदवारों के चयन को लेकर माथापच्ची कर रहे हैं। दोनों ही दल एक दूसरे में सेंधमारी की फिराक में भी हैं। क्या है दुमका और जामा सीटों पर भाजपा के टिकट के दावेदारों के बीच का समीकरण और उनकी संभावित रणनीति, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में विधानसभा चुनाव एनडीए और इंडी गठबंधन दोनों के लिए काफी अहम माना जा रहा है। एक तरफ इंडी गठबंधन दोबारा सत्ता में बने रहने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहा है, तो दूसरी ओर पांच वर्षों तक सत्ता से दूर रहने के बाद एनडीए गठबंधन सत्ता पाने के लिए बेताब दिख रहा है। चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियां तेज कर चुके हैं। भाजपा ने इस चुनाव को जीतने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया है। कुछ दिन पूर्व ही पार्टी के चाणक्य कहे जानेवाले अमित शाह ने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर जीत का मंत्र दिया है।
संथाल परगना में क्या हुआ था 2019 में
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर संथाल परगना के इलाके में राजनीतिक माहौल गरम है। इस पूरे प्रमंडल में विधानसभा की 18 सीटें हैं, जिन पर सभी दलों का फोकस है। 2019 के विधानसभा चुनाव में इनमें से नौ सीटों पर झामुमो और चार-चार सीटों पर भाजपा और कांग्रेस, जबकि एक सीट पर झाविमो का प्रत्याशी जीता था। झाविमो का बाद में भाजपा में विलय हो गया, तो उसके टिकट पर जीते हुए प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गये। इन पांच सालों में संथाल परगना की दो सीटों, दुमका और मधुपुर में उप चुनाव भी हुआ, लेकिन कहीं भी उलटफेर नहीं हुआ। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में संथाल परगना की तीन में से दो सीटों पर झामुमो ने जीत हासिल की, जबकि केवल गोड्डा सीट ही भाजपा जीत सकी। इस तरह साफ हो जाता है कि संथाल परगना में 2024 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए कितना महत्वपूर्ण है और पार्टी इसको समझ भी चुकी है।
भाजपा में जारी है अंतर्कलह
संथाल परगना में भाजपा में जारी अंतर्कलह जगजाहिर है। पार्टी के ही लोगों का मानना है कि दो-दो चुनाव हारने के बाद किसी नये चेहरे को मौका मिलना चाहिए, लेकिन नया कौन हो, इस सवाल के जवाब में आधा दर्जन नेताओं के नाम सामने आ जाते हैं। इस स्थिति में टिकट तो किसी एक को ही मिलेगा और टिकट की चाहत रखनेवाले शेष लोग प्रत्याशी को जिताने के लिए कितनी इमानदारी से मेहनत करेंगे, यह तो दुमका में लोकसभा चुनाव में देखने को मिल ही गया।
दुमका और जामा विधानसभा सीट का माहौल
झारखंड की उप राजधानी दुमका संथाल परगना की सियासत का केंद्र है। दुमका विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला काफी दिलचस्प होने के आसार हैं। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट पर फिलहाल झामुमो का कब्जा है। 2019 में यहां से हेमंत सोरेन जीते थे, जिन्होंने बाद में यह सीट छोड़ दी थी और वर्ष 2020 में हुए उपचुनाव में उनके छोटे भाई बसंत सोरेन ने जीत हासिल की थी। यहां करीब ढाई लाख मतदाता हैं। इसी तरह जामा विधानसभा सीट भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह सीट दुमका संसदीय क्षेत्र के तहत आती है। 2019 में यहां से झामुमो की सीता सोरेन ने जीत हासिल की थी, जो झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बड़ी बहू हैं। पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वह भाजपा में चली गयीं और लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। इसलिए फिलहाल जामा सीट खाली है। जामा झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के दिवंगत पुत्र दुर्गा सोरेन का गढ़ माना जाता है। 2019 में सीता सोरेन ने भारतीय जनता पार्टी के सुरेश मुर्मू को 2426 वोटों के अंतर से हराया था।
दोनों सीटों पर भाजपा के टिकट के कई दावेदार
दुमका और जामा सीट पर संभावित प्रत्याशियों की बात करें, तो इस बार भाजपा की तरफ से कई दावेदार हैं, जबकि झामुमो के सामने अपेक्षाकृत चुनौती छोटी है। जहां तक दुमका सीट की बात है, तो झामुमो की तरफ से बसंत सोरेन का एक बार फिर यहां से उतरना तय माना जा रहा है। वैसे चर्चा यह भी है कि बसंत सोरेन शिकारीपाड़ा से भी चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन शिकारीपाड़ा से नलिन सोरेन के पुत्र भी तैयारी कर रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा के सामने समस्या यह है कि यहां से उसके टिकट के दो दावेदार हैं। इनमें एक हैं सुनील सोरेन, जो यहां से पूर्व सांसद हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट कर सीता सोरेन को उतारा गया था। सुनील सोरेन को विधानसभा चुनाव में मौका दिये जाने का आश्वासन दिया गया था। इसलिए उनकी यहां से दावेदारी मजबूत है। दूसरी दावेदार प्रो लुइस मरांडी हैं, जिन्होंने 2014 में दुमका से हेमंत सोरेन को शिकस्त दी थी, लेकिन बाद में 2019 में और फिर 2020 के उपचुनाव में हार गयीं। वह दुमका में भाजपा की कद्दावर नेताओं में शुमार की जाती हैं। लेकिन लुइस मरांडी को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं।
लुइस मरांडी के पाला बदलने की अटकलें
बताया जाता है कि यदि लुइस मरांडी को दुमका से टिकट नहीं मिला, तो वह दूसरा ठिकाना भी तलाश सकती हैं। कुछ लोगों ने तो यहां तक दावा किया कि लुइस मरांडी झामुमो नेताओं से संपर्क में हैं और विधानसभा चुनाव में अगर झामुमो उन्हें जामा से प्रत्याशी बना दे, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। लुइस मरांडी को अपने पाले में कर झामुमो सीता सोरेन के भाजपा में जाने का जवाब देना चाहता है। लुइस मरांडी के झामुमो में आ जाने से उसे जामा में एक मजबूत प्रत्याशी मिल जायेगा और दूसरा वह यह मैसेज देने में भी सफल होगा कि भाजपा नेताओं में भगदड़ की स्थिति है।
सीता सोरेन के जामताड़ा से चुनाव लड़ने की चर्चा
इसी तरह जामा सीट पर भी प्रत्याशी चयन भाजपा के लिए बड़ा चैलेंज है। सीता सोरेन यहां से तीन बार की विधायक हैं और वह अब भाजपा में आ चुकी हैं। लेकिन जामा सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है। हाइकोर्ट के आदेश के अनुसार किसी दूसरे राज्य के आदिवासी को झारखंड में आदिवासी के आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है। चूंकि सीता सोरेन ओड़िशा की हैं, इसलिए यह कयास लगाया जा रहा है कि शिबू सोरेन की छोटी बहू कल्पना सोरेन की तरह बड़ी बहू सीता सोरेन भी संथाल से किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़ने की जुगत में हैं। भाजपा के ही कुछ नेताओं ने आजाद सिपाही की टीम को जामताड़ा के सनमून होटल में बातचीत के दौरान बताया कि सीता सोरेन को जामताड़ा से चुनाव लड़ाने के लिए भाजपा सोच रही है। अभी फाइनल नहीं हुआ है, लेकिन प्रबल संभावना है कि ऐसा हो। इसके पीछे उनका तर्क था कि मुसलिम बहुल जामताड़ा में भाजपा की दाल तब तक नहीं गलेगी, जब तक वह यहां लगभग साठ हजार आदिवासी वोटों में सेंधमारी नहीं करे। पिछले चुनाव में वीरेंद्र मंडल को यहां से भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा था। उनकी छवि जामताड़ा में काफी खराब हो गयी है और भाजपा के कार्यकर्ता ही उनका विरोध कर रहे हैं। जामताड़ा के भाजपा नेताओं का कहना है कि अगर सीता सोरेन जामताड़ा से चुनाव लड़ती हैं और वह आदिवासी वोटों में से बीस हजार वोट की भी सेंधमारी कर लेती हैं, तो वह इरफान अंसारी को टक्कर दे सकती हैं। इरफान अंसारी जामताड़ा में मजबूत हैं। मुसलिम मतदाताओं को उन्होंने पूरी तरह अपने पाले में कर लिया है और अब आदिवासी मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए वह कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
जामताड़ा में राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने आजाद सिपाही टीम को बताया कि इरफान अंसारी जब भी जामताड़ा आते हैं, वह आदिवासी इलाकों में जरूर जाते हैं। उनकी एक खासियत है। वह पांच-दस रुपये का सिक्का अपने पास रखते हैं और आदिवासी इलाकों में खेल रहे बच्चों को चॉकलेट खाने के लिए वह उन्हें दे देते हैं। यही नहीं, हर पर्व और त्योहार के अवसर पर वह गरीब आदिवासी परिवारों को साड़ी और यहां तक कि चप्पल भी खरीद देते हैं। वह काफी संख्या में साड़ी बांटते हैं। दूसरी तरफ सीता सोरेन के बारे में कहा जा रहा है कि वह पास की सामान्य सीट जामताड़ा से टिकट पाने की जुगत में लग गयी हैं, जबकि जामा सीट से वह अपनी बड़ी बेटी जयश्री सोरेन को भाजपा का टिकट दिलाना चाहती हैं। भाजपा के सामने मुसीबत यह है कि एक ही परिवार के दो सदस्यों को टिकट देकर वह परिवारवाद के आरोपों में घिरना नहीं चाहती है। इतना ही नहीं, ऐसा करने से भाजपा के पुराने कार्यकर्ता भी नाराज हो जायेंगे। वैसे में भाजपा पिछली बार के प्रत्याशी सुरेश मुर्मू पर ही जामा में दांव खेलना चाहेगी, जिन्हें तत्कालीन झामुमो प्रत्याशी सीता सोरेन ने मुश्किल से ढाई हजारा वोटों से हराया था।
इस तरह इन दोनों विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी चयन भाजपा के लिए बड़ा चैलेंज साबित होनेवाला है। इस पहेली को कैसे सुलझाया जाये, इस पर पार्टी के नेता लगातार मंथन कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई रास्ता निकल नहीं सका है। पार्टी की इसी दुविधा के कारण इन दोनों क्षेत्रों में भाजपा की गतिविधियां लगभग ठहरी हुई नजर आ रही हैं।