विशेष
इस अंचल की 62 विधानसभा सीटें ही तय करेंगी बिहार का सिकंदर
महागठबंधन के मजबूत गढ़ में एनडीए भी जम कर बहा रहा है पसीना
चिराग-मांझी-कुशवाहा पर बड़ा दांव खेलने की एनडीए की है तैयारी
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार में आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी समीकरणों को अपने पक्ष में करने की होड़ मची है। ऐसे में यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि बिहार के किस अंचल में किस तरह की सियासी हवा बह रही है। बिहार का एक महत्वपूर्ण अंचल है मगध-शाहाबाद, जो सियासी रूप से बेहद संवेदनशील और प्रभावशाली है। इस अंचल में विधानसभा की 62 सीटें हैं और इसे महागठबंधन, खास कर राजद का गढ़ माना जाता है। लेकिन इस बार स्थिति एकदम बदल चुकी है। इस अंचल में एनडीए की तरफ से भी जम कर पसीना बहाया जा रहा है और चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की तिकड़ी के जरिये वह इस गढ़ को ध्वस्त करने की तैयारी में है। 2020 के चुनाव में एनडीए को इस अंचल में भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिससे एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला बेहद करीबी हो गया था। एनडीए के लिए शाहबाद से लेकर मगध और औरंगाबाद से लेकर बक्सर तक की सीटें जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि इन इलाकों में महागठबंधन मजबूत है। लेकिन एक बात तय है कि जिस गठबंधन में एकजुटता रहेगी और टिकट का बंटवारा सही तरीके से होगा, उसे इसका फायदा मिलेगा। वहीं जिस गठबंधन में दूरियां बढ़ेंगी, उसे झटका लग सकता है, क्योंकि इस इलाके की विधानसभा सीटें किसी भी गठबंधन की हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। क्या है मगध-शाहाबाद अंचल का सियासी समीकरण और क्या है तैयारी, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी चरम पर है और इस बार मगध और शाहाबाद क्षेत्र की 62 सीटें सियासी रणक्षेत्र का केंद्र बन गयी हैं। बिहार की राजनीति में मगध, शाहाबाद, बक्सर, औरंगाबाद, गया और जहानाबाद के इलाके में पड़ने वाली कुल 62 विधानसभा सीटों पर इस बार की लड़ाई बेहद महत्वपूर्ण हो गयी हैं। ये वो क्षेत्र है, जहां 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए केवल तीन सीटें ही जीत पाया था, जो कि एक बड़ी हार थी। लेकिन इस बार एनडीए ने इस इलाके को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है और इन सीटों पर अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है।

एनडीए के लिए बड़ा चैलेंज
बक्सर, औरंगाबाद, गया, जहानाबाद, रोहतास, और कैमूर जैसे जिलों में फैली ये सीटें नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को इस क्षेत्र में करारी हार का सामना करना पड़ा था, जहां 62 में से महज तीन सीटें ही उसके खाते में आयी थीं। इस बार बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने इन सीटों को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है, ताकि 2020 की शर्मनाक हार का दाग धोया जा सके।

कैसा है जातीय समीकरण
मगध और शाहाबाद क्षेत्र में दलित, कुशवाहा, यादव, और अति पिछड़ा वर्ग के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2020 में राजद-कांग्रेस-वामदल गठबंधन ने इन वर्गों के समर्थन से इस क्षेत्र में दबदबा बनाया था। खासकर भाकपा-माले ने दलित मतदाताओं को लामबंद कर कई सीटों पर कब्जा जमाया। वहीं, चिराग पासवान की तत्कालीन अलगाववादी रणनीति ने जेडीयू को भारी नुकसान पहुंचाया, जिसके चलते एनडीए का प्रदर्शन शाहाबाद में विशेष रूप से खराब रहा। इस बार चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए का हिस्सा है और उनकी मौजूदगी से गठबंधन को दलित मतों में सेंधमारी की उम्मीद है।

चिराग, कुशवाहा और मांझी की तिकड़ी पर दांव
इस बार एनडीए ने इन 62 सीटों पर अपनी रणनीति को धार देने के लिए तीन बड़े नेताओं को मैदान में उतारा है: चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी। इन तीनों नेताओं ने अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में सक्रियता काफी बढ़ा दी है। चिराग पासवान (लोजपा-रामविलास) दलित (खासकर पासवान) मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाने में लगे हैं, जबकि उपेंद्र कुशवाहा (रालोमो) कोइरी/कुर्मी समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। वहीं जीतन राम मांझी (हम) भी महादलित वर्ग के वोटों को एनडीए के पाले में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।

सीट शेयरिंग में सामाजिक समीकरण
एनडीए ने इस क्षेत्र के लिए खास रणनीति बनायी है। जेडीयू और बीजेपी ने सीट बंटवारे में मगध-शाहाबाद की सीटों पर सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखा है। जेडीयू 102-103 और बीजेपी 101-102 सीटों पर लड़ेगी, जबकि चिराग की पार्टी को 25-28 और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को छह-सात सीटें मिलने की संभावना है। मांझी का प्रभाव गया और औरंगाबाद जैसे जिलों में मुसहर समुदाय के बीच है, जो एनडीए के लिए फायदेमंद हो सकता है। साथ ही बीजेपी कुशवाहा और क्षत्रिय मतदाताओं को साधने के लिए स्थानीय नेताओं पर दांव लगा रही है।

महागठबंधन की भी खास है तैयारी
दूसरी ओर महागठबंधन भी इस क्षेत्र में अपनी पकड़ ढीली नहीं छोड़ना चाहता है। राजद और भाकपा-माले ने यादव और दलित वोटों को एकजुट करने की रणनीति बनायी है, जबकि कांग्रेस कुशवाहा मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में है। हालांकि महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर तनातनी की खबरें हैं, खासकर भाकपा-माले की 40 सीटों की मांग ने राजद को असमंजस में डाल दिया है। माले का इस क्षेत्र के ग्रामीण और गरीब तबके में मजबूत आधार है, खासकर जहानाबाद, अरवल और औरंगाबाद के कुछ हिस्सों में। राजद का पारंपरिक मुस्लिम-यादव समीकरण इस क्षेत्र में भी निर्णायक भूमिका निभायेगा, जबकि कांग्रेस राहुल गांधी के चेहरे और अपने पारंपरिक वोट बैंक के सहारे वापसी की उम्मीद कर रही है।

निर्णायक होंगी जातियां: कौन पड़ेगा किस पर भारी
इन 62 सीटों पर जातिगत समीकरण ही जीत-हार का फैसला करेंगे। यहां कुछ प्रमुख जातियां और उनका संभावित प्रभाव भी परिणाम तय करेगा। इस इलाके में यादव और मुस्लिम राजद का पारंपरिक वोट बैंक है और इस क्षेत्र में इनकी अच्छी खासी आबादी है। महागठबंधन की जीत में इनका एकजुट होना बेहद महत्वपूर्ण होगा। इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा कोइरी/कुर्मी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। इनकी संख्या भी इन क्षेत्रों में काफी है और ये एनडीए के लिए महत्वपूर्ण वोट बैंक साबित हो सकते हैं। इसके बाद दलित आते हैं। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी दलित वोटों के लिए अलग-अलग दावेदार हैं। दलित वोटों का बंटवारा या किसी एक तरफ झुकाव चुनाव परिणाम पर सीधा असर डालेगा। भूमिहार और राजपूत जैसी सवर्ण जातियां पारंपरिक रूप से एनडीए के साथ खड़ी रहती हैं। इनकी एकजुटता एनडीए के लिए अहम होगी। ब्राह्मण और अन्य सवर्ण जातियों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन इनका रुझान भी एनडीए के पक्ष में ही रहने की संभावना है। इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग है, जिसमें विभिन्न छोटी-छोटी जातियां शामिल होती हैं। ये वोट बैंक एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण हैं और इन्हें लुभाने के लिए दोनों ही गठबंधन भरसक प्रयास करेंगे।

किसी का भी रास्ता आसान नहीं
वास्तव में महागठबंधन और एनडीए के लिए शाहाबाद से लेकर मगध और औरंगाबाद से लेकर बक्सर तक की सीटें जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि इन इलाकों में अब भी संभावनाएं बहुत हैं। पिछली बार विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान के अलग-अलग लड़ने के कारण वोटों का बंटवारा हुआ, जिसका बड़ा फायदा महागठबंधन को मिला था। लेकिन इस बार परिस्थितियां बदल गयी हैं और चिराग और कुशवाहा एनडीए के साथ आ गये हैं। हालांकि राजद का दावा है कि इस बार भी महागठबंधन को ही सफलता मिलेगी, क्योंकि जनता तेजस्वी यादव के 17 महीने के कार्यकाल को देख चुकी है और युवाओं को भी तेजस्वी के वादों पर भरोसा है।

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