रांची। नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने फिर राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को बदहाल बताया है। उनके मुताबिक, एंबुलेंस के बदले खाट पर ही मरीजों को अस्पताल तक लाया जाना बताता है कि खाट पर ही स्वास्थ्य सेवाएं भी हैं। चाहे साहिबगंज हो या चतरा या दूसरे जिले, कमोबेश ऐसी स्थिति हर जगह दिख रही है। इस स्थिति में कहा जाये कि स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ना सिर्फ सरकार पर बल्कि जनता के लिए भी बोझ हैं। बाबूलाल ने साहिबगंज के एक वीडियो को शेयर किया है। इसमें एक पेशेंट को कुछ लोग खटिया पर लादकर अस्पताल लाते दिखते हैं। उनके मुताबिक, साहिबगंज की हृदयविदारक घटना ने एक बार फिर झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है। बीमार किशोरी को खाट पर लादकर अस्पताल ले जाना पड़ा और मौत के बाद भी शव ले जाने के लिए एंबुलेंस तक नहीं मिली। परिजन शव को खाट पर रखकर 10 किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हुए। स्वास्थ्य मंत्री ने एंबुलेंस संचालन की जिम्मेदारी अपने करीबी को सौंप दी है। सरकारी अस्पताल के कामकाज में उनका अबोध बेटा भी हस्तक्षेप कर रहा है। ऐसे निकम्मे मंत्री न सिर्फ सरकार पर, बल्कि जनता पर भी बोझ बन चुके हैं।

उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से आग्रह करते हुए कहा है कि स्वास्थ्य विभाग और एंबुलेंस सेवाओं की तत्काल समीक्षा करें और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सख्त और प्रभावी दिशा-निर्देश जारी करें, ताकि जनता को बुनियादी सुविधाओं के लिए परेशानी न झेलनी पड़े। इससे पूर्व कुछ ही दिन पहले चतरा जिले के प्रतापपुर का फोटो शेयर करते सवाल किया था कि आखिर सरकार की संवेदना कहां मर गयी है? फोटो शेयर करते कहा कि चतरा जिÞले के प्रतापपुर में सड़क और पुल की कमी के कारण एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकी। परिजनों ने 108 ममता वाहन को बुलाया, लेकिन एंबुलेंस न पहुंच पाने के कारण महिला को सड़क पर ही बच्चा जन्म देना पड़ा। एक तरफ राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मरीजों को आॅटो में ठूंसने पर मजबूर कर रहे हैं और उनका बेटा अस्पताल के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहा है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री दिल्ली में बैठकर रिम्स-2 के नाम पर आदिवासियों की जमीन हड़पने की साजिश रच रहे हैं। इरफान अंसारी जैसे परिवारवादी नेताओं ने बचपन से ही हर सुख-सुविधा पायी है, इसलिए इन्हें गरीब, दलित और आदिवासी जनता का दर्द नजर नहीं आता।

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