विशेष
17 देशों की संसदों को संबोधित कर बनाया एक अनोखा रिकॉर्ड
27 देशों ने सर्वोच्च सम्मान देकर मोदी की कूटनीति की सराहना की
इससे साबित होता है कि वैश्विक मंच पर मोदी का जादू बरकरार है
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
11 साल पहले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, यानी भारत के शासन की कमान संभालनेवाले नरेंद्र दामोदर दास मोदी न केवल अपने देश में, बल्कि पूरी दुनिया में अपने व्यक्तित्व का जादू बिखेर रहे हैं। भारत आज कूटनीतिक मोर्चे पर बेहद मजबूत स्थिति में पहुंच गया है, तो इसका श्रेय पीएम मोदी के जादुई व्यक्तित्व को जाता है। वैश्विक मंच पर भारत की आवाज यदि गंभीरता से सुनी जाती है, तो यह पीएम मोदी के संबोधन में भारतीयता के संकल्प और लोकतांत्रिक मूल्यों पर उसके अटूट विश्वास का परिणाम है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुनने के लिए पूरी दुनिया बेकरार रहती है। चाहे लोकतंत्र हो या राजतंत्र, हर देश पीएम मोदी को अपने यहां की संसद को संबोधित करने के लिए आमंत्रित कर रहा है और इस मोर्चे पर भारतीय प्रधानमंत्री ने एक अनोखा रिकॉर्ड कायम कर दिया है। उन्होंने अब तक 17 देशों की संसदों को संबोधित कर अपने सभी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों को पीछे छोड़ दिया है। इतना ही नहीं, 27 देशों ने अपना सर्वोच्च नागरिक अलंकरण देकर साबित कर दिया है कि प्रधानमंत्री मोदी आज भी दुनिया के सबसे अधिक लोकप्रिय राजनेता हैं। पीएम मोदी की यह उपलब्धि वैश्विक मंच पर भारत के दबदबे की गवाही देता है। क्या है पीएम मोदी की इस उपलब्धि के मायने और क्या है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और वैश्विक नेतृत्व के क्षेत्र में भारत को एक नयी ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। जहां एक ओर उन्होंने अब तक 17 देशों की संसदों को संबोधित कर भारत की आवाज को विश्व मंच पर मुखर किया है, वहीं दूसरी ओर 27 देशों से प्राप्त सर्वोच्च नागरिक सम्मानों ने उन्हें दुनिया के सबसे सम्मानित और प्रभावशाली नेताओं में स्थान दिला दिया है। यह उपलब्धि केवल व्यक्तिगत सम्मान नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक स्थिति की उन्नति का प्रतिबिंब हैं।

भारत की रणनीतिक कूटनीति का हिस्सा हैं मोदी का संबोधन
प्रधानमंत्री मोदी का संसदों में संबोधन केवल भाषण नहीं, बल्कि रणनीतिक कूटनीति का हिस्सा है। उन्होंने विकसित और विकासशील देशों, दोनों के विधायी मंचों पर भारत की लोकतांत्रिक विरासत, आर्थिक दृष्टि और वैश्विक सहयोग की भावना को साझा किया। मोदी की ओर से अन्य देशों की संसदों में दिये गये संबोधन को याद करें, तो उन्होंने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद आॅस्ट्रेलिया, फिजी, भूटान, नेपाल की संसदों को संबोधित किया। साल 2015 में प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन, श्रीलंका, मंगोलिया, अफगानिस्तान और मॉरीशस की संसद को संबोधित किया। साल 2016 में उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। 2018 में प्रधानमंत्री ने युगांडा और 2019 में मालदीव की संसद में अपना संबोधन दिया। 2023 में प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरी बार अमेरिकी कांग्रेस में अपना संबोधन दिया और इसके साथ ही वह उन कुछ चुनिंदा वैश्विक हस्तियों में शुमार हो गये, जिन्हें दो बार अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने का गौरव हासिल हुआ है। इसके बाद प्रधानमंत्री ने 2024 में गुयाना और 2025 में घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो तथा नामीबिया की संसद को संबोधित किया। खास बात यह है कि 2025 में तीन देशों की संसदों में प्रधानमंत्री का संबोधन एक सप्ताह के भीतर हुआ है, जो कि अपने आप में एक और कीर्तिमान है। इन सभी संबोधनों में भारत ने ग्लोबल साउथ, संयुक्त राष्ट्र सुधार, आतंकवाद विरोध, जलवायु न्याय और डिजिटल समावेशन जैसे मुद्दों पर स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

प्रधानमंत्री ने बढ़ाया देश का गौरव
इसके अलावा प्रधानमंत्री को 27 देशों से मिले सर्वोच्च सम्मान भी खास हैं। उन्हें संयुक्त अरब अमीरात का ‘ऑर्डर ऑफ जायेद’, रूस का ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू’, अमेरिका का ‘लीजन ऑफ मेरिट’, फ्रांस का ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ दि लीजन ऑफ आॅनर’, सऊदी अरब का ‘किंग अब्दुल्ला साश’, बांग्लादेश का ‘लिबरेशन वार आॅनर’ समेत अफ्रीकी और कैरिबियाई देशों से राष्ट्रीय सम्मान मिले हैं। यह साबित करता है कि भारत की सॉफ्ट पावर, अर्थव्यवस्था, लोकतंत्र और रणनीतिक संतुलनकारी भूमिका को विश्व स्वीकार कर रहा है।

भारत की विदेश नीति का आधार अब ‘बहुध्रुवीय मित्रता’
साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति पारंपरिक ‘गुटनिरपेक्षता’ से आगे जाकर ‘बहुध्रुवीय मित्रता’ पर आधारित है। उन्होंने पश्चिमी शक्तियों से रिश्ते गहरे किये, लेकिन साथ ही अफ्रीका, मध्य एशिया, खाड़ी देशों और दक्षिण अमेरिका में नये रणनीतिक संबंध भी बनाये। मोदी की यह अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि भारत की उभरती शक्ति, विचारधारा और नेतृत्व क्षमता की स्वीकार्यता है। उनका हर संसद में दिया गया संबोधन, हर प्राप्त सम्मान, भारत की लोकतांत्रिक आत्मा, विकासशील दृष्टिकोण और नैतिक शक्ति का प्रतीक है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 17 देशों की संसदों को संबोधित करना और 27 देशों से सर्वोच्च सम्मान प्राप्त करना, भारतीय विदेश नीति के इतिहास में एक अभूतपूर्व अध्याय है। यह साबित करता है कि आज का भारत केवल सुनने वाला नहीं, बल्कि दुनिया को दिशा देने वाला देश बन चुका है। यह उपलब्धि भारतवासियों के आत्मविश्वास, आकांक्षाओं और अंतरराष्ट्रीय भूमिका को सशक्त करती है।

पीएम मोदी के उपहारों में झलकती है भारत की आत्मा
इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्व दौरों की चर्चा प्राय: उनकी रणनीतिक कूटनीति, वैश्विक नेतृत्व और द्विपक्षीय समझौतों के संदर्भ में होती है, किंतु इन यात्राओं में एक और विशेष पक्ष होता है, जो चुपचाप भारत की आत्मा को विश्व के सामने प्रस्तुत करता है— वह है उनके द्वारा चयनित सांस्कृतिक उपहार। अपने हर दौरे में प्रधानमंत्री मोदी जिन विशिष्ट हस्तशिल्पों, कलाकृतियों और प्रतीकों को उपहार स्वरूप ले जाते हैं, वे केवल शिष्टाचार नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध परंपरा, बहुरंगी संस्कृति और आत्मनिर्भर कलात्मकता के परिचायक होते हैं। यह सांस्कृतिक कूटनीति भारत की सॉफ्ट पावर को सशक्त करने में निर्णायक भूमिका निभा रही है। प्रधानमंत्री मोदी जिन वस्तुओं को विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को भेंट करते हैं, वे भारत के अलग-अलग राज्यों, जनजातियों, परंपराओं और शिल्प कलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रधानमंत्री मोदी के उपहार केवल भारत की कलाओं का प्रदर्शन नहीं, बल्कि संवाद का माध्यम भी हैं। प्रधानमंत्री के उपहार दिखाते हैं कि भारत केवल तकनीक और व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि हजारों वर्षों पुरानी सभ्यता का जीवंत प्रतिनिधि है। इन उपहारों के चर्चित होने से संबंधित हस्तशिल्प की मांग और मूल्य दोनों बढ़ते हैं। इसके अलावा ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ की नीतियों को सांस्कृतिक स्तर पर मजबूती मिलती है।

प्रधानमंत्री मोदी और प्रवासी भारतीय समुदाय
इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी किसी देश की यात्रा पर जाते हैं, तो उनकी पहली प्राथमिकता होती है वहां बसे भारतीय समुदाय से संवाद। ये मुलाकातें केवल भावनात्मक संबंधों का प्रदर्शन नहीं, बल्कि नागरिक जुड़ाव का शक्तिशाली प्रतीक बन चुकी हैं। प्रवासी भारतीयों द्वारा अपने सांस्कृतिक प्रदर्शन, लोककला, संगीत और पारंपरिक वेशभूषा के माध्यम से जो दृश्य निर्मित होता है, वह विश्व के सामने भारत की एकता में विविधता और सजीव परंपरा का संदेश देता है। प्रधानमंत्री मोदी जब इन समुदायों से मिलते हैं, तो वह यह स्पष्ट करते हैं कि वे भारत के गौरव के वाहक हैं, वे भारत और दुनिया के बीच सांस्कृतिक पुल हैं और वे भारत की सॉफ्ट पावर के सशक्त स्रोत हैं। प्रधानमंत्री मोदी की प्रत्येक विदेश यात्रा में भारतीय समुदाय द्वारा प्रस्तुत नृत्य, संगीत, भजन, पारंपरिक वेशभूषा में स्वागत, भाषणों में भारत माता की जयघोष, आदि केवल रस्म अदायगी नहीं होती, बल्कि ये दिखाते हैं कि भारत कहीं भी जाये, अपनी संस्कृति को जीवंत रखता है, भारत की परंपरा आधुनिकता के साथ सह-अस्तित्व में है और भारत की ‘संवेदनशीलता’ और ‘संपर्क’ की नीति भावनात्मक संबंधों पर आधारित है। प्रधानमंत्री मोदी का भारतीय समुदाय से संवाद और प्रवासी भारतीयों का उनके समक्ष अपनी संस्कृति का प्रदर्शन, एक सशक्त और गहरा वैश्विक संदेश देता है कि भारत केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि एक संस्कार, विचार और परंपरा है, जो सीमाओं से परे जाकर भी जीवित रहती है। यह ‘एक भारत, वैश्विक भारत’ की संकल्पना को मजबूत करता है और दुनिया को बताता है कि भारत एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उभर रहा है, जिसकी मूल्य आधारित कूटनीति, संस्कृति आधारित संवाद और नागरिक भागीदारी आधारित पहचान है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय विदेश नीति को पारंपरिक निष्क्रियता से निकाल कर सक्रिय, निर्णायक और बहुआयामी कूटनीति का रूप दिया है। उनकी रणनीति केवल राजनयिक संवादों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने भारत को एक निर्णायक और आत्मविश्वासी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है।

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