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    Home»Breaking News»बड़े आर्थिक सुधारक थे अटल बिहारी वाजपेयी, राजमार्ग निर्माण में रही अग्रणी भूमिका
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    बड़े आर्थिक सुधारक थे अटल बिहारी वाजपेयी, राजमार्ग निर्माण में रही अग्रणी भूमिका

    azad sipahiBy azad sipahiAugust 16, 2018Updated:August 16, 2018No Comments4 Mins Read
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    नयी दिल्ली : देश की राजनीति के ‘अजातशत्रु’ और मंझे हुये राजनीतिज्ञ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी एक बड़े आर्थिक सुधारक थे. देश में राजमार्गें का निर्माण हो या फिर विदेशों में तेल क्षेत्रों का अधिग्रहण इनमें वाजपेयी की अग्रणी भूमिका रही.
    उन्हें आर्थिक क्षेत्र के सुधारों में अग्रणी भूमिका निभाने के लिये याद किया जाएगा. देश में राजमार्ग निर्माण के जरिये विकास को गति देने के लिये स्वर्णिम चर्तुभुज परियोजना, उत्तर में श्रीनगर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी और पूर्व में सिल्चर से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक नया राजमार्ग गलियारा बनाने का काम उनके समय में शुरू हुआ. कंपनियों के कामकाज में सरकार की भूमिका कम करने तथा तथा सुनिश्चित ऊर्जा आपूर्ति के लिये विदेशों में बड़े स्तर के अधिग्रहण जैसे सुधारों को उन्होंने बखूबी आगे बढ़ाया. वाजपेयी का 93 साल की आयु में आज निधन हो गया.
    दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारक कहे जाने वाले वाजपेयी में निर्णय लेने की बेजोड़ क्षमता थी और उन्होंने विपक्षी दलों की आलोचनाओं की परवाह किये बिना पूरे जोश और ताकत के साथ सुधार एजेंडा को आगे बढ़ाया.अमेरिका की ‘नेशनल हाईवे सिस्टम’ की तर्ज पर उन्होंने 2001 में देश के चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता के बीच 4/6 लेन वाले राजमार्ग के निर्माण तथा श्रीनगर से कन्याकुमारी तथा पोरबंदर से सिलचर के बीच राजमार्ग के लिये स्वर्णिम चतुर्भुज योजना तथा उत्तर-दक्षिण एवं पूर्वी-पश्चिम गलियारा परियोजनाओं की शुरुआत की.
    इसके पीछे उनकी सरल सोच थी … विकास को गति देने के लिये सड़क का निर्माण कीजिए जैसा कि अमेरिका में हुआ. बाद की सरकारें उसी विचार पर आगे बढ़ी. लेकिन उनके कार्यकाल में सबसे बड़ा सुधार निजीकरण अभियान था. इसके तहत पांच साल में सार्वजनिक क्षेत्र की 32 कंपनियां तथा होटल निजी कंपनियों को बेचे गये.
    उनके प्रधानमंत्री रहते निजीकरण को गति देने के लिये देश में पहली बार विनिवेश विभाग तथा मंत्रिमंडल की विनिवेश मामलों की समिति बनी. इसकी शुरुआत 1999-2000 में माडर्न फूड इंडस्ट्रीज की बिक्री हिंदुस्तान यूनिलीवर के (एचयूएल) के साथ हुई. उनकी सरकार ने भारत अल्यूमीनियम कंपनी लि. (बाल्को) तथा हिंदुस्तान जिंक लि. खनन दिग्गज अनिल अग्रवाल की स्टरलाइट इंडस्ट्रीज को बेची.
    साथ आईटी कंपनी सीएमसी लि. तथा विदेश संचार निगम लि. (वीएसएनएल) टाटा को बेची गयी. खुदरा ईंधन कंपनी आईबीपी लि इंडियन ऑयल कारपोरेशन तथा इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कारपोरेशन लि. (आईपीसीएल) रिलायंस इंडस्ट्रीज लि. को बेच दी गई. इसके अलावा कोवलम अशोक बीच रिजार्ट, होटल एयरपोर्ट अशोक (कोलकाता) तथा नयी दिल्ली में तीन होटल रंजीत, कुतुब होटल तथा होटल कनिष्क का रणनीतिक विनिवेश किया गया, लेकिन निजीकरण का उनका कदम आसान नहीं था.
    उन्हें विपक्षी दलों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और बाल्को के निजीकरण को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी. न्यायालय ने सरकार के कदम को बरकरार रखा. हालांकि, वह तेल रिफाइनरी कंपनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लि. (एचपीसीएल) का निजीकरण करने में विफल रहे. इस कदम का उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों ने ही विरोध किया. वह दूर की सोच रखते थे. यह उनके कार्यकाल में विदेशों में किये गये अधिग्रहण से पता चलता है. उनकी सरकार ने 2001 में रूस के पूर्वी क्षेत्र में विशाल सखालीन-1 तेल एवं गैस फील्ड में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी 1.7 अरब डालर में खरीदने के लिये राजनयिक स्तर पर पहल की.
    यह भारत का विदेश में सबसे बड़ा निवेश था. उसके बाद सूडान में तेलफील्ड में 72 करोड़ डालर में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी गयी. जोखिम भरे देश में इतने बड़े निवेश के निर्णय की आलोचना हुई लेकिन वाजपेयी अपने निर्णय में सही साबित हुए क्योंकि सूडान परियोजना में किया गया निवेश तीन साल में ही वापस आ गया. विदेशी परियोजनाओं में निवेश के जरिये ऊर्जा सुरक्षा का उनके माडल को आगे की सरकार ने भी अपनाया और अब 20 देशों में ऐसे निवेश हुये. साथ ही दूसरे देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने में ऊर्जा कूटनीतिक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
    चीन भी इसी माडल को अपनाया है और पिछले डेढ़ दशक में अधिक परियोजनाओं में निवेश किया. वाजपेयी को गन्ने से निकले ऐथनाल के पेट्रोल में मिलाने की दिशा में उठाये गये कदम के लिये भी याद किया जाएगा. इस पहल का मकसद न केवल पेट्रोल आयात पर निर्भरता कम करना था बल्कि किसानों को आय का अतिरिक्त स्रोत भी उपलब्ध कराना था.

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