बच्ची अस्पताल में भर्ती हुई थी, प्रबंधन ने दबाव डाला-किसी को मत बताना

रांची। गोड्डा के सुंदरपहाड़ी स्थित कस्तूरबा स्कूल की छात्राओं को नक्सली बनाने की योजना। स्कूल से छात्राओं को उठाने का प्रयास। आलाधिकारियों को सूचना तक नहीं दी थानेदार ने, दहशत में छात्राएं और उनके परिजन…। इस शीर्षक से 2 अगस्त यानी बीते गुरुवार को आजाद सिपाही ने पहले पन्ने पर खबर प्रकाशित की थी। इस हेडिंग को याद दिलाने का मकसद सिर्फ यह है कि हम आपको यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि कैसे शिक्षा विभाग, स्कूल प्रबंधन, पुलिस के अधिकारी से लेकर थानेदार तक इस खबर के छपने के बाद खंडन करने पर उतारू हो गये।
यहां तक कि अखबार और रिपोर्टर पर कानूनी कार्रवाई करने की बात भी कही। झारखंड के प्रतिष्ठित अखबार दैनिक जागरण और प्रभात खबर में पुलिस-प्रशासन ने प्रमुखता से खंडन भी छपवाया। इसका पीडीएफ हम संलग्न कर रहे हैं। लेकिन हम विचलित नहीं थे, क्योंकि सांच को आंच नहीं आती। मंगलवार यानी 7 अगस्त को जब पीड़ित लड़की डीसी के यहां पहुंची और आपबीती बतायी, तो सभी को सच से सामना हुआ और आजाद सिपाही की खबर पर मुहर लग गयी। पीड़ित बच्ची ने उपायुक्त से साफ कहा कि कस्तूरबा स्कूल में काली ड्रेस में नक्सली आयी थी। उसने डीसी से जो आपबीती बतायी, लिखित आवेदन में जो लिखा, मीडिया को जो बयान दिया, वीडियो रिकार्डिंग में वे बयान आजाद सिपाही के पास सुरक्षित हैं। वह किसी भी अधिकारी के सच को झूठ साबित करने की नीयत पर से परदा उठाने को काफी हैं। अब देखना यह है कि पुलिस प्रशासन पीड़िता की बात को गंभीरता से लेता है, या उसे भी भ्रामक करार देता है। पीड़ित लड़की की लिखित शिकायत पर गोड्डा की डीसी ने जांच के आदेश दे दिये हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 7 अगस्त को भी एक बार फिर इस खबर को पुलिस की तरफ से भ्रामक बताया गया, वहीं दूसरी ओर ठीक उसी समय पीड़ित लड़की डीसी के यहां सच्चाई से पर्दा उठा रही थी। पीड़िता की पीड़ा सुन पत्रकार भी भौंचक थे। तीन अगस्त को दैनिक आजाद सिपाही की खबर का खंडन प्रकाशित करनेवाले अखबार दैनिक जागरण और प्रभात खबर ने 8 अगस्त यानी बुधवार के अंक में सच्चाई को पाठकों के सामने लाया। अखबारों ने माना है कि स्कूल में नक्सलियों ने धमक दी थी। इन दोनों अखबारों में प्रमुखता से लड़की के बयान के आधार पर खबर प्रकाशित की गयी है। दोनों अखबारों के नाम का हवाला देने के पीछे आजाद सिपाही का मकसद इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाना नहीं है, बल्कि इतना कहना है कि यह परिपाटी आखिर शुरू कैसे हो गयी। आमतौर पर पत्रकारिता में यह परिपाटी रही है कि जो अखबार खबर लिखता है और अगर वह गलत हो जाती है, तो वही अखबार उसका खंडन भी प्रकाशित करता है।
पीड़िता द्वारा सुनायी गयी आपबीती और डीसी को दिये गये पत्र में साफ कहा गया है कि काली ड्रेस में महिला आयी थी। वह मुंह पर पट्टी बांधे हुई थी और पैर में घुटने तक जूूता पहनी थी। उसकी पैंट में चारों तरफ पाकिट थे। उसके हाथ में पिस्टल थी। उसने बच्ची को पीटा और केमिकल के सहारे बेहोश किया। साथ ही स्कूल को उड़ाने की धमकी भी दी। वह नकाबपोश महिला उस बच्ची को अपने साथ ले जाना चाहती थी, लेकिन बच्ची की बेहोशी को मरा हुआ समझ गयी और वहां से निकल गयी। पीड़िता की पूरी कहानी हम आपको सिलसिलेवार ढंग से बतायेंगे, लेकिन यहां सवाल है कि आखिर वार्डेन, शिक्षा अधिकारी और पुलिस ने इस घटना को क्यों छिपाया। वहां कहीं कोई और खिचड़ी तो नहीं पक रही है, जिसके खुलासा होने से परेशानी हो सकती है। इतना ही नहीं, वार्डेन ने पीड़िता के घर तक जाकर उसे चुप कराने की कोशिश क्यों की! पीड़िता पर लांछन भी लगाया गया, लेकिन इस पीड़ित बच्ची का हौसला देखिये, वह सीना तान कर इस घटना के उद्भेदन को खड़ी हो गयी।

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