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    Home»Top Story»झारखंड की पांच सीटों पर भाजपा का विशेष फोकस
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    झारखंड की पांच सीटों पर भाजपा का विशेष फोकस

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskAugust 18, 2019No Comments12 Mins Read
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    रडार पर हैं बरही, पांकी, पोड़ैयाहाट, हुसैनाबाद और बहरागोड़ा की सीटें
    इस साल के अंत में होनेवाले झारखंड विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गयी हैं। राज्य के सभी दलों में इन चुनावों को लेकर गहमा-गहमी है। हर दल इस चुनाव को अग्निपरीक्षा मान रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा ने जहां 65 प्लस के लक्ष्य के साथ चुनाव मैदान में उतरने का संकल्प जताया है, वहीं झामुमो हर कीमत पर भाजपा को सत्ता से हटाने की तैयारी कर रहा है। लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के झटके से वह उबरने का संकेत दे रहा है, जबकि भाजपा लोकसभा चुनाव में 63 विधानसभा क्षेत्रों में मिली बढ़त से उत्साहित है। उसे पूरा भरोसा है कि 65 प्लस का लक्ष्य वह आसानी से हासिल कर लेगी।
    इसके लिए पार्टी के रणनीतिकारों ने उन सीटों की पहचान की है, जिन पर उसे फोकस करना है। पहले चरण में भाजपा ने पांच सीटों पर अपना ध्यान लगाया है। इन पांच सीटों में से दो कांग्रेस के पास, एक झामुमो के पास, एक झाविमो के पास और एक बसपा के पास है। कांग्रेस की दो सीटों में बरही और पांकी हैं, जबकि बहरागोड़ा झामुमो के पास, पोड़ैयाहाट झाविमो के पास और हुसैनाबाद बसपा के पास है। भाजपा ने इन पांच सीटों पर सबसे अधिक जोर लगाने की रणनीति तैयार की है, क्योंकि उसे लगता है कि इन पर थोड़ी मेहनत से कामयाबी हासिल हो सकती है। इतना ही नहीं, ये सीटें जीतने से विपक्ष का खेमा यादव नेताओं से खाली हो जायेगा, यानी भाजपा एक तीर से दो शिकार करना चाहती है।
    मनोज यादव पर बीजेपी की विशेष नजर
    सबसे पहले बात करते हैं बरही की। यहां से कांग्रेस के मनोज यादव विधायक हैं। लोकसभा चुनाव में उन्हें पार्टी ने चतरा से उतारा था, जहां वह बुरी तरह पराजित हुए। यहां तक कि अपने विधानसभा क्षेत्र बरही, जो हजारीबाग संसदीय क्षेत्र में आता है, से भी वह अपनी पार्टी के प्रत्याशी को बढ़त नहीं दिला सके। लोकसभा चुनाव के बाद से ही मनोज यादव खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। पार्टी की राजनीति में वह लगभग गायब हो गये हैं। लोकसभा चुनाव के बाद अपने क्षेत्र में भी उनकी लोकप्रियता तेजी से कम हुई है। लोकसभा चुनाव के बाद से ही यह चर्चा चल रही है कि वह पाला बदल सकते हैं। ऐसे में भाजपा ने उनकी सीट पर ध्यान लगाया है। मनोज यादव पर भाजपा की विशेष नजर है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि भाजपा के कद्दावर नेता भूपेंद्र यादव से मनोज यादव मिल भी चुके हैं।
    प्रदीप यादव की राजनीतिक ढलान पर
    पोड़ैयाहाट अभी झाविमो के प्रदीप यादव के कब्जे में है, जो यौन शोषण के आरोप में जेल में बंद हैं। गोड्डा से लोकसभा चुनाव लड़नेवाले प्रदीप यादव की राजनीतिक गाड़ी बड़ी तेजी से ढलान पर है, क्योंकि झाविमो में ही उनके खिलाफ एक ताकतवर खेमा तैयार हो गया है। इतना ही नहीं, उनके कई करीबी नेता या तो झाविमो छोड़ चुके हैं या इसकी तैयारी में हैं। ऐसे में वहां के एक कद्दावर नेता संजय सिंह यादव उनके मजबूत विकल्प हैं। भाजपा उन पर डोरे डाल रही है और ऐसी संभावना है कि उनका दिल पिघल जाये। पोड़ैयाहाट में प्रदीप यादव की जो स्थिति है, उसमें ऐसा नहीं लगता कि इस बार वह सीट निकाल सकेंगे। तब संजय उनके विकल्प के रूप में भाजपा के ट्रंप कार्ड हो सकते हैं। वैसे प्रदीप यादव की इच्छा है कि वह भाजपा से हाथ मिला लें, लेकिन विवाद के कारण अभी भाजपा इस पर पत्ता नहीं खोल रही है। वैसे भाजपा के निशिकांत दुबे प्रदीप यादव की राह का बड़ा रोड़ा हैं। तीसरी सीट हुसैनाबाद है, जो अभी बसपा के कुशवाहा शिवपूजन मेहता के पास है। बसपा ने उन्हें निकाल दिया है और उनके इस्तीफे का नाटक भी खूब प्रचारित हो चुका है।
    झामुमो के मजबूत स्तंभ है कुणाल षाड़ंगी
    जहां तक कुणाल षाड़ंगी की बात है, तो वह झामुमो के मजबूत स्तंभ हैं। हालांकि धारा 370 पर उनका रुख भाजपा को राहत देनेवाला रहा, इसलिए भाजपा की उम्मीद बंधी है। भाजपा का मानना है कि यदि कुणाल षाड़ंगी पाला बदलने के लिए तैयार नहीं हुए, तो उनकी मजबूत घेरेबंदी कर सीट निकाल ली जाये। जाहिर है, इन पांच सीटों पर अभी बहुत उलट-फेर होगा। इन सीटों पर भाजपा के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। पांच सीटों के अलावा तीन मजबूत यादव नेताओं का आमद कहीं से कम नहीं कही जा सकती। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा अपनी रणनीति में कितनी सफल हो पाती है।
    देवेंद्र के खिलाफ भाजपा ने बिछाया जाल
    जहां तक पांकी और बहरागोड़ा की बात है, तो देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू सिंह और कुणाल षाड़ंगी को अपने पाले में करने के लिए भाजपा ने जाल बिछा दिया है। बिट्टू सिंह को अपेक्षाकृत आसान निशाना माना भी जा सकता है, कुणाल के बारे में अभी खुल कर कुछ कहा नहीं जा सकता। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि पिछ ले राज्यसभा चुनावों में बिट्टू सिंह ने जिस तरह अंदर-अंदर गुल खिलाया है, उससे साफ लगता है कि थोड़े से प्रयास से बिट्टू सिंह को काबू में किया जा सकता है। हालांकि वहां से भाजपा के कई दावेदार हैं, लेकिन चूंकि बिट्टू सिंह सीटिंग विधायक हैं और उनके पास अपने पिता विदेश सिंह की विरासत का आधार भी है, इसलिए भाजपा उन्हें ही तरजीह देगी। लोकसभा चुनाव में बिट्टू सिंह की भूमिका से कांग्रेस भी नाराज है और उनके खिलाफ पार्टी के भीतर भी नाराजगी है। इसलिए इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वह चुनाव से ठीक पहले पाला बदल लें।

    गिरिनाथ सिंह की राह पर चल सकते है संजय यादव
    हुसैनाबाद में संजय यादव एक मजबूत नेता हैं और विधायक भी रह चुके हैं। लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह गिरिनाथ सिंह ने भाजपा का दामन थामा है, इस बात की संभावना है कि विधानसभा चुनाव से पहले संजय यादव भी उनकी राह पर चलें। हुसैनाबाद से वैसे भी भाजपा के पास कोई मजबूत दावेदार नहीं है। यहां पिछड़ों-दलितों के बाद यादवों का वोट निर्णायक होता है। इसलिए यदि कुशवाहा शिवपूजन मेहता निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं, इस वोट का विभाजन तय है। उस स्थिति में यादवों का वोट ही जीत-हार तय करेगा। इसलिए भाजपा हर हाल में संजय प्रसाद को अपने खेमे में लाना चाहती है। इस काम में अन्नपूर्णा देवी आगे बढ़ चुकी हैं।

    झारखंड विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है। भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के साथ-साथ विपक्षी दल भी अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गये हैं और अपनी चुनावी मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त कर रहे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा जहां 65 प्लस के लक्ष्य को लेकर विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है, वहीं इसके रणनीतिकार कई अन्य लक्ष्यों पर भी निशाना साध रहे हैं। अभी भाजपा का खास फोकस पांच विधानसभा सीटें हैं, जो उसके कब्जे में नहीं हैं। इन पांच सीटों को अपने कब्जे में करने के लिए भाजपा हर दांव आजमाने के लिए तैयार है। ये पांच सीटें हैं, बहरागोड़ा, बरही, पांकी, हुसैनाबाद और पोड़ैयाहाट। इन पांच सीटों पर कब्जे का उद्देश्य सीधे तौर पर विपक्ष को यादव विहीन करना भी है। इनमें से दो सीटों, बरही और पोड़ैयाहाट पर यादवों का कब्जा है, तो हुसैनाबाद में यादवों का वोट निर्णायक होता है। पांकी और बहरागोड़ा पर कब्जा जमाने से भाजपा का 65 प्लस का लक्ष्य आसान हो जायेगा। इसलिए विधानसभा के आसन्न चुनाव में इन पांच सीटों पर दिलचस्प और रोमांचक मुकाबला देखने को मिलेगा। इन पांच सीटों पर भाजपा के फोकस के कारणों और उद्देश्यों पर प्रकाश डालती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

    रडार पर हैं बरही, पांकी, पोड़ैयाहाट, हुसैनाबाद और बहरागोड़ा की सीटें
    इस साल के अंत में होनेवाले झारखंड विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गयी हैं। राज्य के सभी दलों में इन चुनावों को लेकर गहमा-गहमी है। हर दल इस चुनाव को अग्निपरीक्षा मान रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा ने जहां 65 प्लस के लक्ष्य के साथ चुनाव मैदान में उतरने का संकल्प जताया है, वहीं झामुमो हर कीमत पर भाजपा को सत्ता से हटाने की तैयारी कर रहा है। लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के झटके से वह उबरने का संकेत दे रहा है, जबकि भाजपा लोकसभा चुनाव में 63 विधानसभा क्षेत्रों में मिली बढ़त से उत्साहित है। उसे पूरा भरोसा है कि 65 प्लस का लक्ष्य वह आसानी से हासिल कर लेगी।
    इसके लिए पार्टी के रणनीतिकारों ने उन सीटों की पहचान की है, जिन पर उसे फोकस करना है। पहले चरण में भाजपा ने पांच सीटों पर अपना ध्यान लगाया है। इन पांच सीटों में से दो कांग्रेस के पास, एक झामुमो के पास, एक झाविमो के पास और एक बसपा के पास है। कांग्रेस की दो सीटों में बरही और पांकी हैं, जबकि बहरागोड़ा झामुमो के पास, पोड़ैयाहाट झाविमो के पास और हुसैनाबाद बसपा के पास है। भाजपा ने इन पांच सीटों पर सबसे अधिक जोर लगाने की रणनीति तैयार की है, क्योंकि उसे लगता है कि इन पर थोड़ी मेहनत से कामयाबी हासिल हो सकती है। इतना ही नहीं, ये सीटें जीतने से विपक्ष का खेमा यादव नेताओं से खाली हो जायेगा, यानी भाजपा एक तीर से दो शिकार करना चाहती है।
    मनोज यादव पर बीजेपी की विशेष नजर
    सबसे पहले बात करते हैं बरही की। यहां से कांग्रेस के मनोज यादव विधायक हैं। लोकसभा चुनाव में उन्हें पार्टी ने चतरा से उतारा था, जहां वह बुरी तरह पराजित हुए। यहां तक कि अपने विधानसभा क्षेत्र बरही, जो हजारीबाग संसदीय क्षेत्र में आता है, से भी वह अपनी पार्टी के प्रत्याशी को बढ़त नहीं दिला सके। लोकसभा चुनाव के बाद से ही मनोज यादव खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। पार्टी की राजनीति में वह लगभग गायब हो गये हैं। लोकसभा चुनाव के बाद अपने क्षेत्र में भी उनकी लोकप्रियता तेजी से कम हुई है। लोकसभा चुनाव के बाद से ही यह चर्चा चल रही है कि वह पाला बदल सकते हैं। ऐसे में भाजपा ने उनकी सीट पर ध्यान लगाया है। मनोज यादव पर भाजपा की विशेष नजर है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि भाजपा के कद्दावर नेता भूपेंद्र यादव से मनोज यादव मिल भी चुके हैं।
    प्रदीप यादव की राजनीतिक ढलान पर
    पोड़ैयाहाट अभी झाविमो के प्रदीप यादव के कब्जे में है, जो यौन शोषण के आरोप में जेल में बंद हैं। गोड्डा से लोकसभा चुनाव लड़नेवाले प्रदीप यादव की राजनीतिक गाड़ी बड़ी तेजी से ढलान पर है, क्योंकि झाविमो में ही उनके खिलाफ एक ताकतवर खेमा तैयार हो गया है। इतना ही नहीं, उनके कई करीबी नेता या तो झाविमो छोड़ चुके हैं या इसकी तैयारी में हैं। ऐसे में वहां के एक कद्दावर नेता संजय सिंह यादव उनके मजबूत विकल्प हैं। भाजपा उन पर डोरे डाल रही है और ऐसी संभावना है कि उनका दिल पिघल जाये। पोड़ैयाहाट में प्रदीप यादव की जो स्थिति है, उसमें ऐसा नहीं लगता कि इस बार वह सीट निकाल सकेंगे। तब संजय उनके विकल्प के रूप में भाजपा के ट्रंप कार्ड हो सकते हैं। वैसे प्रदीप यादव की इच्छा है कि वह भाजपा से हाथ मिला लें, लेकिन विवाद के कारण अभी भाजपा इस पर पत्ता नहीं खोल रही है। वैसे भाजपा के निशिकांत दुबे प्रदीप यादव की राह का बड़ा रोड़ा हैं। तीसरी सीट हुसैनाबाद है, जो अभी बसपा के कुशवाहा शिवपूजन मेहता के पास है। बसपा ने उन्हें निकाल दिया है और उनके इस्तीफे का नाटक भी खूब प्रचारित हो चुका है।
    झामुमो के मजबूत स्तंभ है कुणाल षाड़ंगी
    जहां तक कुणाल षाड़ंगी की बात है, तो वह झामुमो के मजबूत स्तंभ हैं। हालांकि धारा 370 पर उनका रुख भाजपा को राहत देनेवाला रहा, इसलिए भाजपा की उम्मीद बंधी है। भाजपा का मानना है कि यदि कुणाल षाड़ंगी पाला बदलने के लिए तैयार नहीं हुए, तो उनकी मजबूत घेरेबंदी कर सीट निकाल ली जाये। जाहिर है, इन पांच सीटों पर अभी बहुत उलट-फेर होगा। इन सीटों पर भाजपा के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। पांच सीटों के अलावा तीन मजबूत यादव नेताओं का आमद कहीं से कम नहीं कही जा सकती। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा अपनी रणनीति में कितनी सफल हो पाती है।
    देवेंद्र के खिलाफ भाजपा ने बिछाया जाल
    जहां तक पांकी और बहरागोड़ा की बात है, तो देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू सिंह और कुणाल षाड़ंगी को अपने पाले में करने के लिए भाजपा ने जाल बिछा दिया है। बिट्टू सिंह को अपेक्षाकृत आसान निशाना माना भी जा सकता है, कुणाल के बारे में अभी खुल कर कुछ कहा नहीं जा सकता। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि पिछ ले राज्यसभा चुनावों में बिट्टू सिंह ने जिस तरह अंदर-अंदर गुल खिलाया है, उससे साफ लगता है कि थोड़े से प्रयास से बिट्टू सिंह को काबू में किया जा सकता है। हालांकि वहां से भाजपा के कई दावेदार हैं, लेकिन चूंकि बिट्टू सिंह सीटिंग विधायक हैं और उनके पास अपने पिता विदेश सिंह की विरासत का आधार भी है, इसलिए भाजपा उन्हें ही तरजीह देगी। लोकसभा चुनाव में बिट्टू सिंह की भूमिका से कांग्रेस भी नाराज है और उनके खिलाफ पार्टी के भीतर भी नाराजगी है। इसलिए इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वह चुनाव से ठीक पहले पाला बदल लें।

    गिरिनाथ सिंह की राह पर चल सकते है संजय यादव
    हुसैनाबाद में संजय यादव एक मजबूत नेता हैं और विधायक भी रह चुके हैं। लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह गिरिनाथ सिंह ने भाजपा का दामन थामा है, इस बात की संभावना है कि विधानसभा चुनाव से पहले संजय यादव भी उनकी राह पर चलें। हुसैनाबाद से वैसे भी भाजपा के पास कोई मजबूत दावेदार नहीं है। यहां पिछड़ों-दलितों के बाद यादवों का वोट निर्णायक होता है। इसलिए यदि कुशवाहा शिवपूजन मेहता निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं, इस वोट का विभाजन तय है। उस स्थिति में यादवों का वोट ही जीत-हार तय करेगा। इसलिए भाजपा हर हाल में संजय प्रसाद को अपने खेमे में लाना चाहती है। इस काम में अन्नपूर्णा देवी आगे बढ़ चुकी हैं।

    BJP's special focus on five seats in Jharkhand
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