भाजपा के कुछ विधायकों की रातों की नींद और दिन का चैन गायब है। कुर्सी बचाने की चिंता और टिकट कटने का डर एक साथ उनपर हावी है। हालत यह है कि वे किसी भी तरह से उस आंतरिक सर्वे रिपोर्ट की फाइंडिंग्स जानने को बेकरार हैं, जिसे पार्टी ने अपने विधायकों का परफॉर्मेंस जानने के लिए कराया है। पर इसका कोई सूत्र उनके हाथ नहीं लग रहा है कि वे जान सकें कि उस रिपोर्ट में किन विधायकों पर तलवार लटकती नजर आ रही है। नतीजा पार्टी के तकरीबन सारे विधायक परेशान हैं कि कहीं उन पर कोई आंच तो नहीं आयेगी। चुनाव का समय करीब आने के कारण भी उनकी परेशानी बढ़ी हुई है। वजह ये है कि वो क्षेत्र में जी तोड़ मेहनत करें और आखिरी समय में उनका टिकट कट जाये, तो उनकी हालत पूर्व सांसद रामटहल चौधरी सी हो सकती है, जिसे पार्टी ने आखिरी समय में टहला दिया था और संजय सेठ को पार्टी का प्रत्याशी घोषित किया था। पार्टी प्रवक्ता कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है।
यह महज बकवास है। पर सच्चाई तो यह है कि केंद्र ने ऐसा एक आंतरिक सर्वे कराया है और इस रिपोर्ट को देखने के लिए प्रदेश स्तर पर कोई अधिकृत नहीं है। विधायकों की बेचैनी का एक बड़ा कारण यह भी है कि उन्हें इस सर्वे के संबंध मेंं साफ तौर पर कुछ भी मालूम नहीं चल पा रहा।
20 सीटिंग विधायकों का कट सकता है पत्ता
इस आंतरिक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भाजपा अपने 20 सीटिंग विधायकों को टिकट देने से वंचित कर सकती है। उनकी जगह दूसरे उम्मीदवारों को मौका दिया जा सकता है। इसकी वजह है कि एक तो एंटी इनकंबेसी फैक्टर इन विधायकों के साथ है, दूसरा क्षेत्र की जनता भी इन विधायकों के काम-काज से खुश नहीं है। सर्वे से पार्टी को जो सूचना मिली है, उसके अनुसार अगर इन्हें टिकट दिया गया, तो इनके हारने की पूरी संभावना है। जिन सीटों पर पार्टी की स्थिति कमजोर है, वहां सेकेंड लाइन चेहरा भी देखा जा रहा है। जिससे खराब फीडबैक वाले विधायक का टिकट काट कर वैकल्पिक चेहरे को चांस दिया जा सके। सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में 12 ऐसी सीटें हैं, जहां पार्टी को कड़ी टक्कर मिल सकती है। वहीं नौ सीटें सुरक्षित हैं और इन सीटों पर कोई खतरा नहीं है। भाजपा झारखंड में 65 प्लस का लक्ष्य लेकर चल रही है और इसके लिए पार्टी अपना हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। पार्टी आनेवाला विधानसभा चुनाव भी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ेगी और सीएम पद के उम्मीदवार की घोषणा से बचेगी। भाजपा के झारखंड में विधायकों का डेटाबेस पार्टी के पास है और उनकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट भी पार्टी को मिल चुकी है। सर्वे में नौ सीटों को पार्टी के लिए सुरक्षित बताया गया है, जिनमें दुमका, गोड्डा, मधुपुर, राजमहल, हजारीबाग, पूर्वी और पश्चिमी जमशेदपुर और सिसई तथा बोकारो सेफ जोन में है।
ड्राइविंग सीट पर रहेंगे रघुवर दास
आसन्न विधानसभा चुनावों पार्टी का नेतृत्व रघुवर दास करेंगे। विधानसभा चुनाव की कमान उनके हाथों में ही रहेगी। उनके स्तर से पार्टी विधायकों को सलाह, नसीहत और निर्देश भी दिया जा रहा है। पार्टी के विधायकों की पहली परीक्षा तो सदस्यता अभियान ही ले रहा है। पार्टी के सभी विधायकों को 50 हजार सदस्य बनाने हैं। इससे जनता के बीच उनकी पकड़ का अंदाजा पार्टी को मिल जायेगा। विधायकों को केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को भी जनता तक पहुंचाना है। इस काम के लिए पार्टी विधायक एड़ी-चोटी एक कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी इसकी गारंटी नहीं है कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। झारखंड में पार्टी के चुनाव सह प्रभारी नंद किशोर यादव एक प्रेसवार्ता में यह साफ कर चुके हैं कि पार्टी में किसे टिकट मिलना है और किसे नहीं, इसका फैसला पार्टी की संसदीय समिति करेगी। ऐसे में पार्टी के विधायकों का भाग्य बहुत कुछ सर्वे रिपोर्ट और पार्टी को क्षेत्र से मिले फीडबैक पर निर्भर करेगा। अपने-अपने क्षेत्र में पार्टी के विधायकों को जनता कितना चाहती है, इस रिपोर्ट से यह भी पता चल जायेगा।
अति आत्मविश्वास से बच रही पार्टी
आसन्न विधानसभा चुनावों में पार्टी अति आत्मविश्वास से बच रही है। झारखंड के दौरे पर आये पार्टी के चुनाव प्रभारी ओम प्रकाश माथुर ये साफ-साफ कह चुके हैं कि वे अपने विरोधी को कमजोर नहीं आंकते। इसके पीछे की वजह भी है। असल में लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में सत्ता गंवा चुकी है। इन तीन राज्यों में उसके कई मंत्रियों को हार मुंह देखना पड़ा था। मध्य प्रदेश में तो उसे एक दर्जन मंत्रियों की हार से नजदीकी अंतर से सत्ता से बाहर होना पड़ा था। झारखंड में ऐसे किसी रिजल्ट से पार्टी बचना चाहती है। इसके अलावा महाराष्टÑ और हरियाणा में होनेवाले चुनावों के लिए भी पार्टी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। भाजपा ने झारखंड में 65 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। 81 सीटोंवाली विधानसभा में 65 सीटों का अर्थ 80 फीसदी सीटें हासिल करना है। इसके लिए पार्टी पुरजोर मेहनत कर रही है।
संगठन को बनाया है आधार
झारखंड में सत्ता में एक बार फिर काबिज होने के लिए भाजपा ने संगठन को आधार बनाया है। पार्टी ने विधानसभा चुनावों के लिए लोकसभा और विधानसभा में जीत दर्ज कर चुके सभी प्रतिनिधियों को दस-दस मंडलों का दायित्व सौंपा है। विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री और पार्टी के बड़े नेता इन दस मंडलों में प्रवास करेंगे और संगठन को मजबूत करेंगे। प्रदेश के सारे 513 मंडलों के प्रवास के लिए झारखंड के केंद्रीय, राज्य सरकार के मंत्री तथा लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों को दायित्व सौंपा गया है। जाहिर है झारखंड में अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए पार्टी ने पूरा जोर लगाया है। 25 लाख नये सदस्य बनाने के लिए भी पार्टी ने पूरी ताकत झोंकी है। भाजपा की इस कवायद का फलाफल क्या निकलता है, यह तो वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों का रिजल्ट बतायेगा, पर इतना तो तय है कि पार्टी ने अगर अपने विधायकों का टिकट काटा तो इससे कई नेताओं की परेशानी तो निश्चित रूप से बढ़ेगी।