मटको बेड़ा से अजय शर्मा
चाईबासा पर प्रकृति खास मेहरबान है। खनिज संपदाओं से परिपूर्ण इस जिले में अशिक्षा, गरीबी और पिछड़ापन अभिशाप था। अब इन सब बेड़ियों से मुक्त होकर यहां के लोग समाज की मुख्यधारा में जुड़ने लगे हैं। इसमें सहयोग कर रहा है जिला प्रशासन और राज्य सरकार। इस जिला में पुरुषों की संख्या के बराबर ही महिलाएं भी हैं। महिलाएं अब पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना चाहतं। इसका बेहतरीन उदाहरण मटको बेड़ा गांव में दिखा। स्वयं सहायता समूह और बैंक की मदद से महिलाओं ने अपनी दुकान खोल रखी है, जिससे पूरा परिवार चल रहा है। जूता-चप्पल की दुकान चलाने वाली शीतल जारी हमें अपनी दुकान में बैठी मिली। वह काफी प्रसन्न नजर अयी। जिस जगह पर उसकी दुकान है, वहां तीन और महिलाएं अपनी दुकान चलाती हैं। शीतल कहती हंैं, क्या हुआ, किसी पर निर्भर तो नहीं है। सरकार के सहयोग से उनकी दशा बदल गयी है और अब वह परिवार पर बोझ भी नहीं हैं। सरकार एक तरफ जहां लोगों को स्वावलंबी बनाने की दिशा में काम कर रही है, वहीं, दूसरी तरफ किसानों की आमदनी दुगनी-चौगुनी हो, इसका भी प्रयास निरंतर जारी है। बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था भी जिला के बच्चों को मिले, इस दिशा में भी शानदार प्रयास किये गये हैं। पहले चाईबासा दूसरे कारणों से जाना जाता था। अब उसकी पहचान तेजी से विकासशील जिला के रूप में हो रही है। चाईबासा के दो प्रखंड झींकपानी और खूंटपानी में तो लगता ही नहीं है कि यहां हातिम और पूजन जनजाति के लोग रहते हैं। बेहतरीन सड़कें, एलइडी से जगमग गांव, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और जगह-जगह पर स्कूल यहां देखने को मिलते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी पहुंच इतनी बना ली है कि गांव के लोग भी उनको पहचानने लगे हैं। यह सब कुछ सीएम रघुवर दास के निर्देशन पर हुआ है।
ईचापुर में मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र
झींकपानी ब्लॉक के ईचापुर में मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र है। जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर इस आंगनबाड़ी केंद्र में सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस तरह के 77 आंगनवाड़ी केंद्र बनाये जाने हैं। इसकी स्वीकृति मिल गयी है। साथ चल रहे बीडीओ प्रभात रंजन चौधरी और सीडीपीओ ने यह जानकारी दी। आंगनबाड़ी में पढ़ने वाले बच्चों को सरकार की ओर से ड्रेस और किताब उपलब्ध करायी गयी है। करीब 12 सौ बच्चे पढ़ते हैं। यहां सुप्रिया खलखो और मरियम सहिया हैं। सुबह आठ से एक बजे तक पढ़ाई होती है।
महिला और पुरुष बन रहे स्वावलंबी
चिड़िया पहाड़ी गांव में तसर विकास केंद्र दिखा, जो प्रखंड मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर है। यहां कोकून का उत्पादन होता है। स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं रोजगार के लिए जुड़ी हैं। बिरसा मुंडा बागवानी केंद्र मनरेगा से संचालित है। नवागांव में जवाहर लाल हेंब्रोम ने आम्रपाली की खेती की है। सरकार के सहयोग से 132 प्लांट लगाये हैं। उनका कहना है कि जब यह तैयार होगा तो डेढ़ से दो हजार रुपये उनको मुनाफा होगा। अब इस मॉडल का उपयोग आसपास के गांव के लोग भी कर रहे हैं। कैटरी लोटा गांव भी झींकपानी में है। यहां केला की खेती होती है। चाईबासा से 16 किलोमीटर दूर है। इसकी मालकिन कहती है कि वह छह से सात हजार का केला बेचती है। आसपास के गांव में भी केला की खेती जोर-शोर से हो रही है।
भादरा में एलइडी लाइट फुट
खूंटपानी गांव में एलइडी लाइट लगायी गयी है और यह गांव चकमक हो रहा है। पांच हजार से अधिक एलइडी लाइट 23 पंचायतों में लगाये गये हैं। लगता ही नहीं है कि यह गांव का इलाका है। कभी मोमबत्ती और ढिबरी के सहारे जीवन यापन करने वाले लोग अब बिजली के उजाले में रहते हैं। ये लाइट खूंटपानी, चक्रधरपुर, मझगांव और सोनुआ में लगाये गये हैं।
गिरी गांव में मक्का की खेती
खूंटपानी में ही गिरी गांव है, जो घनघोर जंगल में है। यहां आधुनिक तरीके से मक्के की खेती की जा रही है। किसान मुकुंद मई, कागोसा गोगरी और मोसा गोगरी ने बताया कि 70 दिनों में यह तैयार हो जाता है। चाईबासा के विकास के लिए प्रशासन की ओर से सभी ताकत झोंक दी गयी है।
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