अमेरिका की पहल पर अफ़ग़ानिस्तान ने तालिबान के पाँच हज़ार लड़ाकों को रिहा कर सुलह वार्ता का रास्ता खोल दिया है। अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी ने फ़रवरी में उच्च स्तर पर बातचीत के आधार पर तालिबान के 4600 लड़ाकों को शुक्रवार को रिहा कर दिया था। लेकिन चार सौ तालिबानी लड़ाके ऐसे थे, जिन पर हत्या, हिंसा और लूटपाट के संगीन अपराध होने के कारण उन्हें तत्काल छोड़ने में असमर्थता दिखाई थी। 

गत फ़रवरी में अमेरिकी प्रतिनिधि जलमय खलीलजाद और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच अंतिम दौर की बातचीत में यह तय हुआ था कि अमेरिका अपनी सेनाएँ अफ़ग़ानिस्तान  से हटाए जाने को तैयार है। बशर्ते तालिबान हिंसा में कमी लाए और अशरफ़ गनी सरकार से वार्ता में भाग ले। इसके लिए अफ़ग़ानिस्तान सरकार और तालिबान ने अंतिम दौर की बातचीत से पहले एक दूसरे के बंदियों को रिहा किए जाने पर सहमति जताई। ट्रम्प प्रशासन की कोशिश है कि वह तीन नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले अपने सैनिकों को स्वदेश बुला ले।  

अशरफ़ गनी ने अमेरिका और तालिबान के बढ़ते दबाव को ध्यान में रखते हुए अफ़ग़ानिस्तान संसद ‘जिरगा’ की तीन दिवसीय बैठक में निर्णय के बाद रविवार की दोपहर बाद उन शेष चार सौ लड़ाकों को भी रिहा कर दिया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार देशभर के क़रीब तीन हज़ार जनप्रतिनिधि कोरोना की परवा न करते हुए काबुल में हुई ‘जिरगा’ में भाग लिया। इसके लिए एक विशाल कैंप में जिरगा की बैठक हुई। इस में कुछ सदस्यों ने इन शेष चार सौ तालिबानी लड़ाकों को रिहा किए जाने पर आपत्ति की। लेकिन तालिबान ने फ़रवरी में लिए गए फ़ैसले को अमल में लाए जाने पर ज़ोर दिया।
तालिबानी प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने अफ़ग़ानिस्तान सरकार को चेतावनी दी की अगर उनके शेष चार सौ तालिबानी बंदियों को रिहा नहीं किया गया तो वे हिंसा में तेज़ी लाएँगे और सुलह वार्ता में भाग लेने को बाध्य नहीं होंगे। क़यास लगाए जा रहे हैं कि बंदियों की रिहाई के बाद तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान सरकार एक मेज़ पर बैठने को तैयार होंगे?
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