साढ़े चार महीने से चल रही कोरोना के खिलाफ लड़ाई ने झारखंड को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसके बावजूद जनजीवन चल रहा है और कुछ योद्धाओं के कारण कोरोना के खिलाफ लड़ाई में झारखंड को अब तक यदि जीत हासिल नहीं हुई है, तो वह हार भी नहीं रहा है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि बिना किसी विश्वस्तरीय स्वास्थ्य मशीनरी के झारखंड कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ रहा है। कोरोना के खिलाफ जारी इस लड़ाई में डॉक्टर और नर्सों के साथ जिन योद्धाओं का सबसे ज्यादा योगदान है, वे हैं झारखंड के जवान, जो बगैर आराम किये, बगैर सुरक्षा उपकरणों के दिन-रात कोरोना रूपी दुश्मन से लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में 22 मार्च के बाद से अब तक डेढ़ हजार से अधिक पुलिसकर्मी कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। यह संक्रमण उन्हें आम लोगों की सुरक्षा और विभिन्न मामलों के आरोपियों को पकड़ने के क्रम में हुआ है। पुलिसकर्मियों में कोरोना का संक्रमण इसलिए बढ़ रहा है, क्योंकि इनके पास पीपीइ किट नहीं हैं। उन्हें अपनी स्वास्थ्य की सुरक्षा करने के लिए दूसरे संसाधन भी नहीं दिये गये हैं। चिकित्सा सुविधा तो दूर, पुलिसकर्मियों को बिना किसी अवकाश के लगातार ड्यूटी करनी पड़ रही है। इसका सीधा असर कहीं न कही विधि-व्यवस्था पर भी पड़ने का खतरा है, आज नहीं तो कल पुलिसकर्मियों का मनोबल भी कमजोर हो सकता है। झारखंड के पुलिसकर्मियों की तकलीफों और कोरोना संक्रमण के कारण उनके लिए पैदा हुए खतरों को रेखांकित करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
पुलिस, यानी पुरुषार्थी, लिप्सा रहित और सहयोगी। यही है झारखंड पुलिस की परिभाषा। लेकिन इस परिभाषा के उलट पुलिस के बारे में कुछ लोगों के बीच एक और किस्म की छवि उभरती है, जो खाकी वर्दीवालों को कटघरे में खड़ा करती है। इसलिए कुछ वर्दी वालों को ‘मेन इन यूनिफॉर्म’ कहा जाता है और अलग नजरिये से देखा जाता है। लेकिन कोरोना संकट और डीजीपी एमवी राव के कुशल नेतृत्व ने झारखंड पुलिस की छवि को पूरी तरह बदल दिया है और वह सबसे बड़े वारियर्स के रूप में लोगों के दिलोदिमाग में जगह बना चुकी है।। मार्च के आखिरी सप्ताह में जब कोरोना का संकट शुरू हुआ था, तब से लेकर आज तक यही एक तबका है, जो बिना किसी अवकाश और सुविधा के सड़कों पर तैनात है। बावजूद इसके प्रचंड गर्मी और मानसून की बारिशों में भी इन खाकी वर्दी वालों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।
दो दिन पहले झारखंड पुलिस मुख्यालय ने एक आंकड़ा जारी किया, जो डरानेवाला है। इसमें कहा गया है कि तीन अगस्त तक झारखंड में कुल 1616 पुलिसकर्मी कोरोना संक्रमित हो चुके थे। इनमें से 404 ठीक हो चुके हैं, जबकि 1212 अब भी इलाजरत हैं। संक्रमित पुलिसकर्मियों में एक एएसपी, 10 डीएसपी, 17 इंस्पेक्टर, 135 एसआइ, 178 एएसआइ, 176 हवलदार, 982 जवान और चालक शामिल हैं। इनके अलावा दो लिपिक, 54 चतुर्थवर्गीय कर्मचारी और 56 गृहरक्षक भी संक्रमित हैं। अब कोई भी आसानी से यह अनुमान लगा सकता है कि अब तक कोरोना संक्रमण से बचे पुलिसकर्मियों की मन:स्थिति क्या होगी।
पुलिसकर्मी किन परिस्थितियों में ड्यूटी कर रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। मूलभूत आवश्यक सुविधाएं भी उन्हें उपलब्ध नहीं हो रही हैं। पुलिस बल को बिना किसी बचाव उपकरणों के अंजान लोगों के पास जाना पड़ता है। किसी आरोपी को पकड़ते समय हमेशा संक्रमित होने का खतरा रहता है। सड़कों के किनारे, चौक-चौराहों पर या घनी बस्तियों में भी पुलिस कर्मियों को जाना पड़ता है। इतना ही नहीं, कोरोना संकट के लिए जारी गाइडलाइन का पालन कराने की जिम्मेवारी भी पुलिस की ही होती है। वाहन चेकिंग से लेकर थानों में शिकायत दर्ज कराने तक और मामले की जांच से लेकर आरोपी की गिरफ्तारी तक का काम पुलिस को करना पड़ रहा है। इसके बाद वीवीआइपी सुरक्षा अलग है। इतनी सारी जिम्मेवारियों को निभाने के क्रम में पुलिसकर्मी संक्रमित होकर बीमार पड़ रहे हैं।
25 मार्च को जब लॉकडाउन शुरू हुआ था, उस समय किसी को यह अंदाजा भी नहीं था कि यह लड़ाई इतनी लंबी खिंचनेवाली है। अब तक इस जंग के शुरू हुए साढ़े चार महीने हो चुके हैं, लेकिन एक तबका है, जो दोगुनी क्षमता से लगातार काम कर रहा है और अपना सब कुछ इस जंग को जीतने में झोंक रखा है। यह तबका है पुलिस कर्मियों का। कोरोना वायरस से सबसे पहले भिड़नेवाला पुलिसकर्मी ही होता है। लेकिन यह एक विडंबना है कि हमारा यह योद्धा, जो सबसे पहले मोर्चे पर दुश्मन के सामने आता है, उस पर ही समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। झारखंड के संदर्भ में यह बात पूरी तरह सटीक बैठती है। राज्य के पुलिसकर्मियों की वर्तमान स्थिति से इस लड़ाई का कमजोर पक्ष उजागर होता है। सबसे दुखद स्थिति यह है कि पुलिसकर्मी अपनी पीड़ा का इजहार भी नहीं कर सकते हैं। कई पुलिसकर्मियों ने निजी बातचीत में स्वीकार किया कि उन्हें बिना समुचित सुविधा के जंग के मैदान में उतार दिया गया है। उन्हें न पीपीइ किट मुहैया करायी गयी है और न ही संक्रमण से बचने का समुचित प्रशिक्षण दिया गया है। ड्यूटी खत्म होने के बाद उन्हें अपने घर लौटना होता है, जिससे उनके परिजनों को भी खतरा हो गया है।
यह स्थिति बेहद निराशाजनक है, क्योंकि इन पुलिसकर्मियों के भरोसे ही तो राज्य में कोरोना संकट के दौर में कानून-व्यवस्था बनाये रखने में सफलता मिल रही है। कल्पना कीजिये, यदि पुलिसकर्मी इसी गति से संक्रमित होते रहे, तो फिर पूरे राज्य की स्थिति क्या होगी। इसलिए अब समय आ गया है कि इनकी समस्याओं पर ध्यान दिया जाये। अब सबसे पहले इन पुलिसकर्मियों पर ध्यान देना होगा, अन्यथा स्थिति हाथ से बाहर चली जायेगी। खाकी वर्दी वाले इन योद्धाओं को अतिरिक्त चुस्त-दुरुस्त रखना होगा, ताकि आनेवाली चुनौतियों का वे पूरी ताकत से मुकाबला कर सकें। इनके बचाव के लिए आवश्यक सुरक्षा उपकरण मुहैया कराना होगा। इन्हें दूसरी मानवीय सुविधाएं भी उपलब्ध कराना जरूरी हैं। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो कोरोना के खिलाफ जंग में अब तक किये गये सारे प्रयास बेकार हो जायेंगे। समय आ गया है कि इस पर ध्यान दिया जाये, नहीं तो राज्य और समाज में दूसरी समस्या पैदा होने लगेगी, जिससे हम लड़ नहीं सकेंगे। इसलिए सबसे पहले अपने पुलिस बल को निरापद बनाना जरूरी है। बहरहाल, इन पुलिसकर्मियों की हिम्मत, जज्बे और क्षमता को सलाम।