देश भर में सबसे शानदार विधानसभा भवन होने का दावा करने वाले झारखंड के विधानसभा भवन की असलियत एक बार फिर सामने आ गयी है। बाहर से यह भवन जितना आलीशान और भव्य दिखता है, अंदर से उतना ही खोखला है। इसके उद्घाटन के अभी एक साल भी नहीं हुए हैं और इसकी सीलिंग गिरने लगी है। यह आश्चर्यजनक ही नहीं, शर्मनाक भी है कि राज्य की सबसे बड़ी पंचायत के भवन निर्माण में भी इतनी लापरवाही और गड़बड़ी हुई है। इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि गड़बड़ी सामने आने के बावजूद इमारत बनानेवाले के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। साढ़े चार सौ करोड़ रुपये से भी अधिक खर्च कर बनायी गयी यह इमारत झारखंड का गौरव नहीं बन रही है, बल्कि राज्य के माथे पर कलंक का टीका लगा रही है। पिछले साल 12 सितंबर को जब इसका उद्घाटन हुआ था, तब कहा गया था कि यह भवन झारखंड की सवा तीन करोड़ की आबादी की हसरतों का शानदार नमूना है, लेकिन पहले आग लगने और अब सीलिंग गिरने की घटनाओं ने साबित कर दिया है कि यह भवन राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों का स्मारक है। इन गड़बड़ियों की जिम्मेदारी किसकी है और उस पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है, यह सवाल आज हरेक झारखंडी की जुबान पर है। सवाल तो यह भी है कि जिस कंपनी ने इस भवन का निर्माण कराया है, वही दूसरे बड़े भवनों का भी निर्माण करा रही है। ऐसे में उन भवनों की गुणवत्ता भी संदेह के घेरे में आ गयी है। विधानसभा भवन में सीलिंग गिरने की घटना की पृष्ठभूमि में झारखंड में सरकारी भवनों के निर्माण की स्थिति और भविष्य पर नजर दौड़ाती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

घटना 1997 की है। झारखंड आंदोलन पूरे शबाब पर था और लोगों को लग रहा था कि उनका सपना जल्द ही पूरा होनेवाला है। आंदोलन के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित नेता शिबू सोरेन कुछ मीडिया कर्मियों से अनौपचारिक बातचीत कर रहे थे। उसी क्रम में उन्होंने कहा कि यदि 24 घंटे के लिए नेता, अधिकारी और आम लोग यह संकल्प लें कि हम न गलत काम करेंगे और न होने देंगे, तो झारखंड का गठन 25वें घंटे में हो जायेगा। बात हल्की-फुल्की थी, लेकिन मतलब बहुत बड़ा था। शिबू सोरेन की कही वह बात 23 साल बाद अचानक याद आ गयी, जब महज 10 महीने पहले तैयार हुए विधानसभा भवन की सीलिंग के गिरने की सूचना आयी।
साढ़े चार सौ करोड़ से भी अधिक की रकम खर्च कर तैयार हुआ झारखंड विधानसभा का यह आलीशान भवन भीतर से इतना खोखला है कि इसकी सीलिंग एक बारिश भी नहीं झेल सकी। जब सीलिंग गिरने की घटना का मुआयना करने अधिकारी पहुंचे, तो उन्हें बताया गया कि गुंबद से पानी रिस कर जिप्सम की सीलिंग तक आ गया और उसके फूलने के कारण वह ध्वस्त हो गया। किसी अधिकारी ने इमारत बनानेवाले से यह नहीं पूछा कि आखिर गुंबद से पानी रिसने का कारण क्या है। या तो गुंबद की डिजाइन में खामी है या फिर उसे बनाने में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया है। सरकारी अधिकारियों द्वारा सवाल नहीं उठाया जाना उतना ही संदेह पैदा करता है, जितना कि इस इमारत को बनाने में बरती गयी अनियमितता।
पिछले साल 12 सितंबर को जब प्रधानमंत्री ने इस आलीशान भवन का उद्घाटन किया था, तब दावा किया गया था कि देश भर के विधानसभा भवनों में यह सबसे शानदार और अनोखा है। सचमुच यह अनोखा ही है, क्योंकि हैंडओवर होने से पहले ही इसमें आग लग जाती है और अब सीलिंग ही टूट कर गिरने लगी है। इतना ही नहीं, भवन की दीवारों में दरार भी उभरने लगी है, जिसका मतलब यह है कि इमारत बनाने में गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और जैसे-तैसे इसे पूरा कर दिया गया है। इसकी कलई अब खुलने लगी है।
शिबू सोरेन की वह बात यहीं मौजूं साबित होती है। जिस राज्य में विधानसभा भवन बनाने में भी गड़बड़ी की जा सकती है और बनानेवाला बिना किसी कार्रवाई के एक के बाद एक दूसरे भवन बनाने का ठेका हासिल कर रहा हो, तो फिर उस राज्य का ईश्वर ही मालिक है।
जिस कंपनी ने झारखंड विधानसभा का नया भवन बनाया है, वही कंपनी हाइकोर्ट और सचिवालय की इमारत का निर्माण भी करा रही है। उन भवनों में गुणवत्ता का कितना ध्यान रखा जा रहा है, यह तो विशेषज्ञ ही बता सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि विधानसभा भवन बनानेवाली कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। दिसंबर में जब इस इमारत के एक हिस्से में आग लगी थी, तब भी कोई मामला दायर नहीं किया गया और पूरा का पूरा मामला दाखिल-दफ्तर हो गया। अब सीलिंग गिरने की घटना की भी लीपापोती की कोशिश की जा रही है। यह भवन बनानेवाली कंपनी के अधिकारियों के कथन से साफ हो जाता है। इन अधिकारियों ने कहा है कि इस भवन में कई जगह से पानी रिस रहा है और उसकी सूची बना ली गयी है। कंपनी उसे ठीक करायेगी। यह तर्क कितना मासूम है। इतने महत्वपूर्ण और महंगे भवन के निर्माण के समय जिन चीजों पर ध्यान नहीं दिया गया, उन पर निर्माण के बाद ध्यान दिया जायेगा। यानी अभी सीलिंग गिरने की और घटनाएं हो सकती हैं। इतना ही नहीं, भवन बनानेवाली कंपनी ने सीलिंग गिरने की घटना की जानकारी भी 24 घंटे से अधिक समय तक छिपा कर रखी। इस बारे में भी सवाल नहीं उठाया गया।
तो क्या इसका यह मतलब निकाला जाये कि विधानसभा भवन बनानेवाली कंपनी तमाम नियमों-कानूनों से ऊपर है। उससे सवाल नहीं किया जा सकता है। उस कंपनी ने जो भी बनाया है, उसकी गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती है। अब तक तो इन सारे सवालों के जवाब सकारात्मक ही रहे हैं। अब यह देखना बाकी है कि नयी सरकार में इस कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत अधिकारी जुटा पाते हैं या नहीं। यदि अब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो फिर यही समझा जायेगा कि झारखंड में इस तरह की गड़बड़ियां संस्थागत रूप ले चुकी हैं और इन्हें दूर किया जाना असंभव है।

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