कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान केंद्र सरकार में बहुत से ऐसे कर्मचारी रहे हैं, जो ट्रांसपोर्ट सुविधा बंद होने के कारण अपने कार्यालय नहीं पहुंच सके। अब उन्हें ‘मजबूरी की छुट्टियां’ समायोजित कराने के लिए खूब माथापच्ची करनी पड़ रही है। फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल पर जा रही है, मगर जैसे ही वह वेतन शाखा में पहुंचती है तो उसे कई आपत्तियां के साथ वापस लौटा दिया जाता है।

किसी की अनुपस्थिति लग गई है, तो कोई प्रार्थना पत्र देकर यह बताने में लगा है कि जब कोई वाहन ही नहीं चल रहा था तो कर्मचारी अपने कार्यालय तक कैसे आता। रेल, कृषि, परिवहन और स्वास्थ्य के अलावा कई दूसरे मंत्रालयों एवं विभागों में यही स्थिति देखने को मिल रही है। अब केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में भी कोविड-19 लॉकडाउन की छुट्टियां समायोजित करने की समस्या आने लगी है।
विभिन्न बलों ने डीओपीटी के आदेशों को ही लागू करने का निर्णय लिया है। कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने में असमर्थ रहने वाले जवानों और सिविल महकमों के कर्मियों की छुट्टियां समायोजित करने के लिए जो नियम बनाए गए हैं, उनसे किसी कर्मी को आर्थिक नुकसान नहीं होगा।
केंद्रीय सुरक्षा बलों ने अपने जवानों से कहा था कि वे जहां भी हैं, वहीं रहें
बता दें कि कोविड-19 लॉकडाउन में केवल सुरक्षा बलों के जवान ही नहीं फंसे, बल्कि अनेक सिविल महकमों के कर्मचारी भी अपने कार्यालय नहीं पहुंच सके थे। कोई पहले से छुट्टी पर था तो किसी कर्मी को सप्ताहांत के बाद कार्यालय पहुंचना था। अनेक कर्मी ऐसे भी थे, जिन्हें अप्रैल में ड्यूटी ज्वाइन करनी थी, लेकिन वे भी नहीं पहुंच सके।
उस वक्त तकरीबन सभी केंद्रीय सुरक्षा बलों ने अपने जवानों से कहा था कि वे जहां भी हैं, वहीं पर रहें। लॉकडाउन खुलने के बाद जब सरकारी कर्मियों ने ड्यूटी ज्वाइन की तो ‘मजबूरी की छुट्टियां’ समायोजित कराने की समस्या आ गई। यही स्थिति केंद्रीय सुरक्षा बलों में भी देखने को मिली।

सभी कार्यालयों में माथापच्ची होते देख डीओपीटी को आदेश जारी करना पड़ा। सिविल महकमों के लिए ये आदेश पहले ही जारी कर दिए गए थे। केंद्रीय सुरक्षा बल अब उन्हीं आदेशों को जारी कर रहे हैं। देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ, जिसकी संख्या करीब 3.25 लाख है, यहां भी डीओपीटी के आदेशों को आधार बनाकर छुट्टियां समायोजित करने की बात कही गई है। दूसरे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में भी यही आदेश जारी किए जा रहे हैं।
इन आदेशों के तहत निपटेंगे छुट्टियों के केस
किसी सरकारी कर्मी को मुख्यालय द्वारा जारी आदेशों के तहत कहीं बाहर भेजा गया था और वह तय समय पर वापस नहीं लौट सका। इसकी वजह सार्वजनिक परिवहन सेवा बंद होना रही है। संबंधित कर्मी ने टेलीफोन या ईमेल से यह सूचना अपने अधिकारियों को को दे दी थी कि वह इस वजह से मुख्यालय तक नहीं पहुंच सकता। ऐसे में कर्मी को अनुपस्थित नहीं माना जाएगा।

जिस तिथि पर कर्मी का टूर खत्म हुआ था, उसे तभी से ड्यूटी पर माना जाएगा। वे कर्मचारी जो 25 मार्च 2020 को लॉकडाउन-1 लागू होने से पहले ही छुट्टी पर थे और उनकी वापसी लॉकडाउन पीरियड में होनी थी, लेकिन वे नहीं आ सके। उनके ड्यूटी पर नहीं आने की वजह पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद होना रहा।

ऐसे कर्मियों ने अगर किसी भी माध्यम से अपने कार्यालय को यह सूचना दे दी थी कि वे इस वजह से कार्यालय आने में असमर्थ हैं, तो उन्हें ड्यूटी पर मान लिया जाएगा। यदि कोई कर्मी लॉकडाउन से पहले या उसके दौरान मेडिकल लीव पर रहा है तो उसे अपना फिटनेस सर्टिफिकेट जमा कराना होगा।

वे कर्मचारी जो वीकएंड पर अपने घर गए थे, लेकिन लॉकडाउन लागू होने के कारण कार्यालय नहीं आ पाए। इसे यूं समझा जा सकता है।मान लें कि कोई कर्मचारी 20 मार्च 2020 शुक्रवार को अपने घर गया था। 23 मार्च की सुबह उसे ड्यूटी ज्वाइन करनी थी। तब तक देश में लॉकडाउन लग गया। इसके चलते वह वापस नहीं आ सका।

यदि ऐसे कर्मियों ने अपने मुख्यालय को यह सूचना समय पर दे दी थी, तो उन्हें 23 मार्च से ड्यूटी पर मान लिया जाएगा। भले ही वे कर्मचारी लंबे समय तक अपने घर पर रहे हों। यानी लॉकडाउन खुलने तक या सरकार द्वारा उसे वापस ड्यूटी पर लाने का कोई विशेष इंतजाम करने तक उस कर्मी की अनुपस्थिति नहीं लगेगी।
दिल्ली में क्वारंटीन की अवधि 7 दिन, बाहर 14 दिन
सीआरपीएफ ने कहा है कि ड्यूटी पर वापस आने वाले कर्मियों, जिन्हें क्वारंटीन में भेजा गया था, उनके लिए दो नियम तय किए गए हैं। एक, यदि वे दिल्ली में आएं हैं तो क्वारंटीन की अवधि सात दिन गिनी जाएगी। यदि वे दिल्ली से बाहर किसी सेंटर, यूनिट या बटालियन पर ज्वाइन कर रहे हैं तो क्वारंटीन अवधि 14 दिन होगी। इसके अलावा कई ऐसे कर्मी भी होते हैं, जिनकी छुट्टियां लॉकडाउन में खत्म होने वाली थीं, लेकिन उन्होंने पहले ही ड्यूटी ज्वाइन करने की इजाजत मांगी थी।

इस तरह का आवेदन देने के पीछे कर्मी का मकसद अपनी बाकी की छुट्टियां बचाना होता है। अगर वह बीच में लौट आता है तो उसकी छुट्टियां भी कम दी जाती हैं। हालांकि ऐसे केस को केवल उच्च अधिकारी ही निपटा सकते हैं। सामान्य केस में ऐसे आवेदन मंजूर नहीं किए जाते। अगर स्थिति ऐसी हो जाए कि फलां कर्मी के बिना काम नहीं चलेगा तो ही संबंधित कर्मी को छुट्टियों के बीच वापस ड्यूटी पर बुला लिया जाता है।

 

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