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    Home»Jharkhand Top News»खतरनाक होगा अनलॉक में दी गयी छूट का बेजा इस्तेमाल
    Jharkhand Top News

    खतरनाक होगा अनलॉक में दी गयी छूट का बेजा इस्तेमाल

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskAugust 31, 2020No Comments6 Mins Read
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    साढ़े पांच महीने के लॉकडाउन के बाद अब देश चौथे चरण के अनलॉक के दरवाजे पर पहुंच गया है। सरकार की ओर से लगभग सभी गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति दे दी गयी है। केवल शिक्षण संस्थान, स्वीमिंग पूल और इसी तरह की कुछ गतिविधियों पर पाबंदी जारी रहेगी। इस रियायत का यह मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि कोरोना संक्रमण का खतरा पूरी तरह खत्म हो गया है या कम हो गया है। आज भी यह खतरा हमारे सामने पहले से कहीं अधिक विकराल रूप में मौजूद है और यदि अनलॉक में दी गयी रियायत का बेजा इस्तेमाल करने की कोशिश की गयी, तो इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। वैसे राज्यों में, जहां कोरोना से मुकाबले के लिए आवश्यक संसाधनों की हालत ठीक नहीं है, अधिक एहतियात बरतने की जरूरत है। इसलिए लोगों को जल्द से जल्द कोरोना काल में पैदा हुई नयी परिस्थितियों को आत्मसात करना जरूरी है। कोरोना ने लोगों को बहुत सी चीजें सिखायी हैं और जब तक इस बीमारी का कारगर इलाज नहीं खोजा जाता है, इस न्यू नॉर्मल को अपने जीवन में शामिल कर लेना ही सबसे अच्छा बचाव हो सकता है। कोरोना संक्रमण, लॉकडाउन और अनलॉक की पृष्ठभूमि में भविष्य का आकलन करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
    मानव सभ्यता के विकास के इतिहास पर चर्चित किताब बाइ सेपियंस- ए ब्रीफ हिस्ट्री आॅफ ह्यूमन काइंड के लेखक युवाल नोआह हरारी ने हाल ही में कोरोना पर एक लेख लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए दुनिया भर के लोग और सरकारें जो रास्ता चुनेंगी, वह आनेवाले सालों में हमारी दुनिया को बदल देगा। अपने लेख में हरारी ने इस महामारी के बाद किस तरह का समाज उभरेगा, क्या दुनिया के देशों में आपसी एकजुटता बढ़ेगी या एक-दूसरे से दूरी बढ़ेगी, अंकुश लगाने और निगरानी रखने के तौर-तरीकों से नागरिकों को बचाया जायेगा या उनका उत्पीड़न होगा, जैसे सवालों के जवाब भी दिये हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात जो उन्होंने कही है, उसके अनुसार यह संकट ऐसा है कि हमें कुछ बड़े फैसले लेने होंगे। ये फैसले भी तेजी से लेने होंगे, हालांकि हमारे पास सीमित विकल्प भी मौजूद हैं। हरारी ने कहा कि लोगों को कोरोना संकट के दौरान सीखी हुई बातों को अपने जीवन में उतारना होगा, क्योंकि अब उनके पास बहुत अधिक समय नहीं है।
    यह सही है कि कोराना के कोहराम के बीच घर पर बैठे हम सब हालात के आगे नतमस्तक हैं। हम एक बार फिर यह मानने के लिए बाध्य हो गये हैं कि समय से शक्तिशाली कुछ भी नहीं। साथ ही यह एक मौका है सोचने का, समझने का और महसूस करने का कि जीवन की इस आपाधापी में हमसे क्या छूट गया था। कुछ अपने थे, जो रूठ गये थे। कुछ रिश्ते थे, जिनमें गांठ पड़ गयी थी। सपनों और संघर्ष के बीच अपनों से जो दूरी थी, उसे पाटने का मौका कोरोना संकट में मिला है। कुछ सीखना था, कुछ बातें थीं, कुछ शौक थे, कुछ जज्बा था। कुछ जज्बात थे, जो तेज गति से गुजरती जिंदगी की गाड़ी से दिखाई नहीं दे रहे थे। बीते पांच महीनों में हमने बहुत कुछ खोया है, तो बहुत कुछ हासिल भी किया है। यदि हिसाब किया जाये, तो हम लाभ में दिखाई देंगे।
    देश भर में अनलॉक का चौथा चरण शुरू हो गया है और इसमें कुछेक को छोड़ बाकी सभी गतिविधियों को दोबारा शुरू करने की इजाजत दे दी गयी है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह इजाजत कोरोना के खत्म होने का संकेत कदापि नहीं है। कोरोना महामारी ने जो एक चीज हमें सिखायी है, उसका जिक्र हरारी ने किया है। वह है तेजी से फैसले लेने की जरूरत। हम जितनी जल्दी फैसले लेंगे, हमारे लिए वह उतना ही लाभकारी होगा। यह बात सभी को समझनी होगी। कोरोना ने हमें सोशल डिस्टेंसिंग और व्यक्तिगत स्वच्छता का जो पाठ सिखाया है, उसे हमें अपने जीवन में तत्काल उतारना होगा। कोरोना संकट से पहले हम व्यक्तिगत स्वच्छता को आवश्यकता की दूसरी या तीसरी श्रेणी में रखते थे, लेकिन अब यह ऊपर चढ़ कर पहली श्रेणी में आ गया है। सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का इस्तेमाल भी हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है और हम जितनी जल्दी इन्हें अपना लेंगे, उतना ही अच्छा होगा।
    कोरोना संकट में हमसे जो छूट गया, उस पर अब पछताने से कोई लाभ नहीं है। हम यह बात जितनी जल्दी समझ लेंगे, उतना ही सुरक्षित रह सकेंगे। हमारा सामाजिक जीवन नये अंदाज में ढल चुका है। यह नया स्वरूप तब तक जारी रहेगा, जब तक कोरोना का कारगर इलाज नहीं खोज लिया जाता है। पिछले पांच महीने में हमने जो कुछ हासिल किया, उसे आगे ले जाना बड़ी चुनौती है। भारत के उन इलाकों में, जहां स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, लोगों को जागरूक होना होगा। कोरोना संकट शुरू होने के बाद से लगातार यह बात कही जा रही है कि जब तक लोग खुद जागरूक नहीं होंगे, उन्हें स्वस्थ-तंदुरुस्त रखना संभव नहीं है। हमें यह समझना होगा कि स्वास्थ्य हमारी निजी धरोहर है और कोई भी सरकार या प्रशासन इसकी रक्षा के उपाय कर सकती है, उन उपायों को अपनाना हमें ही होगा।
    अगर हम ध्यान से देखें, तो आज जो चीजें हमारी जिंदगी में वापस आ रही हैं, क्या वो नयी हैं? शायद नहीं। हम देखेंगे कि ये तो वही चीजें हैं, जो हमारे साथ बचपन से थीं। इसमें कुछ भी नया नहीं है, बल्कि ये तो बहुत पुरानी हैं। इतनी पुरानी कि इसे हम भूल चुके थे। इसीलिए आज हमें ये नयी सी महसूस हो रही हैं। जीवन की ऊंंचाइयों को पाने की हसरत में हम इतना मशगूल थे कि यह भूल गये थे कि जीवन में पैसा और प्रसिद्धि ही सब कुछ नहीं है। सबसे जरूरी है खुश रहना। जीवन का असली मकसद है मुस्कुराना और मुस्कुराहट बांटना। अगर हम ध्यान से देखें, तो हम पायेंगे कि आज जिस सोशल डिस्टेंसिंग की बात हो रही है, वह दरअसल अपने परिवार के करीब आने का एक बहाना है। बाहर की दुनिया को थोड़ी देर छोड़ कर अपनी घरेलू दुनिया से फिर से कनेक्ट होने का वक्त है। अनलॉक के दौरान हम यदि इसका ध्यान रखेंगे, तो हम न केवल खुद, बल्कि अपने भविष्य को भी निरापद बना सकेंगे। कोरोना महामारी ने जो अंतिम चीज सिखायी है, वह यह है कि शायद अब भौतिकता की भागम-भाग से ज्यादा हमको अपनी खुशी और अपनों की खुशी को प्राथमिकता देने की जरूरत होगी। ये सब अपनी जड़ों से जुड़ने जैसा है। जो है, जैसा है, उसमें खुश रहना ही सबसे बड़ी उपलब्धि है। अगर घोसला उजड़ने के बाद भी चिड़िया खुश रह सकती है तो इंसान सीमित संसाधन में प्रसन्न क्यों नहीं रह सकता।

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