कहानी योगी के सत्ता में आने की: योगी तो योगी हैं: सत्ता मिली तो राजयोगी, नहीं तो कर्मयोगी
- मैं एक संन्यासी हूं। अगर हमें शास्त्र का प्रशिक्षण दिया गया है, तो उसके साथ-साथ शस्त्र का भी। अगर हम एक हाथ में माला, तो दूसरे में भाला भी लेकर चलते हैं। यह इसलिए कि समाज को शिष्ट भी किया जा सके और दुष्टों को उनके कुकृत्यों की सजा भी दी जा सके। यही एक संन्यासी का कर्तव्य होता है।
- मुझे लगता है, जब कानून और व्यवस्था फेल हो जाती है, तो जंगल राज हो जाता है और तब जंगल राज का जवाब जैसे को तैसा देने की तैयारी होनी हीचाहिए। अन्याय किसी के साथ न हो, लेकिन हम अन्याय सहेंगे भी नहीं।
तारीख: 12 मार्च 2007, स्थान-लोकसभा। योगी आदित्यनाथ संसद में फफक-फफक कर रोते हुए कह रहे थे- अध्यक्ष जी, मैं तीसरी बार गोरखपुर से लोकसभा का सदस्य बना हूं। आक्रोश से भरे योगी के दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली कांप रही थी। फफकती आवाज में उन्होंने कहा कि पहली बार मैं 25 हजार वोटों से जीता था। दूसरी बार 50 हजार और तीसरी बार लगभग डेढ़ लाख मतों से गोरखपुर से चुन कर आया हूं। तर्जनी उंगली की कंपन और तेज होती है। फफकते-सिसकते हुए शब्दों में योगी आगे कहते हैं, पिछले कुछ समय से महोदय राजनीतिक विद्वेष के बाद मुझे जिस प्रकार से राजनीतिक पूर्वाग्रह का शिकार बनाया जा रहा है, मैं केवल आपसे अनुरोध करने के लिए आया हूं कि क्या मैं इस सदन का सदस्य हूं या नहीं हूं। क्या ये सदन मुझे संरक्षण दे पायेगा या नहीं दे पायेगा। अगर ये सदन मुझे संरक्षण नहीं दे सकता है, तो मैं आज ही सदन को छोड़ कर वापस जाना चाहता हूं। मेरे लिए ये कोई महत्व नहीं रखता महोदय। मैंने अपने जीवन से संन्यास लिया है, अपने समाज के लिए। मैंने अपने परिवार को छोड़ा है। मैंने अपने मां-बाप को छोड़ा है, लेकिन आज मुझे अपराधी बनाया जा रहा है महोदय। केवल राजनीतिक पूर्वाग्रह के तहत सिर्फ इसलिए, क्योंकि मैंने वहां भ्रष्टाचार के मामले उजागर किये थे। क्योंंकि मैंने भारत नेपाल की सीमा पर आइएसआइ और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठायी थी और बराबर उसके खिलाफ सदन का ध्यान आकर्षित करता रहा। मैं वहां पर भुखमरी से हो रही मौतों के खिलाफ प्रशासनिक भ्रष्टाचार को उठाता रहा। इसलिए मेरे खिलाफ महोदय सारे के सारे मामले बनाये गये हैं या बनाये जा रहे हैं। ये योगी आदित्यनाथ का दर्द था, जो उन्होंने संसद में लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के सामने बयां किया। योगी के संसद में निकले आंसू से लेकर सत्ता शीर्ष तक के सफर का विश्लेषण करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की रिपोर्ट।
दरअसल, इन फफकते शब्दों के जरिये साल 2007 में लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के समक्ष तीन बार से गोरखपुर से सांसद रहे योगी आदित्यनाथ अपनी दर्द भरी वेदना व्यक्त कर रहे थे। कुछ देर तक तो वह संसद में कुछ बोल ही नहीं पाये और जब फफकती आवाज में बोले तो कुछ देर के लिए पूरा सदन खामोश हो गया। उन्होेंने कहा कि उत्तरप्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रही है। उन्हें जान का खतरा है। दरअसल, जनवरी 2007 में गोरखपुर में एक दंगा हुआ था। इस दंगे के विरोध में योगी आदित्यनाथ ने धरने पर बैठने का एलान किया था। जब वह धरने के लिए जा ही रहे थे, तभी उत्तरप्रदेश पुलिस ने शांति भंग करने की धाराओं के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया। योगी ने कहा था कि जिस धारा में उन्हें सिर्फ 12 घंटे तक जेल में रखा जा सकता था, उस मामले में उन्हें 11 दिन तक जेल में बंद कर दिया गया। उस वक्त उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। एक वह वक़्त था, जब माफिया उत्तरप्रदेश सरकारों के दुलारे हुआ करते थे। एक वक्त आज का है, जब अपराधियों के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति पर अमल करते हुए उत्तरप्रदेश की योगी सरकार के मौजूदा कार्यकाल में अब तक गैंगस्टर एक्ट के तहत 15 अरब 74 करोड़ रुपये से अधिक की अवैध संपत्ति को जब्त किया जा चुका है। उत्तरप्रदेश के आज के योगी दौर मैं अपराधी या तो जेल में बंद हैं या शहर छोड़ चुके हैं या मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। ये योगी आदित्यनाथ के संसद में बहे आंसू की बूंदें ही थीं, जो आज अग्निवर्षा बन उत्तरप्रदेश के हर माफिया पर बरस रही है।
योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को पंचूर गांव, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड में एक राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम आनंद सिंह बिष्ट और माता का नाम सावित्री देवी है। आनंद सिंह बिष्ट और सावित्री देवी के 7 बच्चों में अजय सिंह (योगी आदित्यनाथ) पांचवें नंबर के हैं। तीन बड़ी बहनें और चार भाई है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय ठांगर और इंटर तक की शिक्षा भरत मंदिर इंटर कॉलेज ऋषिकेश में हुई। इसके बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएससी करने के लिए वह कोटद्वार आ गये। इस दौरान वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और राजकीय महाविद्यालय कोटद्वार के छात्रसंघ चुनाव में महासचिव का चुनाव भी लड़ा। इसके बाद वह एमएससी करने के लिए फिर ऋषिकेश चले गये। योगी शुरू से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से प्रभावित थे। वह आरएसएस की कार्य पद्धति और राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण के भाव को देख कर बहुत प्रभावित हुए।
योगी आदित्यनाथ अकसर वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया करते थे। विद्यार्थी परिषद का एक कार्यक्रम था, जहां पर तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ के नेतृत्व में राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए 21 जुलाई 1984 को रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया था। उसके अध्यक्ष महंत अवैद्यनाथ बनाये गये थे, जो जीवनपर्यंत बने रहे। उस कार्यक्रम में देश भर से आये कई छात्रों ने अपनी बात रखी। उसी क्रम में जब अजय सिंह उर्फ आदित्यनाथ ने अपनी बात रखनी शुरू की, तो तालियों की गड़गड़ाहट रुक ही नहीं रही थी। भाषण सुन महंत अवैद्यनाथ बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने योगी आदित्यनाथ को अपने पास बुलाया और पूछा, कहां से आये हो? तब उन्होंने बताया कि वह उत्तराखंड के पौड़ी के पंचूर से। महंत अवैद्यनाथ जी महाराज आदित्यनाथ से काफी प्रभावित हुए और कहा कि कभी मौका मिले, तो गोरखपुर मिलने जरूर आओ। योगी आदित्यनाथ उस वक़्त विद्यार्थी परिषद् और आरएसएस के कार्यों से इतने जुड़े हुए थे कि उन्हें गोरखपुर जाने का समय ही नहीं मिल पा रहा था। जब राम जन्मभूमि आंदोलन बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ा, तो योगी आदित्यनाथ खुद को रोक नहीं पाये। उसके बाद राम मंदिर को उन्होंने मिशन के रूप में लिया और गोरखपुर की ओर अपना कदम बढ़ा दिया। योगी अवैद्यनाथ महाराज जी से मिले। फिर क्या था, महंत अवैद्यनाथ जी महाराज ने आदित्यनाथ को अपना शिष्य स्वीकार किया और संन्यास की दीक्षा लेते ही वह अजय सिंह से योगी आदित्यनाथ बन गये।
संन्यास लेने से पहले योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरु के समक्ष कुछ प्रश्न रखे थे। योगी आदित्यनाथ ने गुरु देव से पूछा कि संन्यास का मतलब पलायन है? और अगर ये पलायन है तो मैं जीवन में पलायन का रास्ता नहीं अपना सकता। आदित्यनाथ ने कहा था कि मैं संन्यास को सेवा से जोड़ कर देखना चाहता हूं। तभी महंत अवैद्यनाथ ने कहा, गोरखपीठ जिस अभियान से जुड़ा है, आप उससे जुड़ कर अवश्य देखें। आदित्यनाथ को कुल छह महीने का समय मिला देखने-समझने के लिए। फिर आदित्यनाथ समझ चुके थे कि संन्यास का जो असली अर्थ है, उसे महंत अवैद्यनाथ जी महाराज जी रहे हैं। उसके बाद दोनों का रिश्ता गुरु-शिष्य का बना। आज वही अजय सिंह बिष्ट योगी आदित्यनाथ के नाम से हिंदुत्व का परचम पूरी दुनिया में लहरा रहे हैं।
साल 1994 में 22 साल की उम्र में योगी ने संन्यास की दुनिया में कदम रखा। योगी आदित्यनाथ के योगी बनने तक के सफर से यह समझा जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ को देश की सेवा तो करनी ही थी, साथ-साथ राम मंदिर आंदोलन को और भी प्रभावशाली बनाना था। राम मंदिर निर्माण भी योगी के समक्ष वह आकर्षण का केंद्र था, जिसने योगी आदित्यनाथ को कर्म योगी बना दिया।
योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ जी महाराज ने 1998 में राजनीति से संन्यास लिया और योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। यहीं से योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक पारी शुरू हुई। 1998 में गोरखपुर से 12वीं लोकसभा का चुनाव जीत कर योगी आदित्यनाथ संसद पहुंचे, तो उस समय वह सबसे कम उम्र के सांसद थे। उनकी उम्र उस वक़्त महज 26 साल थी।
उसके बाद आदित्यनाथ ने वर्ष 2002 में रामनवमी के दिन हिंदू युवा वाहिनी का गठन कर पूरे पूर्वांचल में अपना संगठन खड़ा कर दिया। गठन के वक्त योगी आदित्यनाथ ने इसे सांस्कृतिक संगठन बताया था, जिसका मकसद हिंदू विरोधी और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को रोकना था। यह संगठन मठ, मंदिर, गौ रक्षा, राष्ट्र रक्षा, धर्म रक्षा के लिए सदैव अग्रिम पंक्ति में पाया जाता है। यह संगठन गरीबों, लाचारों की भी मदद करता है और समाज से भटके लोगों को रास्ता भी दिखाता है।
बात अभी 2002 की ही करते हैं। यह वही साल था, जब योगी आदित्यनाथ ने अपनी राजनीतिक समझ का परिचय दिया था। उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था। भाजपा सरकार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री रहे शिवप्रताप शुक्ला की कार्यप्रणाली से योगी आदित्यनाथ आहत थे। योगी ने 2002 के विधानसभा चुनाव में बगावत का बिगुल फूंक दिया था। उनका मानना था कि गोरखपुर सीट के सियासी समीकरण अग्रवाल के पक्ष में ह, इसलिए डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल को भाजपा टिकट दे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर क्या था, आहत योगी ने अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रत्याशी डॉ राधामोहन दास अग्रवाल के पक्ष में प्रचार किया। उन्हें भारी मतों के अंतर से जीत दिलायी। उस चुनाव में जहां राधा मोहन अग्रवाल 38 हजार 830 वोट पाकर जीते, वहीं शिव प्रताप शुक्ला सिर्फ 14 हजार 509 वोट पर सिमट तीसरे स्थान पर रहे। इसके बाद से योगी आदित्यनाथ का उत्तरप्रदेश की राजनीति में कद और बढ़ गया। योगी ने दिखा दिया कि उनकी लोगों के बीच पैठ कितनी गहरी है। राजनीतिक जानकारों ने भी माना कि योगी लंबी रेस के घोड़ा हैं। वह सिर्फ योगी ही नहीं, वह कर्मयोगी भी हैं। जिन्हें राजनीति की समझ भी है और अपने कर्म का बोध भी। उस वक़्त योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर की सरहद लांघ कर पूरे पूर्वांचल में पैठ बनायी। कहते हैं 2002 में उस हार के बाद शिव प्रताप शुक्ला नेपथ्य में चले गये, उनका राजनीतिक कैरियर खत्म हो चला था। वह अपना राजनीतिक वनवास काट रहे थे। मोदी सरकार ने 2016 में शिव प्रताप शुक्ला को न केवल राज्यसभा भेजा, बल्कि अपने मंत्रिमंडल में वित्त राज्यमंत्री बना कर उनके सियासी वनवास को भी खत्म किया। कहते हैं, बाद में शिव प्रताप शुक्ला से जब योगी आदित्यनाथ के रिश्ते बेहतर हुए, तब योगी भी मोदी सरकार में उन्हें मंत्री बनाये जाने के पक्ष में थे।
अब बात लव जिहाद की करते हैं। इस मुद्दे ने योगी का कट्टर हिंदूवादी चेहरा सामने लाया। यहीं से योगी उत्तरप्रदेश की राजनीति में हिंदुत्व का एक बड़ा चेहरा बन कर उभरने लगे। योगी की धमक और हनक दोनों एक साथ उत्तरप्रदेश की जनता के बीच गूंजने लगी। उनके भाषण अब राज्य की दहलीज लांघ भारत के कोने-कोने तक पहुंचने लगे। उनका महत्व उत्तरप्रदेश की राजनीति में साफ दिखाई पड़ने लगा। शुरूआती दिनों से ही योगी आदित्यनाथ लव जिहाद को लेकर काफी मुखर रहे हैं। उनका मानना है कि लव जिहाद भारत के खिलाफ और भारत की संस्कृति के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है। वह कहते हैं, उत्तरप्रदेश हाइकोर्ट ने 2006 में प्रदेश की सरकार को एक निर्देश जारी किया था और सवाल किया था कि उत्तरप्रदेश के अंदर बड़ी तेजी के साथ हिंदू बालिकाओं का अपहरण क्यों हो रहा है? ये केवल उत्तरप्रदेश तक ही सीमित नहीं था। 2009 में केरल हाइकोर्ट ने भी इस संबंध में वहां की सरकार से सवाल किया था कि चार वर्ष में पांच हजार से भी अधिक हिंदू बालिकाओं का अपहरण होना, आखिर ये सब क्या है? कर्नाटक हाइकोर्ट ने भी इसी संबंध में आदेश जारी किया था कि इस मामले की सीआइडी जांच क्यों नहीं करा दी जाती है? अचानक हिंदू बालिकाएं कहां गायब होती जा रही हैं? योगी कहते हैं, अगर ये केवल दो लोगों का आपसी प्रेम होता, तो कोई बात नहीं, करें, आपसी सहमति से हो तो ठीक, लेकिन छल और धोखे के आधार पर नहीं होना चाहिए। जो रांची में हुआ था, जो मेरठ में हुआ, जो हरियाणा में हुआ था, अगर इस प्रकार की किसी भी दुष्प्रवृत्ति को जिहाद के नाम पर हिंदुस्तान में थोपने का प्रयास होगा, तो हम उसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करेंगे। आपको बता दें कि 2014 में रांची में लव जिहाद के एक मामले ने बड़ा तूल पकड़ा था। ये मामला झारखंड की उभरती हुई निशानेबाज तारा शाहदेव से जुड़ा था। उन्होंने रकीबुल हसन पर जबरन धर्म परिवर्तन, शारीरिक प्रताड़ना सहित कई आरोप लगाये थे। पुलिस को दिये अपने बयान में तारा ने कहा था कि 7 जुलाई, 2104 को उसकी शादी शहर के रेडिशन ब्लू होटल में रंजीत सिंह कोहली नाम के एक व्यक्ति से हुई। लेकिन शादी के बाद से ही उस पर जानवरों की तरह अत्याचार होने लगा। यहां तक कि उसे कुत्तों से कटवाने की कोशिश भी की गयी थी। यही नहीं, जब तारा को पता चला कि उसके पति का नाम रंजीत सिंह नहीं, बल्कि रकीबुल हसन है, तो उस पर जुल्म की इंतेहा कर दी गयी। तारा पर जबरन धर्म परिवर्तन करने का दबाव बनाया जाने लगा था। ऐसे ही कई अत्याचार के किस्से लव जिहाद से जुड़े होने से योगी आदित्यनाथ ने अपनी आवाज को इसके खिलाफ बुलंद किया।
योगी कहते हैं कि लव जिहाद के नाम पर एक बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय गिरोह काम कर रहा है। उन लोगों ने पैकेज घोषित किये हैं। हिंदू बालिकाओं का अपहरण होना, उसके साथ जबरन दुष्कर्म करना, उसकी जिंदगी को बर्बाद कर देना। आखिर वे लोग पहले से क्यों अपना पूरा नाम नहीं बताते। अपना सही नाम बताइये। क्यों गुड्डू, पप्पू और हिंदू नाम बोल बेवकूफ बना रहे हो समाज को।
योगी आदित्यनाथ ने धर्मांतरण के खिलाफ भी मुहिम छेड़ रखी है। अभी हाल ही में जून 2021 में उत्तरप्रदेश में धर्मांतरण का एक बड़ा रैकेट सामने आया था। इस रैकेट ने करीब एक हजार लोगों का धर्मांतरण कर मुस्लिम बना दिया था। पुलिस सूत्रों को इस मामले में विदेशी फंडिंग और कई लोगों के शामिल होने की जानकारी मिली है। पुलिस के मुताबिक, ये लोग मूक-बधिर बच्चों को धर्मांतरण का शिकार बनाते थे, साथ में महिलाओं को भी लालच देकर धर्मांतरण करवाया जाता था। इस रैकेट के खुलासे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सख्त रुख अपनाया है। सीएम ने दोषियों पर एनएसए के तहत एक्शन लेने और उनकी संपत्ति जब्त करने को कहा है। योगी आदित्यनाथ एक कट्टर हिंदुत्व का चेहरा तो हैं ही, साथ-साथ एक योगी होने के कारण अगर किसी अन्य धर्म के लोगों पर अन्याय हो रहा हो तो वह उनकी भी रक्षा करते हैं। चर्चा के अनुसार एक बार योगी आदित्यनाथ को पता चला कि गोरखपुर के एक बाजार में कुछ गुंडों ने एक मुसलमान दर्जी से फिरौती की मांग की है। पीड़ित की शिकायत पर पुलिस कोई भी एक्शन नहीं ले रही थी। तब योगी आदित्यनाथ सामने आये और फैसला किया कि वह पुलिसिया रवैये के खिलाफ सड़क पर धरना देंगे। उन्होंने तब तक धरना दिया, जब तक आरोपी गिरफ्तार नहीं हो गया।
सीएम योगी का एक और किस्सा खूब चर्चा में रहा था। योगी आदित्यनाथ ने एक मौलवी की मदद करते हुए उन्हें मदरसे की जमीन वापस दिलवायी थी। चर्चा है कि गोरखपुर में कुछ भूमाफियाओं ने एक मदरसे की जमीन पर कब्जा जमा लिया था। मौलवी ने प्रशासन से मदद की गुहार लगायी, लेकिन पुलिस उनको टहलाती रही। प्रशासन के रवैये से हताश-निराश होकर मौलवी ने योगी आदित्यनाथ के जनता दर्शन दरबार में मदद की गुहार लगायी। योगी ने उनको वादा किया कि मदरसे की जमीन को कब्जामुक्त कराया जायेगा और उन्होंने ऐसा कराया भी। ऐसे कई सारे किस्से हैं, जिसके कारण गोरखपुर के मुस्लिम योगी को अपना मददगार मानते हैं।
वह वर्ष 2014 था, जब योगी आदित्यनाथ ने बतौर सांसद 5वीं बार जीत हासिल की थी। 1998 से लेकर मार्च 2017 तक योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद रहे। हर बार उनकी जीत का आंकड़ा बढ़ता ही गया। साल 2017, भाजपा की जीत की आंधी में विपक्षी दल उड़ गये। भाजपा और सहयोगी दलों ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 324 सीटें हासिल की थीं। इनमें से भाजपा ने अकेले ही दम पर 311 सीटें झटक ली थीं, जबकि अपना दल (सोनेलाल) ने 9 सीटें जीती, भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी को 4 सीटें हासिल हुई थीं। जनता ने न सिर्फ अखिलेश के ‘काम बोलता है’ स्लोगन को नकार दिया, बल्कि यूपी के लड़कों अखिलेश-राहुल के ‘यूपी को यह साथ पसंद है’ नारे को भी जनता ने खारिज कर दिया। उत्तरप्रदेश की राजनीति में अब बहुत बड़ा बदलाव होनेवाला था। यूपी में भाजपा का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। जब 2017 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए नामों की चर्चा हो रही थी, तब केशव प्रसाद मौर्या का नाम हवा में गूंज रहा था। मनोज सिन्हा का नाम भी लिया जा रहा था। ज्यादातर लोग मौर्य के पक्ष में नारे लगा रहे थे- जन-जन की आवाज है, केशव के सिर पर ताज है। योगी के स्वागत के लिए मात्र पांच-सात कार्यकर्ता ही थे। लेकिन जब उत्तरप्रदेश में भाजपा की बहुमत वाली सरकार बनी, तो किसी को अनुमान ही नहीं था कि एक योगी, किसी पीठ का महंत देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बन सकता है। 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने बतौर मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली थी। ये उत्तरप्रदेश की हवाओं में एक नये नाम की गूंज थी। एक नये एक्सपेरिमेंट की कहानी गढ़ी जा रही थी। योगी के मुख्यमंत्री बनते ही अपराधियों के हाथ-पांव फूलने लगे। योगी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही प्रशासनिक महकमा के अधिकारियों को समझ में आ गया कि अब काम करना होगा। जो फाइलें आॅफिस में धूल फांक रही थीं, उन पर से धूल के हटने की बारी आ गयी थी। अब आॅफिस में पान के छीटें नहीं, बल्कि भ्रष्ट अफसरों को साफ करने की बारी आ गयी थी। उत्तरप्रदेश को स्वच्छ भारत अभियान की पुरजोर जरूरत थी। योगी ने मोदी के इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए उत्तरप्रदेश को स्वच्छ करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया। साथ-साथ उत्तरप्रदेश को अपराध मुक्त करने की दिशा में योगी ने एक्शन लेना शुरू किया। आज उत्तरप्रदेश में बच्चा-बच्चा बोलता है। आज उत्तरप्रदेश में अपराधी या तो जेल में हैं या फिर ऊपर हंै या फिर राज्य छोड़ भाग चुके हैं। उत्तरप्रदेश की जनता का कहना है कि 2017 से पहले उत्तरप्रदेश में रात को चलने में डर लगता था, लेकिन अब उत्तरप्रदेश की रातें अंजोरिया गयी हैं। अब नहीं डर लगता।
अब बात करते हैं कोरोना काल की। जब योगी ने 2017 में उत्तरप्रदेश की कमान संभाली, तब राज्य का खजाना खाली था। हर तरफ से भ्रष्टाचार की दुर्गंध आ रही थी। योगी ने राज्य की अर्थव्यस्था को पटरी पर लाने के लिए पहले खुद के घर से शुरूआत की। उन्होंने अपने मंत्रियों, राज्य के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की फिजूल खर्ची पर रोक लगायी। राज्य के विकास के लिए नयी-नयी योजनाएं शुरू की गयीं। लेकिन 2020 में भारत में कोरोना का आगमन हो गया। जिस प्रकार से प्रधानमंत्री ने उस वक़्त कोरोना की पहली लहर से देश को बचाया, वह कई देशों के लिए मिसाल बन गया था। उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने भी कोरोना की पहली लहर को जिस प्रकार खदेड़ा, वह सराहनीय था। लेकिन फिर कोरोना की दूसरी लहर का आगमन हुआ। उसने देशभर में क्या उत्पात मचाया था, ये किसी से छिपा नहीं है। उसी प्रकार उत्तरप्रदेश भी इससे अछूता नहीं रहा। 24 करोड़ की आबादी वाले उत्तरप्रदेश की जनता की जिम्मेदारी योगी के कंधों पर थी। जब उत्तरप्रदेश के कई बड़े विपक्षी नेता घरों में दुबक कर बैठे थे, तब योगी जनता के बीच थे। अस्पतालों के चक्कर लगा रहे थे। मरीजों की स्वास्थ्य व्यवस्था में लगे योगी खुद कोरोना की चपेट में आ गये थे। लेकिन उसके बाद भी वह काम करते रहे। उन्होंने हार नहीं मानी। विपक्षी नेताओं का कहना था कि कोरोना काल में गंगा लाशों से भर गयी थीं। ये सत्य है कि कोरोना ने दूसरी लहर के दौरान कईयों को निगल लिया था। लेकिन ये भी सत्य है कि 24 करोड़ वाले राज्य को बचाना कोई खेल नहीं। मौतें हुई हैं, लोगों ने अपनों को खोया है। लेकिन योगी सरकार और उत्तरप्रदेश की जनता दमखम से राज्य में कोरोना से दो-दो हाथ कर रही थी, वहीं उस राज्य के विपक्षी नेता मैदान में नजर नहीं आये। वे घरों में बैठ आॅक्सीजन की कमी गिनवा रहे थे। कोरोना वैक्सीन पर अंधविश्वास फैला रहे थे। कुछ ने कहा, हम मोदी टीका नहीं लगवायेंगे तो सपा नेता अखिलेश यादव कह रहे थे कि हम भाजपा का टीका नहीं लगवायेंगे। दरअसल, कुछ नेताओं को भरोसा ही नहीं हो पा रहा था कि भारत कोरोना से लड़ने के लिए इतने कम समय में वैक्सीन की इजाद कर लेगा। आज भारत ने दिखा दिया कि वह कोरोना का टीका खुद बना सकता है। वह महामारी से लड़ने में सक्षम है, उसे किसी अन्य देश के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं। आज उत्तरप्रदेश पूरी तरह से लॉकडाउन मुक्त हो चुका है। योगी सरकार ने कोरोना से प्रभावित हुए लोगों, बच्चों, युवतियों और महिलाओं के लिए कई सारी योजनाएं शुरू की हैं। राज्य कोरोना की तीसरी लहर से मुकाबला करने के लिए तैयार है। एक योगी को शास्त्र, शस्त्र के अलावा विषपान भी करना पड़ता है इसे राजनीति ने आदित्यनाथ को सीखा ही दिया। 2022 का विधानसभा चुनाव उत्तरप्रदेश की जनता और योगी आदित्यनाथ के भाग्य का फैसला करेगी।
ऐसे योगी तो योगी हैं, सत्ता मिली तो राजयोगी नहीं मिली तो कर्मयोगी। सेवा का कार्य तो निरंतर चलता है।