झारखंड एकेडमिक काउंसिल (जैक) ने 10वीं और 12वीं के फेल विद्यार्थियों के लिए परीक्षा आयोजित करने की योजना तैयार की है। वहीं, जो विद्यार्थी घोषित परीक्षाफल से संतुष्ट नहीं हैं, वे भी इस परीक्षा में सुधार के लिए शामिल हो सकते हैं। निश्चय ही ये सारे काम नियम कानून के तहत हो रहे होंगे। जिन बच्चों को पास या फेल किया गया, वह एक नियम के तहत हुआ होगा। जैक ने एक पैमाना तय किया और बच्चों को पास-फेल किया। परीक्षा का आयोजन नियम के तहत हो रहा है। सवाल नियम या पैमाने का नहीं है। इस सारे प्रकरण को एक बार बच्चों की नजर से सोचना होगा। यह बच्चों की ‘अग्निपरीक्षा’ से कम नहीं है। कोराना संकट के इस दौर में यह कितना उचित है?
बच्चों की पढ़ाई और परीक्षा को लेकर तीन-चार साल पहले की एक खबर याद आ रही है। मामला गुजरात में स्थित पंचमहल जिले का है। वहां के एक मंदिर में एक ऐसा पेन बनाने का दावा किया था, जिससे बच्चे आसानी से परीक्षा पास कर सकते थे। इस बात का प्रचार-प्रसार के लिए एक विज्ञापन भी जारी हुआ था। विज्ञापन में दावा किया गया था कि जो भी विद्यार्थी इस पेन को खरीदेगा वह यकीनन परीक्षा में पास हो जायेगा। विज्ञापन में यह भी लिखा था कि अगर कोई छात्र फेल हो जाता है तो उसके पूरे पैसे लौटा दिये जायेंगे। इस बात में कितनी सच्चाई थी, यह तो नहीं पता, लेकिन जैक द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षा में विद्यार्थियों को किसी ऐसे ही करिश्माई पेन की जरूरत होगी। क्योंकि बगैर पढ़ाई-लिखाई, बगैर कक्षा हुए, आखिर परीक्षा पास करना संभव कैसे होगा?
सरकारी स्कूल के बच्चों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सभी को पता है। कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल छूटा। कई बच्चों के परिवारों की आमदनी बंद हुई। कितने ही बच्चों के पास मोबाइल तो दूर, इंटरनेट भराने के पैसे भी नहीं रहे होंगे। ऐसे में सरकार ने जो थोड़ी-बहुत आॅनलाइन पढ़ाई का प्रयास किया था, उसका भी लाभ उन तक नहीं पहुंच पाया। स्कूल-काॉलेज छूटना, पारिवारिक स्थिति और कोरोना संक्रमण के कारण बने हालात से बच्चों के मानसिक तनाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में मौजूदा परिस्थति में परीक्षा लेना क्या उचित निर्णय है। यहां सवाल और उठते हैं। सफलता या असफलता के लिए केवल बच्चे जिम्मेदार हैं? स्कूलों में पढ़ाई नहीं हुई, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? बच्चे अपनी आर्थिक स्थिति के कारण आॅनलाइन क्लास नहीं कर पाये, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इस बात की गारंटी तो है नहीं कि बच्चे परीक्षा देकर सफल ही होंगे। कोरोना संक्रमण की परिस्थिति ने जैक, स्कूल, शिक्षक, परिवार सभी को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां सब कुछ सामान्य नहीं रहा, तो इसका खामियाजा केवल बच्चों को ही क्यों उठाना पड़ेगा? बच्चों का मानसिक तनाव बढ़ाने की क्या जरूरत है। इन सभी बातों को संवेदनशीलता के साथ सोचने की जरूरत है। कुछ अलग रास्ता तलाशने की जरूरत है, जो एक नजीर बन सके।