प्रशांत झा
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने 11 जून को अपना 73वां जन्मदिन मनाया है। 1948 में जन्मे लालू की राजनीति 1970 में छात्र नेता के रूप में शुरू हुई। वह आपातकाल के समय एक बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आये। लालू प्रसाद 29 साल में लोकसभा पहुंचे और 42 साल में मुख्यमंत्री बने। तीन दशक से राजनीति की धुरी बने रहे लालू जेल में रहें या बाहर, उनकी राजनीतिक अहमियत और कद कभी कम नहीं घटा। वह बिहार से दिल्ली तक की राजनीति में चर्चा में रहते हैं। अगर ये कहें कि लालू और राजनीति एक दूसरे के पर्याय हैं, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यही कारण है कि चारा घोटाले मामले में जमानत पर जेल से जब से बाहर निकले हैं, एक बार फिर राजनीति गरमा गयी है। दिल्ली में स्वास्थ्य लाभ ले रहे लालू से विपक्ष के नेताओं का मिलना-जुलना शुरू हो गया है। यह मिलना-जुलना क्या गुल खिलायेगी, बस इसका इंतजार है।
लालू के करीब 31 सालों के राजनीतिक जीवन में कई झंझावात आये। इसके बाद भी उन्होंने अपनी जगह बनाये रखा है। चारा घोटाला में लंबे समय तक जेल में रहने के बावजूद विपक्ष की राजनीति उनके आसपास ही घूमती दिखी। खास कर जब कहीं चुनाव होने वाले रहता है, तो उनकी महत्ता दिखने लगती है। राजनीतिक गलियारे में वह चर्चा में रहते हैं। उन पर सभी की नजर रहती है। ऐसा ही कुछ अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव और 2024 में लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर शुरू होता दिख रहा है। दिल्ली में लालू की सपा के मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, पूर्व सांसद शरद यादव, एनसीपी नेता शरद पवार समेत बारी-बारी से अन्य नेताओं से मिल रहे हैं।
लालू ने जमानत पर रिहा होने के बाद एक इंटरव्यू में कई बातों को अपने चिरपिरिचित अंदाज और भाषा में स्पष्ट कर दिया। उन्होनें कहा कि नेता कभी रिटायर नहीं होता है। चुनाव लड़ना और उसमें शामिल होना ही सिर्फ राजनीति करना नहीं है।
साथ ही उन्होंने एक सावल पर यह भी कह दिया कि मार्गदर्शक बनने का काम तो सिर्फ हाफपैंट वालों का कॉपीराइट है। हम तो अंतिम दम तक वंचितों और शोषितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ते रहेंगे। चारा घोटाले में सजा होने के कारण लालू यादव पर 11 साल के लिये चुनाव लड़ने पर रोक लगी है। वह दैहिक रूप से राजनीति में रहें या नहीं, जेल के अंदर हों या बाहर इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूमेगी ही। उन्हें माइनस कर चुनाव में उतरना किसी भी दल के लिये सभव नहीं है। जबकि अभी तो वह जमानत पर बाहर हैं। नेतागण उनसे मिलेंगे ही। ऐसे में सवाल उठता है कि अब आगे क्या? यह मुलकात राजनीति को क्या दिशा देती है, यह देखना शेष है।