Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Monday, June 9
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»दर्द से तड़पते-कराहते मर गयी दुमका की बेटी अंकिता
    विशेष

    दर्द से तड़पते-कराहते मर गयी दुमका की बेटी अंकिता

    azad sipahiBy azad sipahiAugust 31, 2022No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    पीड़ा : प्रशासनिक और सामाजिक अनदेखी ने असमय ही लील लिया एक बेटी का जीवन

    दुमका की नाबालिग बेटी अंकिता सिंह मर गयी। पांच दिन तक असहनीय पीड़ा झेलते हुए यह लड़की कभी न लौटनेवाली सफर पर तो निकल गयी, लेकिन उसकी रवानगी के पीछे एक आम मध्यमवर्गीय परिवार की बेबसी, एक नाबालिग लड़की के अभिभावक की पीड़ा, प्रशासनिक और सामाजिक लापरवाही-अनदेखी और सियासत की बदरंग होती तस्वीर कुछ और चमकीली हो गयी। अंकिता की मौत ने दिखा दिया कि समाज के चेहरे पर कोई भी तमाचा तब तक अपना असर नहीं दिखाता, जब तक कि सियासत ऐसा नहीं चाहे। इसलिए उसकी मौत के बाद जारी हो रहे बयान, उसके परिवार के लिए की जा रही घोषणाएं और उसके वहशी हत्यारे के खिलाफ की जा रही प्रशासनिक और पुलिसिया कार्रवाई यह बताने के लिए काफी हैं कि हमारा समाज इस लापरवाह और गैर-जिम्मेदार सिस्टम के आगे बेबस-लाचार हो चुका है। अंकिता न तो इस तरह के वहशी अपराध की पहली शिकार है और न अंतिम, यह बात सभी को ध्यान में रखनी होगी। उसकी मौत ने दिखा दिया है कि सामाजिक शिराजा बिखरने का अंजाम क्या होता है। शायद इसलिए उसके परिजन उस नराधम शाहरुख के लिए मौत की सजा की मांग कर रहे हैं और प्रशासन भी इस दिशा में सक्रिय हो गया है। यही सक्रियता यदि 22 अगस्त के बाद दिखती, तो शायद अंकिता हमारे बीच होती। कहा जाता है कि कोई भी सामाजिक बदलाव बिना किसी बलिदान के नहीं होता, लेकिन भारत और खास कर झारखंड में यह सच नहीं हो रहा है। निर्भया से लेकर अंकिता तक के बलिदान ने न तो प्रशासन की निगाहों को बदला है और न ही सियासत को। यह बेहद गंभीर सवाल है। यह सवाल केवल पुलिस-प्रशासन या सियासतदानों से नहीं, बल्कि समाज के हरेक व्यक्ति से पूछा जा रहा है। अंकिता सिंह की मौत के पीछे से उभरे इसी सवाल का जवाब तलाश रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह।

    पहले दुमका और बाद में रांची के रिम्स अस्पताल में जीवन से संघर्ष करती हुई अंकिता सिंह ने आखिर इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आंखों में सुनहरे भविष्य का सपना लिये अंकिता की मौत ने कई ऐसे सवालों को जन्म दिया है, जिनका जवाब झारखंड और पूरे देश को आनेवाले दिनों में देना होगा। अंकिता के वहशी हत्यारे शाहरुख और उसके सहयोगी छोटू को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन महज इस प्रशासनिक कार्रवाई से अंकिता के सवालों के जवाब नहीं मिल जाते। 22-23 अगस्त की रात अपने ही घर में जला दी गयी अंकिता का पहला सवाल तो उस पुलिस और प्रशासन से है, जिसने इस घटना को मामूली समझते हुए कोई कार्रवाई नहीं की। दुमका से रांची स्थित रिम्स भेजने के लिए भी दुमका प्रशासन पता नहीं, किस आदेश का इंतजार करता रहा। इसका परिणाम यह हुआ दर्द से तड़पती-कराहती अंकिता ने 27-28 अगस्त की रात अंतिम सांस ली।
    अंकिता और शाहरुख, दोनों का परिवार निम्न मध्यवर्गीय है। अंकिता के पिता संजीव सिंह किराने की एक दुकान में काम कर अपना परिवार चलाते हैं। उनकी पत्नी और अंकिता की मां की मौत करीब डेढ़ साल पहले कैंसर से हो गयी थी। अंकिता अपने तीन भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थी और 10वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की थी। वह अपने पिता, दादा, दादी और छोटे भाई के साथ रहती थी। उसकी बड़ी बहन का पहले ही ब्याह हो चुका है।

    कातिल शाहरुख का परिवार भी उसी मोहल्ले में मिट्टी के एक घर में रहता है। उनके पिता पेंटर थे, जिनकी बहुत पहले मौत हो चुकी है। वह छोटे-मोटे काम कर घर चलाने में अपनी भूमिका निभाते थे। शाहरुख का परिवार दुमका जिले के ही शिकारीपाड़ा प्रखंड का मूल निवासी है, लेकिन पिछले कई सालों से दुमका में कच्चा घर बना कर रहता है।

    अंकिता की मौत ने झारखंड और देश के सामने जो सवाल खड़े किये हैं, उनका उत्तर आसान नहीं है। यह सही है कि इस तरह की वहशियाना हरकत की शिकार बनी अंकिता न पहली लड़की है और न अंतिम, लेकिन सवाल यह है कि दुमका का पुलिस-प्रशासन इस मामले की अनदेखी कैसे करता रहा। दुमका के लोग, सियासतदान और सबसे पहले समाज उस समय कहां चला गया था, जब शाहरुख लगातार अंकिता को परेशान कर रहा था। अंकिता के पिता ने कहा है कि शाहरुख पिछले कई दिनों से अंकिता को परेशान करता था। 10-12 दिन पहले उसने अंकिता की किसी सहेली से उसका फोन नंबर ले लिया और उसे बार-बार फोन कर तंग करने लगा। अंकिता ने ये बातें मुझसे बतायी, तो मैंने पहले तो इग्नोर कर दिया, लेकिन 22 अगस्त की शाम उसने अंकिता को फोन कर कहा कि अगर वह उससे नहीं मिलेगी, तो उसे जान से मार देगा। संजीव सिंह कहते हैं, अंकिता ने मुझसे यह बात भी बतायी। तब तक रात हो चुकी थी। मैंने सोचा कि सुबह होने पर शाहरुख और उसके घर के लोगों से इस मुद्दे पर बातचीत करेंगे। इसी बीच 23 अगस्त की अहले सुबह उसने खिड़की के बगल में सोयी मेरी बेटी पर पेट्रोल छिड़क कर जलती माचिस की तीली फेंक दी। इसमें अंकिता बुरी तरह झुलस गयी और अंतत: हम उसकी जान नहीं बचा सके। मेरी मासूम बेटी मर गयी और हम रो रहे हैं। अंकिता को पहले दुमका के मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया और बाद में रिम्स भेजा गया। पांच दिन तक मौत से लड़ने के बाद अंतत: अंकिता हार गयी।

    लेकिन इन पांच दिनों में कोई भी सरकारी या राजनीतिक नुमाइंदा उसकी खोज-खबर लेने नहीं गया। पुलिस-प्रशासन भी चुप्पी साधे रहा। लेकिन जब अंकिता मर गयी, तब सभी की नींद टूटी। पहले ‘प्रशिक्षण’ की तैयारियों में जुटे सियासतदान मैदान में उतरे और बयान जारी करने का सिलसिला शुरू हुआ। इसके बाद सियासी घमासान में भिड़े लोग सक्रिय हुए। अंकिता के परिजनों के लिए न्याय देने और दिलाने का अभियान शुरू हुआ, लेकिन किसी ने सवाल नहीं उठाया कि पांच दिन तक अंकिता की सुध लेने कोई क्यों नहीं गया। क्या प्रशासन तभी सक्रिय होगा, जब मुख्यमंत्री हर बात के लिए उसे आदेश देंगे। जैसे ही मुख्यमंत्री गंभीर हुए, आदेश दिये, प्रशासन की स्पीड बढ़ गयी। देखते ही देखते अंकिता के परिजनों को मुआवजा मिल गया, एडीजी रैंक के अधिकारी उसके घर पहुंच गये। एसपी बार-बार गांव में जाने लगे।

    बयान जारी हुए, बयानवीर सामने आये, तो समाज भी जागा, ठीक उसी तरह, जब 2012 में निर्भया के लिए पूरा देश सड़कों पर उतर गया था, लेकिन तब भी न निर्भया हमारे बीच थी और न अब अंकिता है। अब पुलिस-प्रशासन का ध्यान इस पर कम है कि शाहरुख हुसैन को सजा कैसे दिलायी जाये और इस पर ज्यादा है कि लोग सड़कों पर न उतर जायें। शाहरुख और उसके सहयोगी छोटू को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन अंकिता की आत्मा को क्या इतने भर से शांति मिल जायेगी। उसके परिवार को सरकारी सहायता के रूप में 10 लाख रुपये मिल गये हैं, लेकिन क्या एक बेटी के जीवन का मोल इतना भर है। राजनीति के दूसरे छोर पर खड़े खिलाड़ियों ने अंकिता के परिवार के लिए एक करोड़ रुपये जुटाने का संकल्प लिया है, लेकिन क्या कोई उस परिवार को उसकी बेटी लौटाने की बात करने का साहस जुटा सकता है। इस पूरी घटना पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि इस मामले पर सरकार गंभीर है। जो दोषी है, उसे बख्शा नहीं जायेगा। वह दोषियों को कड़ी सजा दिलाने की बात तो कर रहे हैं, लेकिन इस सवाल का कोई जवाब उनके पास नहीं है कि अंकिता को बेहतर इलाज के लिए किसी बड़े अस्पताल में क्यों नहीं भेजा गया। जब एक दंगा में शामिल अपराधी की जान बचाने के लिए उसे एयर एंबुलेंस से भेजा जा सकता है, तो एक बेटी में ऐसा क्यों नहीं हुआ। क्या विडंबना है कि पांच दिन तक वह बेटी असहनीय दर्द में तड़पती रही, पर कोई सरकारी नुमाइंदा उससे मिलने तक नहीं आया। इसीलिए यह भी कहा जा रहा है कि अंकिता का अगर बेहतर इलाज होता, तो शायद आज अंकिता जीवित रहती।

    इन सबमें सबसे बड़ा सवाल तो यह उठता है कि आखिर शाहरुख जैसे वहशियों को इस तरह का अपराध करने की हिम्मत कहां से मिल रही है? कहीं यह तुष्टीकरण की नीति ही तो नहीं, जहां समाज, प्रशासन, न्यायपालिका और सियासत एक बेटी को न्याय दिलाने में भी सक्षम नहीं हो पा रही है।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleनौकरानी को प्रताड़ित करने वाली पूर्व भाजपा नेत्री सीमा पात्रा गिरफ्तार
    Next Article अनिल अंबानी की रिलायंस कैपिटल बिकने को तैयार, 14 प्रस्ताव मिले
    azad sipahi

      Related Posts

      एक साथ कई निशाने साध गया मोदी का ‘कूटनीतिक तीर’

      June 8, 2025

      राहुल गांधी का बड़ा ‘ब्लंडर’ साबित होगा ‘सरेंडर’ वाला बयान

      June 7, 2025

      बिहार में तेजस्वी यादव के लिए सिरदर्द बनेंगे चिराग

      June 5, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • भारत ने पिछले 11 वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से परिवर्तन देखा: प्रधानमंत्री मोदी
      • ठाणे में चलती लोकल ट्रेन से गिरकर 6 यात्रियों की मौत, सात घायल
      • प्रधानमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि दी
      • हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल ने श्री महाकालेश्वर भगवान के दर्शन किए
      • ‘हाउसफुलृ-5’ ने तीसरे दिन भी की जबरदस्त कमाई, तीन दिनों का कलेक्शन 87 करोड़
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version