रांची। आजसू पार्टी के अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा दलित, आदिवासी और दबे-कुचले समाज के स्वाभिमान थे। झारखंडी समाज एवं संस्कृति के विकास के लिए हमेशा संघर्षरत रहनेवाले धरतीपुत्र डॉ. रामदयाल मुंडा अपने आप में एक संस्था थे, उनके जीवन दर्शन से हमें हर पल सीखते रहने की जरुरत है। पद्मश्री डॉ. मुंडा झारखंड की समृद्ध संस्कृति को आगे बढ़ाने और आदिवासियों की पहचान बनाए रखने के लिए अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहें। महतो मंगलवार को रांची के मोरहाबादी स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा पार्क में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा का व्यक्तित्व विराट था। उन्होंने अपनी मेहनत, समर्पण, त्याग और काबिलियत से अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई। डॉ. मुंडा भारत सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी ऑन झारखंड मैटर के प्रमुख सदस्य थे। उन्हीं के प्रयास से रांची विश्वविद्यालय में आदिवासी और क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना हुई। डॉ. मुंडा के प्रयास से ही यूएनओ में लंबी बहस के बाद हर साल नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित हुआ।

इस दौरान पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा के पुत्र एवं सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गुंजल इकीर मुंडा भी मौजूद रहें। डॉ. मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर, उन्हें नमन करते हुए गुंजल ने कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा अपने आप में एक किताब थे और उस किताब का हर पन्ना झारखंड की माटी की सौंधी खुशबू बिखेराता है।

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