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    Home»विशेष»टाइगर के बिना कितना सुरक्षित रहेगा झामुमो का कोल्हान दुर्ग
    विशेष

    टाइगर के बिना कितना सुरक्षित रहेगा झामुमो का कोल्हान दुर्ग

    shivam kumarBy shivam kumarAugust 28, 2024No Comments12 Mins Read
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    विशेष
    भाजपा को भरोसा, टाइगर की मदद से कोल्हान में पकड़ होगी मजबूत

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन 30 अगस्त को भाजपा में शामिल होंगे। यह जानकारी खुद चंपाई सोरेन ने मंगलवार को दिल्ली में पत्रकारों को दी। उन्होंने कहा कि बुधवार को वह रांची पहुंच रहे हैं और भाजपा ज्वाइन करेंगे। इससे पूर्व असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने सोमवार देर रात जैसे ही चंपाई सोरेन की अमित शाह से मुलाकात वाली तस्वीर पोस्ट की, जिसमें चंपाई के बेटे बाबूलाल सोरेन और खुद हिमंता भी हैं, झारखंड की राजनीति में छाये सस्पेंस पर विराम लग गया। इससे पहले चंपाई जेएमएम में तो नहीं रहेंगे, यह कन्फर्म था। लेकिन अपनी पार्ट्री बनायेंगे या भाजपा में जायेंगे, इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म था। खैर अब तस्वीर पूरी तरह से साफ हो चुकी है कि चंपाई सोरेन भगवा चोला पहनेंगे। भाजपा को भरोसा है कि चंपाई सोरेन के भगवा रंग में रंगने से झारखंड की राजनीति में एक मैसेज जायेगा कि जेएमएम जैसी पार्टी के स्तंभ रहे नेताओं का मन भी अब डोलने लगा है। इधर भाजपा को एक और आदिवासी फेस मिलेगा। जिस प्रकार पहले 2019 के विधानसभा चुनाव और इस बार के लोकसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं की दूरी भाजपा से दिखी, उनमें कहीं न कहीं से यह मैसेज भी जायेगा कि अगर चंपाई सोरेन जैसा नेता, जो गुरुजी, हेमंत सोरेन और जेएमएम का वफादार रहा है, वह जेएमएम छोड़ रहा है, तो जरूर कोई बड़ी बात होगी। वैसे चंपाई सोरेन ने तो एक्स पर एक मार्मिक चिट्ठी लिख कर अपने दुख को पहले ही जता दिया था कि कैसे उनके साथ पार्टी ने अन्याय किया है। चंपाई का आना भाजपा के लिए कितना फायदेमंद होगा, यह तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन जेएमएम के लिए एक बड़ी चुनौती होगी, यह तय है। चंपाई सोरेन आंदोलन से उपजे नेता हैं। वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्तंभ के रूप में जाने जाते रहे हैं। शिबू सोरेन के साथ उन्होंने कंधे से कंधा मिला कर झारखंड आंदोलन को खूब धार दी थी। 90 के दशक में अलग झारखंड राज्य आंदोलन के जरिये चंपार्ई सोरेन ने राजनीति में कदम रखा था। उन्हें कोल्हान टाइगर के नाम से जाना जाता है। चंपार्ई सोरेन ने पहली बार वर्ष 1991 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी राजनीति में कदम रखा था। उन्होंने सरायकेला विधानसभा के उपचुनाव में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीत दर्ज की थी और विधायक बने थे। उसके बाद (2000 को छोड़ कर, जब वह भाजपा के अनंत राम टुडू से चुनाव हार गये थे) उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वर्ष 1995 में चंपाई सोरेन ने जेएमएम के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। तब से लेकर 3 जुलाई 2024 (मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का दिन) तक वह जेएमएम के साथ रहे। लेकिन जैसे ही पार्टी में परिस्थितियां उनके प्रतिकूल हुर्इं, वह हिल गये। उनका मानना था कि जिस प्रकार से अधर और जल्दबाजी में उनसे इस्तीफा लिया गया, उससे उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है। क्या है चंपाई सोरेन के भाजपा में जाने के मायने और कैसे झारखंड की राजनीति इससे प्रभावित होगी, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    चंपाई सोरेन का भाजपा में जाना जेएमएम के लिए एक कठिन चुनौती है। इसका असर जेएमएम की राजनीति पर कितना पड़ेगा, यह तो समय के गर्भ में है, लेकिन फिलहाल झामुमो के लिए उनकी टक्कर का नेता खड़ा करना आसान नहीं होगा। दरअसल, चंपार्ई सोरेन की गिनती जेएमएम के सीनियर लीडर और पार्टी के स्तंभ के रूप में होती है। झारखंड के कोल्हान इलाके में उन्हें कोल्हान टाइगर के नाम से जाना जाता है। चंपाई सोरेन का असर कोल्हान की 14 में से खासकर नौ सीटों पर देखने को मिलता है। कहीं कम, कहीं ज्यादा हो सकता है, लेकिन चंपाई फैक्टर को इग्नोर नहीं किया जा सकता। जेएमएम में इनके कद का कोई दूसरा नेता नहीं है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब जमीन घोटाला और मनी लांड्रिंग मामले में हेमंत सोरेन जेल गये, तो उन्होंने घर-परिवार के सदस्यों से ज्यादा चंपाई सोरेन पर ही भरोसा किया और अपना उत्तराधिकारी चुना। चंपाई सोरेन ने भी हेमंत-2 बन कर काम करना शुरू किया। वह हमेशा कहते रहे कि वह हेमंत सोरेन के काम को ही आगे बढ़ा रहे हैं। उनके सपने को पूरा कर रहे हैं। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि अगर सोरेन परिवार, खासकर हेमंत सोरेन ने चंपाई सोरेन पर इतना भरोसा जताया था, तो आखिर ऐसा क्या हुआ, जब पांच महीने में ही उन्हें सीएम पद से हटाया गया। आखिर इन पांच महीनों में ऐसा क्या हो गया, जिससे हेमंत सोरेन और चंपाई के बीच दूरियां बढ़ती चली गयीं। जानकारों की मानें तो जैसे ही चंपाई सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उसी क्षण से एक ग्रुप सक्रिय हो गया कि यही मौका है, जिससे हेमंत सोरेन को कमजोर किया जा सकता है। ये हेमंत से जुड़े लोग भी थे और भाजपा से भी। आसान भाषा में गुटबाजों की टोली समझिये। चंपाई सोरेन ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कई ऐसे फैसले लिये, जो जेएमएम आलाकमान को नागवार गुजर रहे थे। चंपाई अच्छा काम कर रहे थे। यह उस समय खुद झामुमो नेताओं ने कहा था। झारखंड के हित में उन्होंने कई फैसले भी लिये, लेकिन कहते हैं न कि गुटबाजों की टोली हमेशा एक्टिव रहती है। उनका काम ही होता है इधर की बात उधर करना। बस फिर क्या था। मिसअंडरस्टैंडिंग का दौर शुरू हुआ। हेमंत सोरेन और चंपाई सोरेन में दूरियां बढ़नी शुरू हो गयीं। एक तरफ हेमंत सोरेन जेल में बंद थे और दूसरी तरफ चंपाई सोरेन का कद दिनों-दिन बढ़ता जा रहा था। इसी क्रम में कल्पना सोरेन गांडेय उपचुनाव जीत गयीं, जिसमें चंपाई सोरेन भी चट्टान की तरह उनके साथ रहे। कल्पना सोरेन भी बार-बार यह मैसेज दे रही थीं कि चंपाई दादा अच्छा काम कर रहे हैं। सब कुछ एक तरह से ठीकठाक चल रहा था। लेकिन अचानक परिस्थितियां ऐसी बनीं कि चंपाई सोरेन को न चाहते हुए भी कुर्सी छोड़नी पड़ी।

    परिस्थितियों ने अचानक उस समय करवट ली, जब केंद्र सरकार ने तीन नये आपराधिक कानून लागू किये। इसका स्वागत चंपाई सोरेन सरकार ने किया। पहले ही दिन झारखंड में 33 मामले दर्ज किये गये थे। झारखंड पहला गैर भाजपा शासित राज्य था, जिसने इन कानूनों का समर्थन किया था। इसके बाद से कांग्रेस में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गयीं। कांग्रेस नेताओं के कान खड़कने लगे और इसकी सूचना हेमंत तक भी पहुंचायी गयी। इसी बीच राज्य में कुछ आइपीएस अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग हुई। इसके बाद अटकलों का बाजार गर्म हो गया।

    झारखंड की चंपाई सोरेन सरकार ने 28 जून को राज्य की 45 लाख महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक योजना को मंजूरी दी थी। इस योजना को मुख्यमंत्री बहन-बेटी मई-कुई स्वावलंबन प्रोत्साहन योजना का नाम दिया गया। यह योजना 21 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए थी। झारखंड कैबिनेट की ओर से इस महत्वाकांक्षी वित्तीय सहायता योजना को मंजूरी मिली। इस योजना का श्रेय चंपाई सोरेन के खाते में गया। आज हेमंत सोरेन सरकार द्वारा शुरू की गयी मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना भी इसी का एक एडवांस्ड प्रारूप है। हेमंत सोरेन को इसका आइडिया जेल में ही आया था। चंपाई सोरेन ने दो घटनाक्रमों का जिक्र मुख्य रूप से अपने एक्स पर लिखी गयी चिट्ठी में किया है। उन्होंने लिखा: एक हूल दिवस, जो 30 जून को मनाया जाता है, के अगले दिन उन्हें पता चला कि अगले दो दिनों के उनके सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। यह कार्यक्रम रांची के प्रभात तारा मैदान में आयोजित होना था। तैयारी पूरी हो चुकी थी। पंडाल तक बन गया था। बकौल चंपाई, पूछने पर पता चला कि महागठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलायी गयी है, तब तक वह सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते। उन्होंने पत्र में लिखा कि क्या लोकतंत्र में इससे अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? चंपाई ने लिखा था कि अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद उन्होंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए वह उसमें शामिल हो जायेंगे। लेकिन, उधर से साफ मना कर दिया गया।

    भाजपा को भरोसा, चंपाई लगायेंगे कोल्हान में नैया पार
    खैर, अब चंपाई भाजपा का दामन थामने वाले हैं। इसे लेकर भाजपा खेमे में क्या प्रतिक्रियाएं हैं, यह मंगलवार को बाबूलाल के एक पोस्ट से स्पष्ट हो जाता है। उन्होंने लिखा है: पार्टी में चंपाई सोरेन और लोबिन हेंब्रम का स्वागत है। चंपाई जी, लोबिन जी जैसे सीनियर आंदोलनकारी नेताओं का अपमान से आहत होकर एक-एक पार्टी छोड़ जाना यह बताता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा अब आंदोलनकारियों की पार्टी नहीं, बल्कि प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन कर रह गयी है। आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लोक कल्याणकारी कार्यों और भाजपा की नीतियों में निष्ठा व्यक्त करनेवाले झारखंड आंदोलनकारी पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन जी का भाजपा परिवार में हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन है।

    इसमें कोई दो राय नहीं कि चंपाई सोरेन का कोल्हान में प्रभाव है। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का खाता भी कोल्हान में नहीं खुला था। यह बात दीगर है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में झामुमो प्रत्याशी जोबा माझी चंपाई सोरेन के क्षेत्र से पिछड़ गयी थीं, लेकिन पूरे कोल्हान में उन्हें भाजपा उम्मीदवार गीता कोड़ा के ऊपर शानदार जीत मिली थी। उस समय चुनाव प्रचार की कमान चंपाई सोरेन और कल्पना सोरेन पर थी। चंपाई सोरेन कोल्हान प्रमंडल में पूरी तरह सक्रिय थे, जबकि कल्पना सोरेन के जिम्मे पूरा झारखंड था। कल्पना भी कई अवसरों पर प्रचार के लिए कोल्हान गयी थीं। चंपार्ई सोरेन संथाल जनजाति से ताल्लुक रखते हैं और इस समुदाय के साथ-साथ अन्य जनजातियों पर भी उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। इसी के साथ वह मजदूर वर्ग के बड़े नेता भी हैं। आदिवासी बहुल इलाका कोल्हान चंपार्ई सोरेन का गढ़ है, इसलिए उन्हें कोल्हान टाइगर के नाम से जाना जाता रहा है। चंपाई के भाजपा में शामिल होने से भाजपा को उम्मीद है कि वह एक मजबूत शक्ति बन कर कोल्हान में उभर सकती है। कोल्हान में कुल 14 विधानसभा सीटें हैं। साल 2019 विधानसभा चुनाव में इनमें से 11 सीटें झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जीती थीं। इसमें चंपार्ई सोरेन की बड़ी भूमिका थी। इसके अलावा, कांग्रेस के पास दो सीटें आयी थीं और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार सरयू राय के खाते में गयी थी। बीजेपी इन 14 में से एक सीट पर भी जीत हासिल नहीं कर सकी थी, लेकिन अब चंपार्ई सोरेन का साथ पाने के बाद भाजपा की स्थिति कोल्हान में सुधरेगी, इसमें संदेह नहीं है।

    कोल्हान वाले हिट, संथाल वाले फ्लॉप
    कोल्हान के जेएमएम नेता भाजपा में हिट रहे हैं। वहीं संथाल के नेता अभी तक भाजपा में परफॉर्म नहीं कर पाये हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी 1995 में खरसावां से झामुमो विधायक थे। उनकी छवि साफ-सुथरी थी। जब वह भाजपा में शामिल हुए, तीन बार मुख्यमंत्री बने और केंद्र में मंत्री भी बने। विद्युत वरण महतो भी भाजपा में 2014 में शामिल हुए थे और अब तीसरी बार सांसद हैं। शैलेंद्र महतो भी जेएमएम छोड़ भाजपा में आये, तो हिट रहे। उनकी पत्नी आभा महतो भी जमशेदपुर से सांसद बनीं। वहीं संथाल से हेमलाल मुर्मू और साइमन मरांडी भाजपा में फिट नहीं हो पाये। स्टीफन मरांडी भी झामुमो छोड़ जेवीएम में आये थे, लेकिन पैर नहीं जमा पाये। फिर उन्होंने घर वापसी कर ली। इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन भाजपा के टिकट पर दुमका से उम्मीदवार हुईं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

    शिबू के वफादार लोबिन हेंब्रम ने भी जेएमएम से किया किनारा
    लोबिन हेंब्रम की भी गिनती शिबू सोरेन के वफादार सिपाही के रूप में होती रही है। 1990 में पहली बार विधायक बने लोबिन अब तक पांच बार बोरियो से विधायक चुने गये हैं। हेमंत सोरेन के पहले टर्म में उन्हें कैबिनेट में जगह दी गयी थी, लेकिन बाद में उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिली। 2019 में जब से हेमंत सोरेन की सरकार बनी, तब से लोबिन हेंब्रम बागी रुख अख्तियार किये हुए हैं। पहले मंत्री नहीं बनाये जाने से नाराज थे। इसके अलावा उन्हें किसी आयोग में भी जगह नहीं दी गयी। इससे नाराज होकर लोबिन स्थानीय नीति और सरना कोड के मुद्दों पर हेमंत सरकार को घेरने लगे। लोकसभा चुनाव में लोबिन हेंब्रम ने राजमहल लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन किया था। हार मिली। चुनाव के बाद उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। विधानसभा से उनकी सदस्यता भी खत्म कर दी गयी। उन्हें इस बात का मलाल है कि चुनाव लड़ने के बाद चमरा लिंडा को पार्टी से बरखास्त नहीं किया गया। उनकी सदस्यता नहीं गयी, जबकि लोबिन की सदस्यता खत्म कर दी गयी। लोबिन हेंब्रम भी भाजपा में शामिल होनेवाले हैं। उनका कहना है, हम तो तैयार हैं, भाजपा से निमंत्रण मिलने का इंतजार है। बाबूलाल मरांडी के पोस्ट के बाद यह माना जाने लगा है कि लोबिन हेंब्रम भी चंपाई सोरेन के साथ भाजपा में शामिल हो जायेंगे। इधर झामुमो को भरोसा है कि चंपाई सोरेन की कमी उसे नहीं खलेगी। ऐसे कई अवसर आये, जब पार्टी को सामने चुनौती आयी, लेकिन पार्टी ने सभी चुनौतियों को पार लिया।

     

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